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अनंतनाग: झरने की मरम्मत कर रहे थे मजदूर, दशकों पुरानी मूर्तियां मिलीं

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में खुदाई के दौराम हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। मूर्तियों को जांच के लिए म्यूजियम में भेज दिया गया है।

Sculptures found during excavations

खुदाई के दौरान मिली मूर्तियां| Photo Credit: X handle/𝐒𝐚𝐮𝐫𝐚𝐛𝐡 𝐊𝐮𝐦𝐚𝐫

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में खुदाई के दौरान कुछ प्राचीन हिंदू मूर्तियां और शिवलिंग मिलने की खबर सामने आई है। यह मूर्तियां दक्षिण कश्मीर के ऐशमुकाम क्षेत्र के सलिया गांव में स्थित कारकूट नाग झरने की मरम्मत के दौरान खुदाई के समय मिलीं हैं। कश्मीरी पंडितो के लिए यह स्थान ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। मूर्तियों और शिवलिंग को जांच के लिए भेज दिया गया है। 

 

सरकारी अधिकारियों के बताया कि लोक निर्माण विभाग (PWD) कारकूट नाग झरने का पुर्ननिर्माण और मरम्मत काम कर रहा था। झरने को साफ करने के लिए खुदाई का काम चल रहा था, तभी वहां काम कर रहे मजदूरों को पत्थर की कई मूर्तियां जमीन के अंदर से मिलीं। इनमें शिवलिंग और देवी-देवताओं की आकृतियां बनी हुई हैं।

 

प्राचीनता और महत्व

इन मूर्तियों को देखने के लिए जम्मू-कश्मीर के पुरातत्व और संग्रहालय विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि इन मूर्तियों को आगे की जांच और विश्लेषण के लिए श्रीनगर के एसपीएस म्यूजियम (SPS Museum) में भेजा जाएगा। वहां इनका विज्ञान आधारित परीक्षण (material testing and dating) किया जाएगा, जिससे यह पता लगाया जा सके कि ये मूर्तियां कितनी पुरानी हैं और किस काल की हैं।

 

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कश्मीरी पंडितों के लिए धार्मिक आस्था का केंद्र

स्थानीय कश्मीरी पंडितों का मानना है कि यह स्थान काफी समय पहले कारकूट वंश से जुड़ा हुआ था। उनका कहना है कि वहां प्राचीन काल में कोई मंदिर रहा होगा या फिर इन मूर्तियों को वहां श्रद्धा के साथ सुरक्षित रखा गया होगा। यह स्थान पहले से ही एक तीर्थ स्थल माना जाता है और लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है।

 

वहां के एक कश्मीरी पंडित ने कहा, 'यहां एक पवित्र सरोवर है और वहीं से ये मूर्तियां और शिवलिंग मिले हैं। हम चाहते हैं कि सरकार इनका उचित संरक्षण करे और अगर संभव हो तो यहां एक नया मंदिर बनाया जाए, जिससे इन शिवलिंगों को स्थापित किया जा सके।'

 

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कारकूट वंश का इतिहास

कारकूट वंश कश्मीर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण वंश रहा है, जिसकी स्थापना 7वीं शताब्दी में हुई थी। कश्मीर घाटी में कई धार्मिक और सांस्कृतिक निर्माण कार्य इसी वंश के शासनकाल में हुए थे। इसलिए यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद यह जगह उस काल का कोई प्राचीन मंदिर या पूजा स्थल रहा हो।

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