क्या हैं बिहार के 'गुंडा बैंक', जनता इनसे क्यों पीड़ित; कितनी बड़ी समस्या?
बिहार के कथित 'गुंडा बैंक' से जनता परेशान है। इनके वसूली वाले गुंडों से तंग आकर अब तक कई लोग अपनी जान तक दे चुके हैं। अब डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने इन बैंकों के खिलाफ एक्शन लेने की बात कही है।

प्रतीकात्मक फोटो। (AI-generated image)
संजय सिंह, पटना। 'गुंडा बैंक' की शुरुआत सबसे पहले तीन दशक पूर्व पुलिस जिला नवगछिया में की गई थी। कई लोगों का कहना है कि शुरुआती दौर में एक बैंक की आड़ में चारा घोटाले के पैसे का इस्तेमाल किया गया था। अधिक कमाई को देखकर कई माननीय भी इस बैंक के कर्ताधर्ता को संरक्षण देने लगे। पैसा वसूली के लिए बैंककर्मियों ने गुंडों का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया।
मोटी कमाई को देख इस तरह के बैंक बिहार के अन्य हिस्सों में खुलने लगे। कर्जदारों से यह बैंक 15 से 30 फीसदी सूद वसूलते हैं। गुंडों से तंग आकर कई लोगों ने आत्महत्या कर ली। कुछ कर्जदारों के जमीन और मकान इन गुंडों ने अपने नाम लिखवा लिया। पुलिस जांच के नाम पर वर्षों से ड्रामा चल रहा है। आज तक गुंडों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने ऐसे बैंकों को तुरंत बंद करने का निर्देश वरीय पुलिस अधिकारी को दिया है।
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क्या है गुंडा बैंक का इतिहास?
तीन दशक पूर्व नवगछिया पुलिस जिले के तीनटंगा दियारा में इस बैंक की स्थापना शारदा विकास समिति के नाम पर की गई थी। बैंक की स्थापना सरस्वती पूजा के दिन हुई थी, इसलिए इसका नाम शारदा विकास समिति रखा गया। बैंक की स्थापना का उद्देश्य यह था कि जरूरतमंदों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। सूद के पैसों को ग्रामीण विकास के कार्यों में लगाया जाएगा।
शुरुआती दौर में इस बैंक में 10 करोड़ रुपये लगाए गए थे। पैसा वापसी में जब देरी होने लगी तो बैंक से जुड़े लोगों ने गुंडा की सहायता लेना शुरु कर दिया। यह गुंडे पैसे वसूली के लिए अपहरण भी करना शुरू कर दिया। कई लोगों के जमीन और मकान लिखवा लिए गए। तब इस बैंक का काम राजद के स्थानीय नेता सिकंदर मंडल देखा करते थे। इस तरह का बैंक पूर्णिया, कटिहार, अररिया, भागलपुर और खगड़िया में भी खुलने लगे। जबरन वसूली की वजह से गरीब जनता त्राहिमाम करने लगी। सत्ता परिवर्तन हुआ तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने। कुछ दिनों के लिए इस तरह के धंधे पर रोक लगी, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों के कारण फिर यह धंधा फलने फूलने लगा।
कैसे खुली गुंडा बैंक की कलई?
पहली घटना: दो महत्वपूर्ण घटनाओं के बाद गुंडा बैंक की कलई खुलने लगी। पचगछिया के एक फौजी पवन सिंह ने गुंडा बैंक से अपने निजी काम के लिए लाखों रुपये का कर्ज लिया। गुंडों ने राशि वापसी के लिए सैनिक पर मानसिक अत्याचार करना शुरू किया। अत्याचार से तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। सैनिक की इस आत्महत्या से पूरे इलाके में बबाल मच गया। तब प्रशासनिक अधिकारी हरकत में आए थे, लेकिन फिर मामला ठंडा पर गया।
दूसरी घटना: एक व्यवसायी संजय किरानिया का अपहरण कर लिया गया था। जब इसकी जानकारी पुलिस प्रशासन को मिली तो कटिहार और पूर्णिया की पुलिस ने संयुक्त रुप से कुरसेला में छापेमारी की। व्यवसायी का अपहरण गुंडा बैंक के मामले में की गई थी। इस घटना पर चेंबर ऑफ कॉमर्स ने काफी बवाल खड़ा किया था। पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की तो मगर बाद में मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
तीसरी घटना: हाल ही में मुजफ्फरपुर में अमरनाथ नामक एक व्यक्ति ने अपनी तीन बेटियों के साथ आत्महत्या कर ली। उसके दो बेटे बच गए। चर्चा है कि अमरनाथ भी कर्ज तले दबा था। इस घटना के बाद विरोधियों ने सरकार और प्रशासन को घेरने की कोशिश की। महापुलिस निदेशक विनय कुमार ने मामले की जांच जांच सीआईडी से कराने का आदेश दिया। लोगों के मुताबिक अकेले मुजफ्फरपुर में 200 से अधिक ऐसे बैंक संचालित हैं।
चौथी घटना: मुंगेर जिले के बसबिट्टी गांव की महिला गुड़िया देवी ने कीटनाशक दवा खाकर अपनी जान दे दी। उसने भी माइक्रो फाइनेंस कंपनी से कर्ज ले रखा था। उस पर जब कर्ज वापसी का दबाव बनाया गया तो उसने खौफनाक कदम उठा लिया।
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ठंडे बस्ते में जांच रिपोर्ट, अब तक कोई एक्शन नहीं
गुंडा बैंक या माइक्रो फाइनेंस के अत्याचार का मामला जब सामने आता है, तब सरकार जांच का आदेश देती है। मगर जमीनी स्तर पर कोई एक्शन नहीं होता है। दो दशक पहले नवगछिया में जब पूर्व सैनिक की आत्महत्या और व्यवसायी को अगवा करने की घटना सामने आई तब सरकार ने सीआईडी के डीआईजी गिरिजा नंदन शर्मा को जांच का आदेश दिया था। उस समय सवा सौ से अधिक केस दर्ज किए गए। रिपोर्ट में 130 लोगों को चिन्हित कर कारवाई करने की सिफारिश की गई थी। इस रिपोर्ट में कुछ नेताओं का भी जिक्र था। बाद में मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
करीब 5 साल पहले कटिहार में एक व्यवसायी दंपत्ति ने आत्महत्या कर ली थी। यह मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा। हाई कोर्ट के निर्देश पर सीआईडी के डीआईजी ने मामले की जांच की थी। उस रिपोर्ट में भी कुछ सफेदपोश चेहरों का जिक्र था। मगर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
क्यों नाराज है डिप्टी सीएम?
बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी का राजनीतिक रिश्ता खगड़िया जिले के परवत्ता से रहा है। गुंडा बैंक का सबसे अधिक खामियाजा गंगोता और कुशवाहा समुदाय के लोगों को उठाना पड़ा। कई पीड़ित सम्राट चौधरी से जुड़े हैं। इन बैंक के कारनामे को वह अच्छी तरह जानते हैं। वह जड़ से समस्या का समाधान चाहते हैं। अब देखना यह है कि प्रशासनिक अधिकारी इन बैंकों के खिलाफ क्या एक्शन लेते हैं।
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