1957 में जब चुनाव हुए तो एक बार फिर साथ-साथ लोकसभा के भी चुनाव हो रहे थे। देश में पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार थी और आजादी के 10 साल बाद भी देश में कांग्रेस को कोई खास चुनौती नहीं मिल रही थी। मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा के लिए चुनौती अनुग्रह नारायण सिंह थे जो उन्हीं की पार्टी में थे। फिर भी दोनों एक-दूसरे को साथ लेकर चलते थे। कांग्रेस और पंडित नेहरू की लोकप्रियता पर सवार श्रीकृष्ण सिन्हा दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ रहे थे और देश के साथ-साथ बिहार भी पहली बार प्रचार के नए-नए तरीके देख रहा था।
5 साल सरकार चलाने के बाद कांग्रेस जनता को बता रही थी कि उसने पुलिया बनवाई, स्कूल बनवाए और जमींदारी उन्मूलन जैसे काम किए। 1952 से 1957 के चुनाव के बीच बिहार में एक बदलाव हो गया था। राज्य पुनर्गठन आयोग 1956 की अनुशंसाओं के आधार पर बिहार की सीमा में बदलाव हुआ था। नतीजा हुआ था कि बिहार में जहां पहले कुल 330 सदस्य चुने जाने थे, अब यह संख्या 318 ही रह गई। इन दो चुनावों के बाद यह भी बदला था कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1953) और डॉ. भीमराव आंबेडकर (1956) का निधन हो चुका था। जय प्रकाश नारायण सक्रिय राजनीति से दूर होकर विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जुड़ गए थे।
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जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी और जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी का विलय करके प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी थी। 1955 आते-आते यह भी टूट गई थी और डॉ. लोहिया ने अपनी अलग सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी और जेपी राजनीति से दूर हो गए थे। इसी चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी का जनसंघ के नेता पर उदय हुआ था और वह पूरे देश में चर्चा पाने लगे थे।
आजाद भारत में फोर्ड फाउंडेशन जैसे तमाम संगठनों ने भी कई काम करवाए थे। पटना के 100 गांवों में ग्राम विकास कार्यक्रम शुरू किया गया था। 1957 का चुनाव आते-आते इस तरह के कार्यक्रम लगभग 5400 गांवों तक पहुंच चुके थे। इसके तहत करवाए गए कामों को भी कांग्रेस ने अपना बताकर खूब वोट मांगे। सोन नदी पर डेहरी ऑन सोन में पुल बना, गंगा पर मोकामा में पुल बना और कई अन्य काम पूरे हुए।
बूथ कैप्चरिंग और हेलिकॉप्टर
आजादी के सिर्फ 10 साल में ही बिहार ने बूथकैप्चरिंग भी देख ली। देश का दूसरा ही चुनाव था और बेगूसराज के रचियारी गांव के कछारी टोली बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा जमा लिया और किसी को वोट ही नहीं डालने दिया। कैप्चरिंग करने की कोशिश करने वाले शख्स कांग्रेस के उम्मीदवार सरयुग प्रसाद के समर्थक बताए गए। कहा जाता है कि बूथ कैप्चरिंग करने के साथ-साथ इन लोगों ने बैलट बॉक्स उठाकर कुएं में फेंक दिया था।
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इसी चुनाव में पहली बार देखा गया कि हेलिकॉप्टर से भी प्रचार हुआ। हजारीबाग जिले के रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह भी चुनाव लड़ रहे थे। तब कामाख्या नारायण सिंह ने अपने कुछ उम्मीदवार भी उतारे थे। इन्हीं उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार करने के लिए उन्होंने रूस से दो हेलिकॉप्टर मंगा लिए। उनके आगे देश की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के नेता भी शर्मा जाते थे क्योंकि तब तक कांग्रेस के नेता भी साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए प्रचार कर रही थी।
श्रीकृष्ण सिन्हा vs अनुग्रह नारायण
श्रीकृष्ण सिन्हा के समर्थन में रहने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद 1950 में ही राष्ट्रपति बन चुके थे और दूसरी बार भी चुने जा चुके थे। जय प्रकाश नारायण अनुग्रह नारायण के समर्थक थे लेकिन अब वह राजनीति से अलग हो गए थे। श्रीकृष्ण सिन्हा भूमिहार थे और अनुग्रह नारायण सिंह राजपूत। इसके चलते भी कई बार आपसी खींचतान हुआ करती थी।
आपसी खींचतान के बावजूद दोनों के रिश्ते निजी स्तर पर बेहद अच्छे रहते थे। 1957 के चुनाव में दोनों के बीच तल्खियां रहीं। जब नतीजे आए और श्रीकृष्ण सिन्हा का फिर से सीएम बनना तय हुआ तो अनुग्रह नारायण उनसे मिलने पहुंचे। इस बारे में शिवानंद तिवारी BBC को बताते हैं, 'अनुग्रह की गाड़ी आई तो श्रीबाबू दौड़कर उनके पास गए। दोनों गले लगे और रोने लगे।'
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कांग्रेस की एक और जीत, विपक्षी पस्त
हालांकि, 10 साल पहले आजाद हुए भारत के लिए अब चुनाव कम से कम अजूबे जैसी चीज नहीं रह गया था। बस इस बार विधानसभा की सीटें बदल गई थीं। इस बार 276 के बजाय 264 सीटें ही थीं। नतीजे आए तो एक बार फिर से कांग्रेस ही सबसे आगे निकली। कांग्रेस ने कुल 312 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 210 जीते। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) ने 220 उम्मीदवार उतारे थे लेकिन सिर्फ 31 ही जीत पाए। CNPSPJP ने 119 उम्मीदवार उतारे लेकिन 23 को ही जीत मिली। इसी तरह झारखंड पार्टी (JHP) ने 70 उम्मीदवार उतारे और उसके 31 उम्मीदवार ही जीत पाए।
इस चुनाव में कांग्रेस के दो दिग्गज नेता के बी सहाय और महेश प्रसाद सिन्हा ही चुनाव हार गए। हार के बाद महेश प्रसाद सिन्हा को तो खादी बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया लेकिन केबी सहाय खाली हाथ रह गए। इसी के चलते जय प्रकाश नारायण ने श्रीकृष्ण सिन्हा की आलोचना भी की। हालांकि, के बी सहाय कांग्रेस से दूर नहीं हुआ। नतीजा हुआ कि आगे चलकर यही केबी सहाय बिहार के मुख्यमंत्री भी बने।
बिहार विधानसभा चुनाव 1957
कुल विधानसभा सीट- 264
इस बार भी कुल 54 सीटें ऐसी थीं, जहां 2 उम्मीदवार चुने गए।
कुल चुने गए उम्मीदवार-318
मतदाता-1.92 करोड़
कुल मतदाता- 2.56 करोड़ (कुछ लोग दो या ज्यादा सीटों पर वोट दे सकते थे)
वोट पड़े- 1.05 करोड़
वोट प्रतिशत- 41.32 प्रतिशत