बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सभी पार्टियों ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं के लिए कुछ न कुछ एलान किया है। इसमें कैश ट्रांसफर से लेकर कई और योजनाएं शामिल हैं। नीतीश कुमार ने ठीक चुनाव से पहले 75 लाख महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये ट्रांसफर किए। तेजस्वी यादव ने भी अपने घोषणा पत्र में महिलाओं के लिए माई-बहन योजना के तहत सभी पात्र को एकमुश्त 30000 रुपये की राशि देने का वादा किया है। बिहार में महिला वोटर की संख्या लगभग 3 करोड़ है। बिहार ही नहीं कई राज्यों में ऐसी योजनाएं चल रही है जहां महिलाओं को सीधे उनके अकाउंट में रुपये ट्रांसफर किए जाते हैं। इन सब योजनाओं से सरकारों पर वित्तीय बोझ बढ़ता है। PRS की रिसर्च से इस बात की पुष्टि होती है।

 

देशभर में महिलाओं को रुपये ट्रांसफर करना अब राज्यों की नई सामाजिक-राजनीतिक रणनीति बन चुका है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार अब तक 12 राज्यों ने महिलाओं के लिए ऐसी योजनाएं शुरू की हैं। ठीक दो साल पहले यानी वित्त वर्ष (FY) 2022-23 में ऐसे राज्यों की संख्या केवल दो थी।  

 

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PRS की स्टडी में खुलासा

PRS रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, 2025-26 में ये 12 राज्य मिलकर 1,68,050 करोड़ रुपये खर्च करेंगे। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 0.5 % है जबकि 2 साल पहले यह आंकड़ा 0.2 % से भी कम था।

चुनावी राज्यों का आंकड़ा

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन राज्यों में आने वाले साल में विधानसभा चुनाव होने हैं, खासकर इन योजनाओं पर खर्च में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। असम में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इन योजनाओं के लिए 31% अधिक रकम दी गई है। झारखंड सरकार ने अक्टूबर 2024 में सीएम मान सम्मान योजना के तहत महीने की राशि 1000 से बढ़ाकर 2500 रुपये कर दी। पश्चिम बंगाल में इसे लगभग 15% तक बढ़ा दिया। कई राज्यों में इसका उलट भी हुआ। कई राज्य लाभ की राशि को कम कर रहे हैं। जैसे महाराष्ट्र की सरकार ने अप्रैल 2025 में सीएम लाडली बहिन योजना की राशि 1500 से घटाकर 500 रुपये कर दी। यह राशि उन महिलाओं के लिए घटाई गई है जिन्हें पहले से किसानों के लिए चल रही योजना के तहत 1000 रुपये मिल रहे थे।

 

मध्य प्रदेश की 'लाडली बहना', महाराष्ट्र की 'लाडकी बहिन', कर्नाटक की 'गृह लक्ष्मी' और बिहार की 'सीएम महिला रोजगार योजना', सभी योजनाओं के तहत राज्य की सरकारों ने महिलाओं को कैश देने के जरिए उनको राहत देने की कोशिश की है। इन योजनाओं के तहत महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की कोशिश की जाती है लेकिन यह भी कहा जा सकता है कि इन योजनाओं के जरिए पार्टियों की महिलाओं तक सीधी पहुंच का भी एक आसान रास्ता बन गया है।

 

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RBI की चेतावनी

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने पहले ही सरकार को इसे लेकर चेताया था। RBI ने कहा था कि इस तरह की योजना जिससे कैश ट्रांसफर बढ़ाया जा रहा है इससे राज्यों पर वित्तीय दबाव बढ़ रहा है। PRS रिपोर्ट की मानें तो 12 में से 6 राज्यों ने साल 2025-26 के लिए राजस्व घाटे का अनुमान लगाया है। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कैश ट्रांसफर के खर्च को हटा दिया जाए तो इन राज्यों की राजस्व स्थिति बेहतर दिखती है।

 

ऐसी योजना सबसे पहले ओडिशा से शुरू हुई थी जब राज्य सरकार ने किसानों को नकद सहायता देना शुरू किया था। अब यही मॉडल महिलाओं तक पहुंच चुका है। इन योजनाओं से भले ही राजनीतिक दलों को कुछ समय के लिए फायदा मिल जाए पर लंबे समय के लिए राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ जाता है।