बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की यह लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कब्जे में हैं। 2015 में मुश्किल से यह सीट जीत पाने बीजेपी ने 2020 में अपने 5 बार के विधायक का टिकट काटकर नए उम्मीदवार को उतारा और अपनी सीट बचा ली। नेपाल और बिहार की सीमा पर बसा यह क्षेत्र लंबे समय से मांग करता रहा है कि यहां नया जिला बनाया जाए। इस क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि रक्सौल को नया 'उत्तरी चंपारण' जिला बना दिया जाए। नेपाल के बीरगंज से सटा यह क्षेत्र नेपाल से इस कदर मिला हुआ है कि आप ऑटो या रिक्शा लेकर भी बीरगंज जा सकते हैं। यहां यह जानना जरूरी है कि नई दिल्ली से नेपाल के काठमांडू तक जाने वाला रास्ता रक्सौल से ही होकर गुजरता है।
कहा जाता है कि अगर 1814-16 में एंग्लो-नेपाल युद्ध न होता तो बीरगंज और रक्सौल, दोनों शहर आज एक ही होते। 1816 में हुई सुगौली की संधि ने सीमांकन कर दिया और एक तरफ बीरगंज और दूसरी तरफ का इलाका रक्सौल बन गया। हाल ही में जब नेपाल में हिंसा हुई तब इसका असर रक्सौल में भी देखने को मिला और व्यापार भी कई दिनों तक प्रभावित रहा। ग्रामीण आबादी की बहुतायत वाली इस सीट पर भी बीजेपी ने अपना कब्जा बरकरार रखकर अपने बारे में बनी धारणाओं को गलत साबित किया है।
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रक्सौल में ओवरब्रिज, खेल के मैदान, टाउन हॉल, ट्रॉमा सेंट्रर और डिग्री कॉलेज की मांग काफी पुरानी है। बीते कुछ साल में कई जिलों से हवाई यात्राएं शुरू होने के चलते रक्सौल में भी एयरपोर्ट बनाने की मांग उठने लगी है। समूचे बिहार की तरह बाढ़ और बेरोजगारी की समस्याएं यहां भी हावी हैं। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी और मौजूदा विधायक के लिए ये समस्याएं चुनाव में बड़ी समस्या भी बन सकती हैं।
मौजूदा समीकरण
2020 में विधायक बने प्रमोद कुमार सिन्हा अपने क्षेत्र में खूब सक्रिय हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े रामबाबू यादव अब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस के प्रदर्शन को देखते हुए अगर यह सीट आरजेडी के खाते में जाती है तो वह यहां से टिकट पा सकते हैं। रोचक बात यह है कि यादव और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या होने के बावजूद विपक्ष यहां पर बीजेपी को हरा नहीं पा रहा है।
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बीजेपी का प्रभाव देखते हुए जेडीयू के जिला अध्यक्ष रहे कपिल देव पटेल कुछ समय पहले ही जन सुराज में शामिल हो गए हैं। वहीं, जन सुराज नेत्री पूर्णिमा भारती लगातार ऐक्टिव हैं और अपने आंदोलनों से खूब चर्चा भी बटोर रही हैं। ब्रिज निर्माण में देरी का विरोध करते हुए पांच दिन का आमरण अनशन भी किया था। ऐसे में पूर्णिमा भारती भी टिकट की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं।
मुख्य दलों के अलावा AIMIM से शमशुद्दीन आलन जैसे नेता भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए टिकट पाने की जुगत में लगे हुए हैं। बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला अध्यक्ष रहे शमशुद्दीन यहां कई दलों का समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
2020 में क्या हुआ था?
