उत्तर प्रदेश सरकार ने आउटसोर्सिंग के जरिए कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक बड़ा सकदम उठाया है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड के गठन को मंजूरी दे दी है। यह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी होगी, जिसे नॉन-प्रॉफिटेबल संस्था के रूप में संचालित किया जाएगा। आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड के गठन को लेकर प्रदेश में लोगों की राय बंटी हुई है और विपक्ष ने सरकार की आलोचना की है और स्थायी नौकरी देने से बचने का आरोप लगाया है। हालांकि, इसके गठन से भर्ती में पारदर्शिता लाए जाने की उम्मीद है।
आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड को कम्पनीज एक्ट-2013 के सेक्शन-8 के अंतर्गत बनाया गया है। इस निगम के माध्यम से अब आउटसोर्सिंग एजेंसियों का चयन सीधे विभाग नहीं करेंगे बल्कि निगम जेम पोर्टल के जरिए निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया से एजेंसी का चयन करेगा। सरकार का दावा है कि इस निगम के गठन से उन लाखों कर्मचारियों को राहत मिलेगी जिन्हें एजेंसियों के जरिए शोषण का शिकार होना पड़ता था।
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क्या है आउटसोर्सिंग व्यवस्था?
आउटसोर्सिंग व्यवस्था एस ऐसी व्यवस्था है जिसमें कोई भी विभाग अपने काम किसी बाहरी एजेंसी को सौंप देती है। इस व्यवस्था में कर्मचारी विभाग या संस्था के कर्मचारी ना होकर उस एजेंसी के कर्मचारी होते हैं। एजेंसियां कम लागत पर कर्चारियों को कॉन्ट्रैक्ट के जरिए भर्ती करती हैं और कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने पर कर्मचारियों को हटा दिया जाचा है या फिर उनका कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू कर दिया जाता है।
आउटसोर्स सेवा निगम क्या है?
सरकार ने कर्मचारियों तो स्थायी रूप से नौकरी देने के बजाय आउटसोर्सिंग के जरिए भर्ती करने के लिए इस निगम का गठन किया है । इसमें ग्रुप-सी और ग्रुप-डी के कर्मचारी शामिल होते हैं। कर्मचारियों को एक कॉन्ट्रैक्ट के तहत भर्ती किया जाएगा। अब तक यह भर्ती प्राइवेट एजेंसियों के जरिए की जाती थी। एजेंसियों पर कर्मचारियों की सैलरी रोकने और उनका शोषण करने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में अब सरकार ने इन भर्तियों के लिए उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम का गठन किया है। अब सरकार इस निगम के जरिए कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारियों की भर्ती करगी। यह निगर कर्मचारियों की भर्ती को पारदर्शी बनाएगा और उनकी सैलरी, सुविधाएं और सेवा शर्तों की पूरी निगरानी रखेगा।
सरकार के अनुसार, आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति तीन सालों के लिए होगी। कर्मचारियों की सैलरी हर महीने 1 से 5 तारीख के बीच सीधे उनके बैंक खाते में आ जाएगी। ईपीएफ और ईएसआईसी की राशि भी सीधे कर्मचारियों के खाते में जाएगी। कर्मचारियों को महीने में 26 दिन तक काम करना होगा और कॉन्ट्रैक्ट के नियमों का उल्लंघन करने पर कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया जाएगा।
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विपक्ष के आरोप
कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरी स्थायी नहीं होती। उन्हें नौकरी खोने का डर बना रहता है। उनके लिए रोजगार सुरक्षा को लेकर कोई योजना नहीं है। उत्तर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी पहले से ही आउटसोर्सिंग का विरोध करती आई है। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उनकी सरकार बनते ही यह व्यवस्था खत्म कर दी जाएगी। पार्टी के प्रवक्ता ने कहा, 'सरकार अगर ईमानदार होती तो सबसे पहले जो आउटसोर्सिंग कर्मचारी आंदोलनरत हैं उनकी सैलरी बढ़ाने की घोषणा करती। आज भी शिक्षामित्र, डायल 112 और अन्य आउटसोर्सिंग कर्मचारी अपनी सैलरी बढ़ाने के लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं।'