पुरानी दिल्ली के भीड़भाड़ वाले चांदनी चौक इलाके में स्थित प्राचीन गौरीशंकर मंदिर आज भी सैकड़ों वर्षों पुरानी आस्था और पौराणिक परंपरा का प्रतीक बना हुआ है। भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित यह मंदिर न केवल अपनी दिव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और अद्भुत स्थापत्य कला इसे दिल्ली के प्रमुख धार्मिक स्थलों में एक विशेष स्थान दिलाती है।
करीब 18वीं शताब्दी में मराठा सरदार आपा गंगाधर (भाऊराव होलकर) के जरिए बनवाया गया यह मंदिर पारे (मरकरी) से बने प्राचीन शिवलिंग की वजह से भी बहुत प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यह शिवलिंग करीब 800 साल पुराना है और स्वयंभू रूप में प्रकट हुआ था। भक्तों की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से पूजा करने पर वैवाहिक सुख और संतान की प्राप्ति होती है।
यह भी पढ़ें: चांदनी चौक का दिगंबर जैन मंदिर, जहां धमाके से टूट गए शीशे, क्या है उसका इतिहास?
मंदिर का इतिहास
गौरीशंकर मंदिर दिल्ली के चांदनी चौक में दिगंबर जैन लाल मंदिर और लाल किले के नजदीक स्थित है। यह मंदिर दिल्ली के सबसे पुराने शिवालयों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग 800 वर्ष पुराना है और इसका वर्तमान स्वरूप 18वीं शताब्दी में तैयार किया गया था।
मंदिर का पुनर्निर्माण मराठा सरदार आपा गंगाधर ने 1761 ईसवी में करवाया था। मराठा शासनकाल के दौरान यह मंदिर दिल्ली की धार्मिक पहचान का केंद्र बना है।
गौरीशंकर मंदिर की विशेषताएं
- भगवान शिव और देवी पर्वती को समर्पित - मंदिर में स्थापित मुख्य शिवलिंग फ्रोजन मरकरी (पारा) से निर्मित बताया जाता है, जो बहुत दुर्लभ और पवित्र माना जाता है।
- प्राचीन स्थापत्य कला - मंदिर की बाहरी संरचना प्राचीन उत्तरी भारतीय शैली में बनी है। इसके ऊंचे शिखर, घंटाघर और नक्काशीदार द्वार इसे विशिष्ट बनाते हैं।
- गौरी-शंकर की मूर्तियां - मंदिर में भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की मूर्ति विराजमान है, जिनके पीछे गणेश जी और कार्तिकेय जी की मूर्तियां भी हैं।
- शिवलिंग का महत्व - यहां का शिवलिंग 800 साल पुराना बताया जाता है और माना जाता है कि यह स्वयंभू है।
- शिवरात्रि का विशेष आयोजन - हर वर्ष महाशिवरात्रि और सावन मास में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।
इस मंदिर से जुड़ी मान्यता
कहते हैं कि जो व्यक्ति सच्चे मन से यहां भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता है, उसे वैवाहिक जीवन में सुख और संतान की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि शिव-पार्वती की उपासना के लिए यह स्थल स्वयं भगवान शिव द्वारा चुना गया था और यहां की ऊर्जा बहुत शक्तिशाली है।
यह भी पढ़ें: थिल्लई नटराज मंदिर: बनावट से लेकर कहानी तक, यहां जानें सबकुछ
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
लोककथा के अनुसार, एक महान सैनिक आपा गंगाधर युद्ध के समय गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि अगर वह जीवित बच गए, तो वह शिव और पार्वती का एक भव्य मंदिर बनवाएंगे।
उनकी प्रार्थना सफल हुई, वह चमत्कारिक रूप से स्वस्थ हो गए, और फिर उन्होंने गौरीशंकर मंदिर का निर्माण कराया। इसलिए इस मंदिर को 'भक्त की प्रतिज्ञा का साक्षी मंदिर' भी कहा जाता है। एक अन्य कथा यह भी है कि यहां का शिवलिंग स्वयं भू रूप में प्रकट हुआ था, यानी किसी ने उसे स्थापित नहीं किया। वह धरती से स्वयं प्रकट हुआ। इसी वजह से इसे बहुत पवित्र और शक्तिशाली तीर्थ माना जाता है।
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
- निकटतम मेट्रो स्टेशन: लाल किला या चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन
- रेलवे स्टेशन: पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन लगभग 2 किमी दूर
- कैसे पहुंचें: चांदनी चौक से पैदल 5 मिनट की दूरी पर मंदिर स्थित है।