बिहार का बलरामपुर इलाका, 1856 में यहीं पर सिराज उद दौला और नवाबजंग के बीच युद्ध हुआ था। इसमें 12 हजार लोगों की जान गई थी। इसी के बाद अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया पर कब्जे के लिए इसे अपना गढ़ बनाया और यहां शुष्क बंदरगाह की शुरुआत की। यह इलाका बिहार के गेट-वे के तौर पर जाना जाता था। हालांकि, समय के साथ इस इलाके की अहमियत घटती गई। पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर बने फरक्का बराज से इलाका पानी में डूबता गया और इसका विकास वहीं ठहर गया। 

 

यह इलाका कोसी और महानंदा नदियों के संगम पर बसा हुआ है और गंगा के उत्तरी तट पर फैला हुआ है। यही वजह है कि कई नदियां और नहर इस इलाके को सींचते हुए गुजरती हैं। यह बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में से एक माना जाता है। यहां के ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं। यहां दालें, मक्का और जूट की खेती की जाती है। इलाके में उद्योग के नाम पर कुछ चावल की मिलें हैं।  

 

राजनीति की बात करें तो यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इसमें बरसोई और बलरामपुर प्रखंड शामिल हैं। मुस्लिम बहुल सीट होने के बावजूद यहां के पहले विधायक हिंदू रहे हैं। यह सीट ज्यादा पुरानी नहीं है और उन बचे खुचे इलाकों में है जहां कम्यूनिस्ट पार्टी की पकड़ अब भी मजबूत है। 

 

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 मौजूदा समीकरण

सीट पर कोई बड़ा दल आजतक जीत हासिल नहीं कर पाया है। पिछले 2 विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि NDA के लिए इस सीट को छीन पाना आसान नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस उम्मीदवार ने लगभग 50 हजार वोटों से JDU के उम्मीदवार को हराया था। अगर JDU और BJP इलाके के किसी बड़े मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाते हैं तो ही चुनाव में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। 

2020 में क्या हुआ था?

2020 में यह सीट कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-ML) के उम्मीदवार महबूब आलम के खाते में गई थी। वह 50 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे। इस सीट से LJP और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी ने चुनाव लड़ा था। LJP तीसरे नंबर पर रही थी। 2020 का चुनाव LJP ने NDA से अलग होकर लड़ा था। BJP या JDU ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे।

 

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विधायक का परिचय

1956-1957 के बीच पैदा हुए महबूब आलम बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी के पुराने नेता है। उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई की है और वह कृषि विशेषज्ञ के तौर पर जाने जाते हैं। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1985 में बारसोई सीट से लड़ा था लेकिन वो दूसरे नंबर पर रहे। महबूब आलम के खिलाफ हत्या, दंगों से लेकर अलग-अलग अपराधों के कई मुकदमे दर्ज हैं। 2000 में वह 17 महीने जेल में भी रहे थे। इस साल बारसोई सीट से उन्होंने अपना पहला चुनाव जीता था।

 

उन्होंने लोकसभा चुनाव में भी कई बार अपनी किस्मत आजमाई पर हार ही मिली। महबूब आलम को 2014 के लोकसभा चुनाव में नामांकन दाखिल करने के तुरंत बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। 2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक महबूब आलम के पास 30 लाख रुपये से ज्यादा संपत्ति है। 

 

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सीट का इतिहास 

इस सीट पर पहला चुनाव 2010 में लड़ा गया था। इसमें एक हिंदू उम्मीदवार दुलाल चंद्र गोस्वामी को जीत हासिल हुई। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में CPI(ML)(L) के महबूब आलम को हराया था। हालांकि, बाद में गोस्वामी JDU में शामिल हो गए।  इसके बाद 2015 और 2020 में महबूब आलम ने ही ये सीट जीती।

 

2010-  दुलाल चंद्र गोस्वामी (निर्दलीय)

2015- महबूब आलम (CPI-ML)

2020- महबूब आलम (CPI-ML)