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जंगलों में करती थी बंधुआ मजदूरी, अब सरपंच बनी आदिवासी महिला

तेलंगाना पंचायत चुनाव नतीजे घोषित हो गए हैं। पुरुसाला लिंगम्मा नाम की एक महिला सरपंच बनी हैं, जो दशकों तक बंधुआ मजदूरी करती थीं।

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पुरुसाला लिंगम्मा, Photo Credit: Social Media

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लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कोई भी नागरिक चुनाव लड़ सकता है और सरपंच से लेकर प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तक बन सकता है। बीते दिनों तेलंगाना में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में लोकतंत्र की एक ऐसी ही मिसाल देखने को मिली, जहां पुरुसाला लिंगम्मा नाम की एक महिला लोकतंत्र की ताकत से चुनी हुई जनप्रतिनिधि बन गई। खास बात यह है कि जिस महिला ने सरपंच का चुनाव जीता है, वह महिला कई सालों तक बंधुआ मजदूर रही है। अब हर तरफ इस महिला की तारीफ हो रही है और लोग इस महिला के सफर की सरहाना कर रहे हैं। 

 

नागरकुरनूल जिले की चेंचू जनजाति की महिला लिंगम्मा हाल में तेलंगाना के ग्राम पंचायत चुनाव में अमरागिरि गांव की सरपंच चुनी गईं। पुरुसाला लिंगम्मा की उम्र लगभग 40 साल है और वह निरक्षर हैं। पुरुसाला लिंगम्मा का सफर बहुत कठिन रहा है। वह बचपन से लेकर कई दशकों तक जिले के नल्लामाला जंगलों में बंधुआ मजदूरी किया करती थीं और उन्हें कई साल पहले सरकारी अधिकारियों ने बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया था। इसके बाद आज वह अपने गांव क सरपंच बन गई हैं। 

 

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सरपंच बनने पर क्या बोली पुरुसाला लिंगम्मा

सरपंच चुनाव में जीत के बाद पुरुसाला लिंगम्मा ने शनिवार को बताया कि वह और उनके परिवार के अन्य सदस्य बंधुआ मजदूर के रूप में मछली पकड़ने जाते थे। उनके माता-पिता भी बंधुआ मजदूरी करते थे। उन्होंने कहा, 'हमें यह भी नहीं पता था कि हम पर कितना कर्ज है। वे हमें जाल देते थे और हमें मछली पकड़ने जाना पड़ता था। उन दिनों हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं हुआ करता था।'

छोटे भाई से हुआ चुनावी मुकाबला

पुरुसाला लिंगम्मा ने अपने चुनावी सफर के बारे में भी बताया और बताया कि कैसे वह सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुईं। उन्होंने कहा कि 300 की आबादी वाला उनका गांव स्थानीय निकाय चुनाव में अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित था। गांव के अन्य लोगों और स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए प्रेरित किया क्योंकि उन्होंने सामुदायिक कल्याण के लिए काम किया था। हालांकि, उन्हें चुनाव मैदान में अपने ही छोटे भाई से मुकाबले का सामना करना पड़ा।

 

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भाई को हराकर बनी सरपंच

चुनाव पद के लिए भाई और बहन के बीच हुए इस मुकाबले में पुरुसाला लिंगम्मा ने जीत हासिल की। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में सिर्फ दो ही उम्मीदवार थे। पुरुसाला लिंगम्मा अपने साथ-साथ अपने परिवार और अन्य लोगों की जिंदगी बदलने के लिए भी काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया, जो अब एक आंगनवाड़ी शिक्षक के रूप में काम कर रही है। पुरुसाला लिंगम्मा ने सरपंच बनने के बाद अपना प्लान भी शेयर किया। उन्होंने कहा कि वह गांव में सड़कें, पानी और बिजली जैसी सुविधाओं में सुधार करना चाहती हैं।

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