इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन(ISS), यह नाम सुनते ही दिमाग में अंतरिक्ष में घूमते हुए एक बड़े अंतरिक्ष यान की आकृति बन जाती है। ये कोई आम अंतरिक्ष यान नहीं है, बल्कि यह अब तक की सबसे बड़ी मानव निर्मित वस्तु है, जो पृथ्वी के ऑर्बिट में चक्कर काट रही है। ISS एक प्रयोगशाला है, जो किसी आम प्रयोगशाला से बहुत अलग है। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों पर स्टडी करना और पृथ्वी के बाहर मानव जीवन को टिकाऊ बनाने के तरीकों का पता लगाना है।
कब आया ISS को बनाने का विचार?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) को बनाने का श्रेय केवल एक देश को नहीं दे सकते हैं, इसमें कई देशों का सहयोग है। बता दें कि इस स्थायी स्पेस स्टेशन को बनाने का विचार 1980 में आया था, जिसे मुख्य रूप से अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA में प्रस्तावित किया गया था। इस परियोजना में अन्य देशों के अंतरिक्ष एजेंसी जैसे रूस की रोस्कोसमोस (Roscosmos), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), जापान की JAXA, और कनाडा की CSA ने भी भाग लिया।
हालांकि वर्ष 1984 में, अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने एक अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की योजना की घोषणा की और इसे ‘फ्रीडम’ नाम दिया गया। इस योजना को सिर्फ अमेरिका के लिए रखा गया था। जैसे-जैसे अन्य देश स्पेस एजेंसियां अपने काम में वृद्धि ला रहे थे, तो इसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ पूरा करने का विचार किया गया।
दिलचस्प बात यह है कि ISS का पहला मॉड्यूल, जिसका नाम ‘जार्या’ है, को 20 नवंबर 1998 को लॉन्च किया गया था। इसके बाद अमेरिका ने अपने दूसरे मॉड्यूल यूनिटी को जोड़ा और फिर 2011 में कई देशों द्वारा बनाए गए मॉड्यूल को जोड़कर इसे पूरा किया गया।
काम क्या करता है इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में तैरता हुआ प्रयोगशाला है, जिसमें ग्रुत्वाकर्षण लगभग 0 है। इसमें वैज्ञानिक यह शोध करते हैं कि 0 ग्रैविटी में मानव शरीर, पौधे, दवाएं और अन्य कई चीजों पर कैसा प्रभाव पड़ता है। साथ ही इससे पृथ्वी की जलवायु, पर्यावरण में बदलाव और धरती पर हो रहे बदलावों पर भी नजर रखी जाती है। इसके साथ यह ग्रह, उपग्रह, तारे और ब्लैक होल पर चल रहे शोध में भी अहम जानकरी देने में मदद करता है।
बता दें कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पृथ्वी से लगभग 400 किमी (250 मील) की ऊंचाई पर स्थित है और यह ऊंचाई समय के साथ बदलती रहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ISS की कक्षा में हलचल होती रहती है, और इसे विभिन्न तरीकों से नियंत्रित किया जाता है, ताकि इसकी कक्षा स्थिर बनी रहे।
कितने अंतरिक्ष यात्री ISS पर जा चुके हैं?
ISS के निर्माण के बाद से अब तक 22 देशों से 281 अंतरिक्ष यात्री, वैज्ञानिक और इंजीनियर इसपर जा चुके हैं। यह संख्या समय के साथ बढ़ती जा रही है क्योंकि ISS पर नियमित अंतरिक्ष मिशन होते रहते हैं।
इनमें अमेरिका (USA) से 167 अंतरिक्ष यात्री, 57 अंतरिक्ष यात्री रूस से, 12 अंतरिक्ष यात्री जापान से, कनाडा से 8 अंतरिक्ष यात्री ISS पर गए हैं। वहीं यूरोप के विभिन्न देशों से 29 अंतरिक्ष यात्री और भारत, मलेशिया, सऊदी अरब, और दक्षिण अफ्रीका सहित कई अन्य देशों से कुछ गिने-चुने अंतरिक्ष यात्री इस शोध में हिस्सा ले चुके हैं।
सुनीता विलियम्स ISS पर मौजूद
भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स भी इस समय ISS पर मौजूद हैं। वह पहले बोइंग के स्टारलाइनर मिशन का हिस्सा थीं, जो एक छोटी अवधि का मिशन था। लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण उनका मिशन 8 महीने से ज्यादा लंबा हो गया। सितंबर 2024 में सुनीता ने ISS की कमान संभाली और अब वह एक्सपीडिशन 72 का हिस्सा हैं।
सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष स्टेशन पर वैज्ञानिक अनुसंधान और कई महत्वपूर्ण प्रयोगों में योगदान दे रही हैं। उन्होंने हाल ही में दिवाली के अवसर पर अंतरिक्ष से शुभकामनाएं भेजीं, जिसमें उन्होंने इस त्योहार के प्रकाश और आशा के संदेश पर जोर दिया।