विजयादशमी के परंपरागत उत्सव के पीछे छिपी असली कहानी पर राजेंद्र दास जी महाराज ने नई व्याख्या दी है। महाराज के अनुसार, यह दिन केवल रावण वध का प्रतीक नहीं है। उनका कहना है कि विजयादशमी के दिन भगवान राम ने देवी सीता की खोज के लिए शस्त्र पूजन करके युद्ध और धर्म की स्थापना की तैयारी की थी। लोक मान्यता में यह दिन रावण वध के रूप में मान लिया गया और उसी भ्रम के चलते पुतला जलाया जाने की परंपरा शुरू हुई।
राजेंद्र दास जी ने एक कथा के दौरान कहा, 'विजयादशमी के दिन रावण का वध नहीं हुआ था, बल्कि उस दिन शस्त्र पूजन के साथ विधिवत मुहूर्त देखकर देवी सीता की खोज के लिए प्रस्थान किया गया था। उन्होंने कहा जब भगवान राम ने यह संकल्प किया कि विजयादशमी के दिन से ही देवी सीता की खोज के लिए सब जाएंगे, तब लोगों ने उसी दिन रावण को मरा हुआ मान लिया था और उसका पुतला बनाकर जला दिया था, तभी से विजयादशमी के दिन रावण का पुतला जलाने की परंपरा शुरू हुई और वह चलती चली आ रही है।'
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राजेंद्र दास जी ने कहा, 'विजयादशमी रावण के मरने की तिथि नहीं है, बल्कि यह देवी सीता की खोज के लिए जानें की तिथि है।'
राजेंद्र दास जी महाराज का दृष्टिकोण
- उन्होंने विजयादशमी को रावण वध के दिन के रूप में नहीं बताया है।
- उनका कहना है कि विजयादशमी के दिन भगवान राम ने देवी सीता की खोज के लिए शस्त्र पूजन करके युद्ध या अभियान की शुरुआत की थी।
- यानी, वह दिन युद्ध की तैयारी और धर्म की स्थापना की शुरूआत का प्रतीक था।
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परंपरागत मान्यता और भ्रम
- लोगों ने भगवान राम के शस्त्र पूजन और अभियान की शुरुआत को देखा और समझ लिया कि रावण का वध हो चुका है।
- इसी भ्रम के वजह रावण का पुतला जला दिया गया, जो बाद में विजयादशमी के त्योहार का मुख्य प्रतीक बन गया।