हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में हुई एक शादी ने इंटरनेट पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यहां हुई एक शादी में एक दुल्हन के साथ दो दूल्हों ने सात फेरे लिए है। गौर करने वाली यह है कि दोनों ही दूल्हे एक-दूसरे के भाई हैं। बताया जा रहा है यह विवाह के हट्टी समुदाय के पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए किया गया है। इस परंपरा को कई नामों से जाना जाता है, जिसमें द्रौपदी प्रथा नाम को बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में बहुविवाह यानी एक से अधिक विवाह की परंपरा केवल हट्टी नहीं कुछ अन्य खास समुदायों और जनजातियों में भी प्राचीन काल से चली आ रही है। हालांकि आज के समय में देश के कानूनों ने इसे सीमित कर दिया है, लेकिन कुछ जगहों पर यह आज भी सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों से देखा जा सकता है। बहुविवाह की परंपरा को समझने के लिए हमें इसके ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और क्षेत्रीय पहलुओं को भी जानना जरूरी है।
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इतिहास क्या कहता है?
भारत का समाज सदियों से विविधताओं से भरा रहा है। राजा-महाराजाओं के समय में बहुविवाह को एक सामान्य बात माना जाता था। इसके पीछे मुख्य कारण थे- वंश वृद्धि, राजनीतिक गठबंधन और सामाजिक प्रतिष्ठा। एक राजा कई रानियों से विवाह करता था, ताकि विभिन्न राज्यों और समुदायों से संबंध स्थापित किए जा सकें। महाभारत में भी बहुविवाह के उदाहरण मिलता है।
उदाहरण के तौर पर, पांडवों की माता कुंती के पति राजा पांडु की दो पत्नियां थीं- कुंती और माद्री। द्रौपदी ने भी पांचों पांडव भाइयों के साथ विवाह किया था।
धार्मिक दृष्टिकोण
हिंदू धर्म में एक समय तक बहुविवाह की छूट रही है, खासकर पुरुषों के लिए। हालांकि मनुस्मृति और अन्य धर्मशास्त्रों में एक पत्नी को ही मुख्य रूप से मान्यता दी गई है लेकिन समय के साथ बहुविवाह को प्रतिष्ठा और शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा।
इस्लाम धर्म में बहुविवाह की अनुमति है लेकिन कुछ शर्तों के साथ। कुरान के अनुसार, एक पुरुष अधिकतम चार निकाह कर सकता है, बशर्ते कि वह सभी पत्नियों के साथ न्याय कर सके। यह प्रथा आज भी भारत के मुस्लिम समुदाय में सीमित रूप से प्रचलित है।
सिक्ख, जैन और बौद्ध धर्म में एक पत्नी की व्यवस्था को प्राथमिकता दी गई है, और बहुविवाह को बहुत प्रोत्साहित नहीं किया गया।
आदिवासी और जनजातीय समाजों में बहुविवाह
भारत के आदिवासी समुदायों में बहुविवाह की परंपरा सांस्कृतिक और आर्थिक कारणों से भी जुड़ी रही है। यह प्रथा कुछ जनजातियों में आज भी सीमित रूप से प्रचलित है, हालांकि इसके स्वरूप में बदलाव आया है।
- गोंड जनजाति – मध्य भारत के छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पाई जाने वाली यह जनजाति सामाजिक रूप से बहुविवाह को मान्यता देती रही है। यदि कोई पुरुष आर्थिक रूप से संपन्न होता है, तो वह एक से अधिक पत्नियां रख सकता है।
- टोडा जनजाति – तमिलनाडु की नीलगिरि पहाड़ियों में रहने वाली टोडा जनजाति में एक विशेष प्रकार की बहुविवाह की प्रथा रही है, जहां एक महिला के कई पति होते थे (पॉलीएंड्री)। हालांकि समय के साथ यह परंपरा लगभग समाप्त हो चुकी है।
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- जौनसारी और हिमालयी जनजातियां – उत्तराखंड की कुछ जनजातियों में पहले बहुविवाह की परंपरा थी। इस प्रकार के विवाह का उद्देश्य पारिवारिक जमीन और संपत्ति को विभाजित होने से बचाना होता था।
- नागा और मिजो जनजातियां – पूर्वोत्तर भारत की कुछ जनजातियों में भी बहुविवाह की प्रथा रही है। किसी व्यक्ति के पास यदि पर्याप्त संसाधन होते, तो वह एक से ज्यादा शादी कर सकता था। हालांकि, अब आधुनिक शिक्षा और सामाजिक बदलाव की वजह से यह प्रथा कम होती जा रही है।
वर्तमान समय में बहुविवाह की स्थिति
आज के समय में भारत में बहुविवाह को कानूनी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है, सिवाय मुस्लिम समुदाय के, जहां यह धर्म के अनुसार कुछ सीमा तक वैध है। हालांकि, कुछ दूरदराज के क्षेत्रों में, खासकर जहां शिक्षा और कानून की पहुंच सीमित है, वहां आज भी बहुविवाह करते हैं, जिसे हिमाचल प्रदेश हालही में सामने आई घटना में देखा गया है।