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समुद्र मंथन से जुड़े प्रदोष व्रत की शुरुआत कैसे हुई, जानें कथा

हिंदू धर्म में बहुत से लोग महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करते हैं। आइए जानते हैं प्रदोष तिथि की शुरुआत कब हुई थी और इसके पीछे की कथा क्या है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

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हिंदू धर्म में हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला प्रदोष व्रत आज भी श्रद्धालुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष काल, जो सूर्यास्त के 1.5 घंटे पहले या बाद का समय होता है। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे अनुकूल माना गया है। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुए हलाहल विष से देवताओं और प्राणियों को संकट में देखकर भगवान शिव ने विष पीकर संसार को सुरक्षित किया और माता पार्वती ने उन्हें शांत किया। तब से इस दिन व्रत और पूजा की परंपरा चली आ रही है।

 

श्रद्धालुओं का मानना है कि प्रदोष व्रत करने से पाप नष्ट होते हैं, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है और शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह व्रत आध्यात्मिक प्रगति और ध्यान साधना में भी मदद करता है।

 

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प्रदोष व्रत की शुरुआत कैसे हुई?

प्रदोष व्रत की शुरुआत समुद्र मंथन से जुड़ी एक पौराणिक कथा से मानी जाती है। समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष उत्पन्न हुआ, तो उसके प्रभाव को खत्म करने के लिए भगवान शिव ने उसे पी लिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया। इस संकट के समय माता पार्वती ने उन्हें शांत किया। तब से यह दिन प्रदोष के रूप में मनाया जाता है, जिससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त हो सके। 

प्रदोष व्रत क्यों रखते हैं लोग?

  • प्रदोष व्रत के पालन से अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं।
  • पापों का नाश: इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करता है।
  • सुख-समृद्धि की प्राप्ति: यह व्रत घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
  • शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत रखने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • संतान सुख: यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
  • शिव की कृपा: भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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प्रदोष व्रत की पूजा विधि

  • स्नान और शुद्धता: पूजा से पहले नहा कर साफ कपड़े पहनें।
  • दीप जलाना: शिवलिंग या भगवान शिव की प्रतिमा के पास दीपक लगाएं।
  • पुष्प और बेलपत्र अर्पित करना: शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, फूल और फल अर्पित करें।
  • ध्यान और मंत्र जाप: ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें और ध्यान लगाएं।
  • आरती: पूजा के अंत में शिव आरती का पाठ करें।

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह दिन भगवान शिव की विशेष पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और वह आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।


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