बिहार में साल 2000 में हुआ विधानसभा किसी 'सस्पेंस थ्रिलर फिल्म' से कम नहीं था। शुरुआत में लग रहा था कि इस चुनाव में एनडीए आसानी से जीत जाएगा। मगर ऐसा नहीं हुआ। लालू यादव और उनकी सहयोगी पार्टियों को भी इतनी सीटें नहीं मिलीं कि सरकार बना सकें। अपने दम पर मैदान में उतरी कांग्रेस की तो और भी बुरी हालत हो गई। चुनाव नतीजों के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ तो ले ली लेकिन बहुमत नहीं जुटा पाए। आखिरकार 7 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ गया।


चुनाव इतिहास में बिहार का 2000 का चुनाव काफी रोचक था। तब बिहार में 324 विधानसभा सीटें हुआ करती थीं और बहुमत के लिए 163 सीटों का आंकड़ा जरूरी था। 


जुलाई 1997 में लालू यादव का नाम चारा घोटाले में आ गया था। उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बन गई थीं। इसके बाद 1999 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो यह भी लालू यादव और कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हुए। लोकसभा चुनाव में राज्य की 324 में से 199 सीटों पर एनडीए को बढ़त मिली थी। इस कारण 2000 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने अकेले ही लड़ने का फैसला लिया। उसे डर था कि लालू यादव के साथ रहने से नुकसान हो सकता है। हालांकि, अकेले लड़ना कांग्रेस के लिए एक 'बुरा सपना' ही साबित हुआ। कांग्रेस ने सभी 324 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन जीत सिर्फ 23 को ही मिली। यह कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। कांग्रेस के 231 उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई थी।

 

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न कोई जीता, न कोई हारा

2000 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला था। लालू यादव की आरजेडी 124 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी। मगर वह सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं जुटा सकी। बीजेपी ने 67 सीटें जीतीं।


चुनाव नतीजे आने के बाद सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ का खेल शुरू हो गया। एनडीए ने 151 विधायकों का समर्थन जुटा लिया था। लालू यादव के पास 159 विधायकों का समर्थन था। फिर भी बहुमत नहीं जुटा पाए।

 

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7 दिन के लिए सीएम बने नीतीश कुमार

बिहार में जब चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए जब एनडीए और लालू खेमे में कवायद चल रही थी, तब नीतीश कुमार तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री थे।


ऐसा कहा जाता है कि चुनाव के बाद अटलजी के कहने पर बीजेपी के समर्थन से ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे। नतीजों के बाद नीतीश कुमार ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।


शपथ तो ले ली थी और अब काम बहुमत जुटाना था। माना जाता है कि इसके लिए कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की कथित कोशिश की गई थी। उस वक्त कांग्रेस के दो नेता मोहसिना किदवई और अजीत जोगी ने सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने कांग्रेस के सभी विधायकों को दिल्ली बुला लिया। काफी मशक्कत के बाद भी बहुमत नहीं जुटा तो 7 दिन में ही नीतीश कुमार ने इस्तफा दे दिया। उन्होंने अटलजी की तरह ही इस्तीफा देते हुए कहा कि वह जोड़-तोड़ से सरकार नहीं बनाना चाहते।

 

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...और फिर बनी राबड़ी देवी की सरकार

नीतीश कुमार के इस्तीफे से पहले ही साफ हो गया था कि यह सरकार बहुमत नहीं जुटा पाएगी। लिहाजा पर्दे के पीछे से लालू यादव अपनी चाल चलते रहे।


लालू यादव के पास पहले ही 159 विधायकों का समर्थन था। उन्हें सरकार के लिए 4 और विधायकों की जरूरत थी। इस चुनाव में कांग्रेस लालू यादव के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती थी। मगर फिर लालू यादव ने सोनिया गांधी से बातचीत की। मोहसिना किदवई और अजीत जोगी ने भी राबड़ी देवी की सरकार में शामिल होने का फैसला लिया।


आखिरकार 11 मार्च 2000 को राबड़ी देवी ने दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। नीतीश कुमार वापस केंद्र की राजनीति में चले गए और 2004 तक वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री रहे। 


2004 में वाजपेयी सरकार जाने के बाद नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए। इससे पहले अक्टूबर 2003 में शरद यादव की जनता दल और लोकशक्ति पार्टी के साथ नीतीश की समता पार्टी का विलय हो गया। इस तरह जनता दल (यूनाइटेड) अस्तित्व में आई। 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार फिर एनडीए में आ गए और जीत के बाद मुख्यमंत्री बने। तब से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री हैं।

 

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2000 का विधानसभा चुनाव: एक नजर में

  • कुल सीटेंः 324
  • बहुमत: 163
  • कुल वोटर: 6.00 करोड़
  • वोट पड़े: 3.75 करोड़
  • वोटिंग प्रतिशत: 62.57%
  • आरजेडी ने कितनी सीटें जीतीं: 124
  • कांग्रेस ने कितनी सीटें जीतीं: 23
  • बीजेपी ने कितनी सीटें जीतीं: 67
  • सीपीआई ने कितनी सीटें जीतीं: 5
  • झामुमो ने कितनी सीटें जीतीं: 12
  • सीपीएम ने कितनी सीटें जीतीं: 2
  • निर्दलीयों ने कितनी सीटें जीतीं: 20
  • समता पार्टी ने कितनी सीटें जीतीं: 34
  • जेडीयू ने कितनी सीटें जीतीं: 21
  • अन्य पार्टियों ने कितनी सीटें जीतीं: 16