बिहार की विधानसभा सीटों की गिनती जब शुरू होती है तो वह सीमावर्ती जिलों में मौजूद खास सीटों से भी देश का ध्यान खींचती है। मधुबनी जिले की खजौली विधानसभा सीट भी उन्हीं में से एक है। यह सीट नेपाल सीमा से सटी हुई है और इसके पूर्व में जयनगर, दक्षिण में राजनगर और पश्चिम में बाबूबरही जैसी सीटें आती हैं। नेपाल की खुली सीमा और लगातार आने-जाने वाले लोगों की वजह से यहां अंतरराष्ट्रीय सीमा सुरक्षा और संवेदनशील सामाजिक मुद्दे हमेशा से महत्त्वपूर्ण रहे हैं।
खजौली में ग्रामीण इलाका सबसे ज्यादा है और यहां की लाइफस्टाइल भी वैसी ही है। कमजोर सड़क नेटवर्क, हर साल आने वाली कमला और अन्य नदियों की बाढ़ें और सीमित स्वास्थ्य व शिक्षा संसाधन यहां के प्रमुख चुनावी मुद्दों में गिने जाते हैं। नेपाल से आने-जाने वाले व्यापार और रोजगार का सीधा प्रभाव यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर पड़ता है।
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2008 में परिसीमन
2008 के परिसीमन से पहले यह इलाका मधुबनी की दूसरी विधानसभा सीटों के अंतर्गत आता था। परिसीमन के बाद खजौली को अलग विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया। इस सीट पर मुस्लिम और ओबीसी वर्ग का वोट काफी निर्णायक होता है। यहां के अधिकतर बूथ नेपाल सीमा के नजदीक पड़ते हैं, जिससे सुरक्षा और प्रशासनिक मुद्दे भी प्रमुख रहते हैं।
मौजूदा राजनीतिक समीकरण
वर्तमान में बिहार की खजौली विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कब्जा है और अरुण शंकर प्रसाद यहां के मौजूदा विधायक हैं। उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी प्रत्याशी सीताराम यादव को हराकर यह सीट जीती थी। यह चुनाव बीजेपी और महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों) के बीच सीधा मुकाबला था, जिसमें बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिला।
इससे पहले 2015 में यह सीट आरजेडी के पास थी और सीताराम यादव विधायक चुने गए थे लेकिन 2020 में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। RJD का इस सीट पर कभी-कभार प्रभाव जरूर रहा है लेकिन 2020 के चुनाव में जेडीयू की स्थिति निर्णायक नहीं रही।
अब जब 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, तो बीजेपी अपनी सीट को बचाने की कोशिश में जुटी है जबकि महागठबंधन की ओर से आरजेडी और कांग्रेस दोनों ही इस सीट पर वापसी की रणनीति बना रहे हैं। सीमावर्ती इलाका होने और बाढ़, शिक्षा व पलायन जैसे मुद्दों के चलते यहां का चुनावी माहौल हमेशा खास बना रहता है।
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2020 में क्या हुआ था?
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में खजौली सीट पर मुकाबला बेहद रोचक रहा। इस सीट पर बीजेपी के अरुण शंकर प्रसाद और आरजेडी के सीताराम यादव के बीच मुख्य टक्कर हुई। अंततः बीजेपी के अरुण शंकर प्रसाद ने 83,161 वोट (44.51 %) प्राप्त कर जोरदार जीत हासिल की, जबकि आरजेडी के सीताराम यादव को 60,472 वोट (32.37 %) मिले, और जीत का अंतर 22,689 वोट रहा।
भले ही उस चुनाव में अन्य पार्टियों जैसे कांग्रेस, AIMIM, LJP आदि ने भी प्रत्याशी उतारे थे—इनमें से जन अधिकार पार्टी‑लोकतांत्रिक के ब्रज किशोर यादव को 13,589 वोट मिले और कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी महत्वपूर्ण वोट शेयर प्राप्त किया, लेकिन मुख्य मुकाबला स्पष्ट रूप से बीजेपी और आरजेडी के बीच ही था।
यह सीमावर्ती क्षेत्र लंबे समय से एनडीए की पकड़ में रहा है। हालांकि 2015 में सीताराम यादव ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2020 में बीजेपी ने न सिर्फ वापसी की बल्कि मजबूत बहुमत हासिल किया। सीमावर्ती स्थिति, बाढ़, शिक्षा एवं पलायन जैसे स्थानीय चुनावी मुद्दों के बावजूद गणित बीजेपी के पक्ष में गया, जिससे खजौली विधानसभा चुनाव 2020 एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधे मुकाबले की परीक्षा बनकर सामने आया।
विधायक का परिचय
खजौली विधानसभा सीट से वर्तमान विधायक अरुण शंकर प्रसाद 2010 में खजौली से पहली बार विधायक बने थे और फिर 2020 में दोबारा इस सीट पर जीत हासिल की। उनके पास पोस्ट-ग्रेजुएट की डिग्री (ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी, दरभंगा से 1987 में) है और उनके हलफनामे के अनुसार वह सोशल वर्कर, कृषि व्यवसायी, और एक विधायक के तौर पर पेंशन प्राप्तकर्ता हैं। अरुण शंकर प्रसाद मुख्यतः जमीनी नेता माने जाते हैं ओबीसी समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ है।
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विधानसभा का इतिहास
खजौली सीट को बने हुए तीन चुनाव हो चुके हैं और तीनों में अलग-अलग राजनीतिक रंग देखने को मिले हैं:
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2010 –अरुण शंकर प्रसाद (BJP)
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2015 – सीताराम यादव (RJD)
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2020 – अरुण शंकर प्रसाद (BJP)
इस तरह यह सीट अब एनडीए और महागठबंधन के बीच बारी-बारी से झूलती रही है। यहां स्थानीय उम्मीदवारों का व्यक्तिगत प्रभाव और जातीय संतुलन ही जीत-हार तय करता है।
