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थिल्लई नटराज मंदिर: बनावट से लेकर कहानी तक, यहां जानें सबकुछ

तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले में स्थित थिल्लई नटराज मंदिर अपनी बनावट और मान्यता के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस मंदिर को तमिलनाडु के पंचभूत स्थलों में से एक माना जाता है।

Natraj mandir

नटराज मंदिर: Photo credit: Wikipedia

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तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले में स्थित चिदंबरम नटराज मंदिर, जिसे थिल्लई नटराज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसे केवल एक मंदिर नहीं बल्कि भारतीय आध्यात्मिकता, नृत्य और दर्शन का जीवंत प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के नटराज रूप को समर्पित यह मंदिर उस दिव्य स्थान के रूप में माना जाता है, जहां स्वयं शिव ने आनंद तांडव, यानी सृष्टि के विकास और विनाश का नृत्य किया था।

 

लगभग 40 एकड़ में फैला यह भव्य मंदिर दक्षिण भारत की प्राचीन द्रविड़ शैली वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसकी चारों दिशाओं में ऊंचे गोपुरम और स्वर्ण मंडप इसकी दिव्यता को और बढ़ाते हैं। यहां स्थापित नटराज प्रतिमा ब्रह्मांड की अनंत ऊर्जा और चेतना का प्रतीक मानी जाती है। माना जाता है कि यह वही पवित्र स्थान है, जहां भगवान शिव ने ऋषियों के अहंकार को शांत करने के लिए तांडव किया था और उन्हें दिखाया कि परम सत्य केवल ज्ञान और भक्ति से ही प्राप्त होता है। 

 

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नटराज मंदिर से जुड़ी मान्यता 

यह मंदिर भगवान शिव के नटराज रूप अर्थात् 'नृत्य के अधिपति' को समर्पित है। मान्यता है कि जब सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार का चक्र चलता है, तब भगवान शिव नटराज रूप में तांडव नृत्य करते हैं। यह नृत्य 'आनंद तांडव' कहलाता है, जो ब्रह्मांड के विकास और विनाश का प्रतीक माना जाता है।

 

यह भी माना जाता है कि नटराज मंदिर ही 'आकाश तत्त्व' का प्रतिनिधित्व करता है। पंचभूत स्थलों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) में यह मंदिर आकाश तत्त्व का प्रतीक माना जाता है।

 

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नटराज मंदिर की विशेषता

  • द्रविड़ शैली की भव्य वास्तुकला - मंदिर 40 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें चारों दिशाओं में विशाल गोपुरम (प्रवेश द्वार) बने हैं।
  • स्वर्ण मंडप - मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान नटराज की प्रतिमा नृत्य मुद्रा में स्थापित है। यह स्थान 'कनक सभा' कहलाता है। माना जाता है कि भगवान ने यहीं पर आनंद तांडव किया था।
  • चितंबर रहस्य - मंदिर के भीतर एक विशेष पर्दे के पीछे 'खाली स्थान' दिखाया गया है, जो अदृश्य ब्रह्म (परम तत्व) का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि भगवान हर जगह उपस्थित हैं लेकिन उन्हें देखना श्रद्धा और भक्ति पर निर्भर करता है।
  • संगीत और नृत्य का केंद्र - यह मंदिर भरतनाट्यम नृत्य का जन्मस्थल माना जाता है।
  • भगवान शिव और विष्णु जी की एकता का प्रतीक - यहां भगवान विष्णु की मूर्ति भी स्थापित है, जो दर्शाता है कि भगवान शिव और विष्णु जी एक ही परम सत्य के दो रूप हैं।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता

किवदंती है कि एक बार भगवान शिव थिल्लई वन में गए, जहां कुछ ऋषि तपस्या कर रहे थे। वह मानते थे कि यज्ञ और मंत्रों से ही सृष्टि संचालित होती है। भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक भिक्षुक रूप धारण किया। उनकी दिव्य लीला देखकर ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने शिव जी पर कई शक्तिशाली मंत्र छोड़े, ऋषियों ने एक सांप भेजा, जिसे शिव जी ने अपने गले में हार की तरह धारण कर लिया।

 

फिर उन्होंने एक बाघ भेजा, जिसे भगवान शिव ने मारकर उसकी खाल पहन ली। अंत में उन्होंने एक बौने रूप वाले अपस्मार दैत्य को भेजा, जिसे शिव जी ने अपने पैरों के नीचे दबाकर आनंद तांडव नृत्य किया। इस प्रकार, भगवान शिव ने अपने तांडव से ऋषियों का अहंकार तोड़ा और उन्हें दिखाया कि परम शक्ति भक्ति और प्रेम में निहित है।

 

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता 

नजदीकी एयरपोर्ट: निकटतम एयरपोर्ट तिरुचिरापल्ली है, जो इस मंदिर से लगभग 195 किमी दूर है।

नजदीकी रेलवे स्टेशन: चिदंबरम रेलवे स्टेशन प्रमुख दक्षिण भारतीय शहरों से सीधा जुड़ा है - चेन्नई, तिरुचिरापल्ली, मदुरै और तंजावुर से ट्रेनें चलती हैं।

सड़क मार्ग: तमिलनाडु राज्य परिवहन की बसें चेन्नई, पुदुचेरी और तंजावुर से नियमित रूप से चिदंबरम जाती हैं।


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