एमिली क्रेमर-गोलिनकॉफ, जो एडवांस्ड सिस्टिक फाइब्रोसिस से जूझ रही हैं, हर सांस में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं ले पातीं। इस बीमारी में शरीर के अंगों में गाढ़ा और चिपचिपा म्यूकस जमा हो जाता है, जिससे फेफड़ों और अन्य अंगों में नुकसान और संक्रमण हो सकता है। रोजमर्रा के साधारण काम, जिनमें चलना या खाना खानें जैसी चीजें भी उनके लिए बहुत मुश्किल और थकाने वाले हो गए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ अमेरिका में करीब 40,000 लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं लेकिन एमिली का मामला अलग है। उनके शरीर में एक दुर्लभ जेनेटिक बदलाव है, जिस वजह से आम इलाज उनके लिए कारगर नहीं है।
जेनेटिक बीमारियों में यह समस्या आम है- जहां विज्ञान ने जबरदस्त तरक्की की है, वहीं दुर्लभ जीन म्यूटेशन वाले मरीजों के पास इलाज के कम विकल्प हैं। एमिली जैसी स्थिति में फंसे मरीज अब नई जीन थैरेपी पर अपनी उम्मीदें टिकाए हुए हैं।
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एमिली का कहना है कि, 'हम अपने उन दोस्तों के लिए बेहद खुश हैं जिनकी जिंदगी में सुधार आया है लेकिन हम खुद भी उसी खुशी को महसूस करने के लिए बेताब हैं।"
विशेषज्ञों के अनुसार, कंपनियां तभी इलाज विकसित करने में रुचि दिखाती हैं जब मरीजों की संख्या बड़ी हो। हालांकि, रेयर म्यूटेशन वाले मरीजों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसे उन्होंने 'म्यूटेशनल भेदभाव' बताया है।
एमिली ने 'एमिली एंटॉराज' नाम से एक संस्था बनाई है जो रिसर्च और फंडिंग के जरिए जीन थैरेपी के विकास में मदद कर रही है। हालांकि इस नई तकनीक के उपलब्ध होने में अभी समय लगेगा, फिर भी एमिली को इससे गहरा विश्वास और उम्मीद मिली है।
सिस्टिक फाइब्रोसिस और वर्तमान इलाज
एमिली को मात्र 6 हफ्ते की उम्र में सिस्टिक फाइब्रोसिस का पता चला था। बीमारी की बढ़ती उम्र के साथ उनकी स्थिति भी बिगड़ती गई, और अब उन्हें शुगर, संक्रमण और फेफड़ों की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। महामारी के बाद से वह अपने माता-पिता के साथ फिलाडेल्फिया में अलग-थलग रह रही हैं।
वहीं, जिन मरीजों के पास सामान्य म्यूटेशन है, उन्हें 'CFTR मोड्यूलेटर' थेरेपी से बड़ा लाभ मिला है। यह दवाइयां खराब प्रोटीन को ठीक कर देती हैं, जिससे मरीजों की स्थिति में बहुत सुधार आता है। हालांकि, यह इलाज दुर्लभ या अभी न पहचाने गए म्यूटेशन वाले मरीजों के लिए बेअसर है।
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क्या हो सकती है नई जीन थैरेपी?
ऐसे में वैज्ञानिक अब कुछ ऐसे जीन थैरेपी विकसित कर रहे हैं जो म्यूटेशन से प्रभावित बिना भेदभाव सभी मरीजों पर काम कर सके। ऐसे प्रयास रेटिना बीमारियों और सिस्टिक फाइब्रोसिस दोनों में जारी हैं। ज्यादातर जीन थैरेपी स्टडी में यह प्रयास किया जा रहा है कि कोशिकाओं में सही CFTR जीन पहुंचाया जाए, जिससे कोशिकाएं बिना किसी म्यूटेशन के सामान्य प्रोटीन बना सकें और बीमारी को खत्म किया जा सके।
स्पायरोवेंट साइंसेज नाम की कंपनी, जिसे एमिली की संस्था से शुरुआती मदद मिली थी, ने एक नई जीन थैरेपी का परीक्षण शुरू किया है। नवंबर में इसका पहला मरीज कोलंबिया यूनिवर्सिटी में भर्ती किया गया था। एमिली अब लगभग 30% फेफड़े की क्षमता पर जी रही हैं। उन्हें मधुमेह, गुर्दों की समस्या और उच्च रक्तचाप जैसी जटिलताओं का भी सामना करना पड़ रहा है। फिर भी, वह भविष्य को लेकर आशावान हैं।