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'यूपी का कोई अधिकारी माननीय नहीं', इटावा DM के पत्र पर हाई कोर्ट क्यों नाराज?

अक्सर आम जनता से लेकर सरकारी बाबू तक अपने से ऊपर पदों पर बैठे अधिकारियों के नाम पत्र में माननीय शब्द का इस्तेमाल करते हैं। मगर अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माननीय शब्द के गलत इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाई कोर्ट। (Photo Credit: PTI)

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माननीय शब्द के गलत इस्तेमाल पर कड़ी नाराजगी जताई है। अब हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव (राजस्व) से हलफनामा के साथ जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। इटावा के जिलाधिकारी ने अपने पत्र में कानपुर के मंडलायुक्त को माननीय मंडलायुक्त लिखा था। इस पर हाई कोर्ट ने न केवल अपनी नाराजगी जताई, बल्कि प्रमुख सचिव (राजस्व) को हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा कि किस कानून के तहत अपर आयुक्त (अपील) को माननीय अपर आयुक्त लिखा गया। हाई कोर्ट मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को करेगी।

 

योगेश शर्मा नाम के एक शख्स ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में माननीय शब्द के गलत इस्तेमाल से जुड़ी एक याचिका दाखिल की थी। न्यायमूर्ति अजय भनोट और न्यायमूर्ति गरिमा प्रसाद की पीठ ने सुनवाई की। पीठ ने कहा, 'यह संवैधानिक अधिकारियों और अदालतों की प्रतिष्ठा कम करने का एक छोटा और निश्चित तरीका है। हाल में यह देखा गया है कि निचले स्तर से उच्च स्तर के राज्य के अधिकारियों को पत्राचार और आदेश में माननीय शब्द के साथ संबोधित किया जाता है।'

 

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हाई कोर्ट ने आगे कहा, यह अदालत पहले ही बता चुकी है कि माननीय शब्द का प्रयोग मंत्रियों और संप्रभु अधिकारियों के लिए किया जाएगा। राज्य के नौकरशाह या अधिकारियों पर माननीय शब्द लागू नहीं होता है।'

 

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दरअसल, इटावा जिले के जिलाधिकारी ने अपने एक पत्र में कानपुर के मंडलायुक्त को माननीय मंडलायुक्त के साथ संबोधित किया था। इस पर ही हाई कोर्ट ने अपनी आपत्ति जताई है। अब अदालत ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (राजस्व) से पूछा है कि क्या उन अधिकारियों के लिए कोई प्रोटोकॉल है, जो अपने पदों या नाम के पहले माननीय शब्द लगाने के पात्र हैं। कल यानी 19 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी।


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