देशभर में नवरात्रि का पर्व चल रहा है। गुजरात और पश्चिमी भारत में जहां गरबा और डांडिया की धूम है, वहीं बिहार और पूर्वांचल की धरती पर झिझिया कभी नवरात्रि का अभिन्न हिस्सा हुआ करती थी। आज गरबा–डांडिया के रंग सोशल मीडिया और बड़े आयोजनों में चारों ओर छाए हैं लेकिन झिझिया जैसी परंपरा धीरे-धीरे गुम होती जा रही है। भोजपुरी कलाकार खेसारी लाल यादव ने अपने एक्स हैंडल पर झिझिया लोक नृत्य की बात करते हुए लोगों को दोबारा याद करवाया है।
गरबा और डांडिया का संबंध मुख्य रूप से गुजरात से है। इसमें महिलाएं सिर पर दीए रखकर या गोल घेरे में घूमकर मां अम्बा की आराधना करती हैं। डांडिया में लकड़ी की डंडियों के साथ तालमेल बिठाकर सामूहिक नृत्य होता है। यह आयोजन भक्ति के साथ-साथ उत्साह, रंग और सामूहिकता का प्रतीक माने जाते हैं। वहीं, झिझिया बिहार और पूर्वांचल की प्राचीन लोक परंपरा है। खेसारी लाल यादव ने अपने एक्स हैंडल पर इस लोक नृत्य की चर्चा करते हुए लिखा, 'आज डर लागेला कि कहीं आधुनिकता के भीड़ में झिझिया खो न जाए। हम दिल से चाहतानी कि गरबा जइसन ही झिझिया पर भी खूब चर्चा होखे, लोग लिखे, गाए, वीडियो बनावे, फेसबुक–इंस्टा पर डाले, ताकि आने वाली पीढ़ी जाने कि ई हमनी के पहचान बा, गौरव बा।'
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खेसारी लाल यादव ने क्या है?
खेसारी लाल यादव ने अपने एक्स हैंडल पर झिझिया को अपना गौरव और बिहार, पूर्वांचल संस्कृति की अनमोल धरोहर बताते हुए लिखा, 'आजकल देखS तानी, चारो ओर गरबा नाइट मनावल जात बा.. मनाईं, जरूर मनाईं काहे कि हर संस्कृति के सम्मान करल जरूरी बा। बाकी दिल से एगो बात कहे के मन कर रहल बा.. बिहार आ पूर्वांचल संस्कृति के एगो अनमोल धरोहर बा, झिझिया, जे के धीरे-धीरे लोग भुला रहल बा! आज डर लागेला कि कहीं आधुनिकता के भीड़ में झिझिया खो न जाए। हम दिल से चाहतानी कि #गरबा जइसन ही #झिझिया पर भी खूब चर्चा होखे, लोग लिखे, गाए, वीडियो बनावे, फेसबुक–इंस्टा पर डाले, ताकि आने वाली पीढ़ी जाने कि ई हमनी के पहचान बा, गौरव बा।'
खेसारी ने इतिहास और संस्कृति को याद दिलाते हुए लिखा, 'काहे से, जवन समाज आपन इतिहास, आपन संस्कृति भूल जाला, उ धीरे–धीरे आपन जड़ से कट जाला। एही खातिर हमनी सबके चाहीं कि गरबा भी मनाईं, आनंद भी लीं लेकिन झिझिया के भी उतने ही गर्व से आगे बढ़ाईं। जय बिहार!'
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झिझिया क्या है?
झिझिया बिहार और पूर्वांचल के पारंपरिक लोक नृत्य के रूप में जाना जाता है। इसमें नवरात्रि की रातों में गांव की महिलाएं और लड़कियां सिर पर मिट्टी का घड़ा रखती थीं, जिसमें छोटे-छोटे छेद होते थे और भीतर दिया जलता था। नृत्य करते समय यह दिया अंधेरे में झिलमिलाता था। झिझिया के गानों में देवी दुर्गा की महिमा गाई जाती और सामूहिकता से गांव के लोग मिलकर एक साथ में भक्ति से नृत्य करते हैं।