2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 5 बार के विधायक अजय कुमार सिंह का टिकट काट दिया था। बीजेपी ने उनकी जगह जेडीयू से आए प्रमोद कुमार सिन्हा को टिकट देकर बड़ा दांव खेला था। नाराज होकर अजय कुमार सिंह बहुजन समाज पार्टी (BSP) के टिकट पर चुनाव में उतर गए। प्रमोद कुमार सिन्हा का मुकालबा कांग्रेस के रामबाबू यादव से था।
नतीजे आए तो प्रमोद कुमार सिन्हा 80,979 वोट पाकर चुनाव जीत गए और रामबाबू यादव सिर्फ 44,056 वोट पाकर बड़े अंतर से चुनाव हारे। वहीं, BSP के टिकट पर चुनाव में उतरे अजय कुमार सिंह को सिर्फ 12,267 वोट ही मिले। बता दें कि रामबाबू यादव की कांग्रेस के टिकट पर 2010 में भी चुनाव लड़े थे लेकिन तीसरे नंबर पर रहे थे। वहीं, 2015 में आरजेडी के सुरेश कुमार ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। शायद यही वजह थी कि 2020 में बीजेपी ने अजय सिंह का टिकट काट दिया।
विधायक का परिचय
पहली बार विधायक बने प्रमोद कुमार सिन्हा जनता दल यूनाइटेड (JDU) में जिला अध्यक्ष थे। 2020 के चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल हुए प्रमोद कुमार सिन्हा को बीजेपी ने अजय कुमार सिंह की जगह चुनाव लड़ाया था और वह विजयी भी बने थे। 2020 में लगभग 1.63 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित करने वाले प्रमोद कुमार सिन्हा खेती और सामाजिक कार्य से जुड़े रहे हैं। 2020 में उनके खिलाफ सिर्फ एक ही मुकदमा दर्ज था।
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2020 के चुनाव में टिकट मिलते ही प्रमोद सिन्हा चर्चा में आ गए थे क्योंकि उनके भाई अशोक सिन्हा के नेपाल के पर्सा स्थित घर पर नेपाल पुलिस ने छापेमारी की थी। तब प्रमोद सिन्हा पर भी आरोप लगे थे कि उन्हें बीजेपी का टिकट लेने के लिए 3 करोड़ रुपये दिए हैं। नेपाल पुलिस ने उनके भाई अशोक सिन्हा के घर से 22 किलो सोना और 2 किलो चांदी बरामद किए थे। इस पर प्रमोद सिन्हा का कहना था कि उन्हें बदनाम करने के लिए यह सब किया गया है। उनका यह भी कहना था कि भाई अशोक सिन्हा से उनका बंटवारा 15 साल पहले ही हो चुका है और अब कोई लेना देना नहीं है।
विधानसभा का इतिहास
इस विधानसभा सीट के इथिहास की बात करें तो यहां से राधा पांडेय 4 बार, सगीर अहमद 4 बार और अजय कुमार सिंह 5 बार विधायक रहे हैं। एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के विंध्याचल सिन्हा भी यहां से चुनाव जीते थे। कांग्रेस पार्टी यहां से 1985 के बाद से अब तक चुनाव नहीं जीत पाई है। बीजेपी यहां पर साल 2000 से ही चुनाव जीतती आ रही है।
1952-राधा पांडेय-कांग्रेस
1957-राधा पांडेय-कांग्रेस
1962-राधा पांडेय-कांग्रेस
1967-विंध्याचल सिन्हा-संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1969-राधा पांडेय-कांग्रेस
1972-सगीर अहमद-कांग्रेस
1977-सगीर अहमद-कांग्रेस
1980-सगीर अहमद-कांग्रेस
1985-सगीर अहमद-कांग्रेस
1990-राज नंदन राय- जनता दल
1995-राज नंदन राय- जनता दल
2000-अजय कुमार सिंह- BJP
2005-अजय कुमार सिंह- BJP
2005-अजय कुमार सिंह- BJP
2010-अजय कुमार सिंह- BJP
2015-अजय कुमार सिंह- BJP
2020-प्रमोद कुमार सिन्हा- BJP
