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'हम नहीं लेंगे हिस्सा', जाति सर्वे से सुधा और नारायण मूर्ति ने क्यों बनाई दूरी?

नारायण और सुधा मूर्ति ने कर्नाटक के जाति सर्वे में हिस्सा लेने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि वह किसी पिछड़े समुदाय से नहीं है। बता दें कि नारायण मूर्ति इन्फोसिस के सह-संस्थापक हैं। सुधा मूर्ति राज्यसभा सदस्य हैं।

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राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति और उनके पति नारायण मूर्ति ने कर्नाटक सरकार के जाति जनगणना में हिस्सा लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि हम पिछ़़ड़े समुदाय से नहीं हैं। इसलिए नहीं चाहते हैं कि हमारे घर में यह सर्वे किया जाए। बता दें कि कर्नाटक में अभी जातिगत और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण चल रहा है। इसकी आखिरी तारीख 18 अक्टूबर निर्धारित की गई।

 

न्यूज एजेंसी पीटीआई ने बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP) के सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी। इसमें बताया गया कि कुछ दिन पहले एक सर्वे टीम सुधा मूर्ति के घर पहुंची। उस वक्त सुधा और नारायण मूर्ति ने कथित तौर पर कहा, 'हम अपने घर पर सर्वेक्षण नहीं करवाना चाहते।'

 

सामाजिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण 2025 के तहत कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने एक प्रोफार्मा जारी किया है। इसमें संबंधित व्यक्ति को मांगी गई जानकारी देनी होती है। सूत्रों के मुताबिक सुधा मूर्ति ने जानकारी नहीं दी, इसके बदले में उन्होंने एक स्व-घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया।

 

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सुधा मूर्ति ने लिखा, 'कुछ व्यक्तिगत कारणों से मैं कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सामाजिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण में जानकारी देने से इनकार कर रही हूं।' उन्होंने कथित तौर पर कन्नड़ में लिखा, 'हम किसी पिछड़े समुदाय से नहीं हैं। इस वजह से हम ऐसे समूहों के लिए सरकार द्वारा आयोजित सर्वेक्षण में भाग नहीं लेंगे।'

 

कर्नाटक सरकार ने 22 सितंबर से जातिगत और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण शुरू किया था। इसे 7 अक्टूबर को खत्म होना था। बाद में इसकी समय सीमा को 18 अक्टूबर तक बढ़ा दिया गया। सर्वे में अधिकांश शिक्षकों की ड्यूटी लगी है। इस कारण स्कूलों में 18 अक्टूबर तक छुट्टी है। प्रदेश के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का कहना है कि अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर पढ़ाई की भरपाई की जाएगी। 

 

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कर्नाटक के श्रम मंत्री ने मूर्ति दंपती के फैसले को व्यक्तिगत बताया। उनका कहना है कि सरकार किसी को बाध्य नहीं कर सकती है। आंकड़ों के मुताबिक बेंगलुरु में करीब 15.42 लाख परिवारों का सर्वे हो चुका है। कर्नाटक सरकार का तर्क है कि जाति सर्वेक्षण से मिले डेटा का इस्तेमाल कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने और कमजोर लोगों को अधिक सशक्त बनाने में किया जा सकता है। 

 

 


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