'मैं जनता की आवाज हूं, अमेरिका फर्स्ट, असली बिजनेस वाला राष्ट्रपति....', डोनाल्ड ट्रंप ने खुद को हमेशा एक आउटसाइडर राष्ट्रपति के रूप में पेश किया है। उन्होंने खुद को एक बिजनेसमैन और डीलमेकर के तौर पर दर्शाया- जो अमेरिका की भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने आया है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के इतिहास में सबसे अलग और विवादित राष्ट्रपतियों में गिने जाते हैं। आक्रामक ट्वीट्स, व्यक्तिगत हमले, टैरिफ वॉर और खुद को सिस्टम के खिलाफ बताने वाले ट्रंप अमेरिका के अन्य राष्ट्रपतियों के मुकाबले बहुत अलग है। वह अमेरिका के पहले राष्ट्रपति से न केवल व्यक्तिगत में बल्कि सोच, नीति, व्यवहार और लोकतंत्र में भी काफी अलग रहे हैं। उन्होंने अमेरिकी राजनीति की 'स्थापित परंपरा' को हिला कर रख दिया जिससे कुछ लोग उन्हें क्रांतिकारी, तो कुछ खतरनाक मानते हैं। 

 

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के उन राष्ट्रपतियों में से एक हैं, जो अब्राहम लिंकन, फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट, बराक ओबामा जैसे ऐतिहासिक नेताओं से कई मामलों में काफी अलग और अपोजिट नजर आते हैं। ट्रंप बनाम ऐतिहासिक अमेरिकी राष्ट्रपति कितने अलग, यहां विस्तार से समझें...

 

लीडरशिप स्टाइल

डोनाल्ड ट्रंप एक टकरावपूर्ण, आक्रामक और आउटसाइडर वाली लीडरशिप स्टाइल अपनाते आए हैं। वहीं, अब्राहम लिंकन एक शांत, विचारशील और एथिक्स पर्सपेक्टिव रखते थे। विश्व युद्ध 2 और डिप्रेशन जैसे संकट के दौरान फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने बेहद स्थिरता से काम लिया था जो उनकी नेतृत्व शैली को दर्शाती हैं। बात करें बराक ओबामा की तो वह हमेशा से सहयोगात्मक  और जनता को पॉजिटिव उम्मीद देने वाले नेताओं में गिने जाते हैं। 

डायलॉग स्टाइल

अब्राहंम लिंकन के भाषणों में गरिमा और गहराई होती थीं। वहीं, बराक ओबामा प्रेरणादायक भाषण देने के लिए जाने जाते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का भाषण ट्विटर, नारों और कटाक्षों से भरा होता हैं। 

 

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राजनीतिक अनुभव और दृष्टिकोण

डोनाल्ड ट्रंप को कोई पूर्व राजनीतिक या सैन्य अनुभव नहीं हैं। वह व्यापारिक और 'डील-मेकिंग' जेसी सोच रखते हैं। उनका हमेशा से 'अमेरिका फर्स्ट' नीति पर ही फोकस रहा। वहीं, कई पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों को पूर्व सीनेटर, गर्वनर या जनरल का अनुभव रहा हैं। ट्रंप से पहले के अमेरिकी राष्ट्रपति लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर जोर देने और वैश्विक सहयोग पर बात करते थे। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाए रखते थे। 

पॉलिसी और फैसलों में फर्क

इमिग्रेशन
डोनाल्ड ट्रंप ने मैक्सिको बॉर्डर और मुस्लिम देशों पर बैन लगाया। सत्ता में आते ही उन्होंने अप्रवासियों को अमेरिका से बाहर का रास्ता दिखाया। वहीं, पूर्व राष्ट्रपतियों ने इमिग्रेशन को रिफॉर्म करने और समावेशी नीति पर फोकस रखा। 

 

जलवायु परिवर्तन
डोनाल्ड ट्रंप पेरिस समझौते से बाहर हो गए। वहीं, ओबामा जैसे राष्ट्रपति पर्यावरण के पक्ष में नीतियां तैयार कर उस पर काम करते थे। 

 

ट्रेड और टैरिफ्स
ट्रंप ने रेसिप्रोकल, बेसलाइन और डिस्काउंटेड टैरिफ लगभग 186 देशों और 2 आइलैंड पर लगाया। चीन पर टैरिफ लगाने के बाद से अमेरिका का शेयर मार्केट लाल निशान पर पहुंच गया। वहीं, अन्य पूर्व राष्ट्रपतियों ने डिप्लोमैटिक और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन जैसी नीति को अपनाई जिससे ट्रेड वॉर होने की संभावना कभी नहीं बनी। 

 

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जनता से संबंध और छवि 

ट्रंप के समर्थकों में जबरदस्त जुनून तो वहीं विरोधियों में गहरी नापसंदगी देखने को मिली। खुद को आउटसाइडर बताकर ट्रंप ने सिस्टम के खिलाफ वाला नेता बताया। वहीं, बराक ओबामा, अब्राहम लिंकन जैसे राष्ट्रपतियों की जनता के सामने एक साकारात्मक छवि थी। अब्राहम लिंकन हमेशा आम आदमी की भाषा में बात करते थे। वह देश को जोड़े रखने वाले नेता थे। गृहयुद्ध के दौरान लिंकन ने अमेरिका को टूटने से बचाया था। उनकी एक गंभीर, विचारशील और संवेदनशीन जैसी छवि थी जिसकी वजह से आज भी अमेरिका में वह सबसे महान राष्ट्रपति माने जाते हैं। बराक ओबामा की स्पीच आज भी वायरल होती हैं। वह पहले अफ्रीकी-अमेरीकी राष्ट्रपति थे जो युवाओं और टेक्नोलॉजी से जुड़े होने के कारण 'यूथ आइकन' बन गए।  

संविधान और लोकतंत्र पर कैसी सोच?

ट्रंप ने 2020 के चुनाव परिणामों को खुलकर खारिज किया था, जबकि पहले के किसी राष्ट्रपति ने लोकतांत्रिक ट्रांजिशन पर ऐसा अविश्वास नहीं जताया। 

 

ट्रंप, बराक ओबामा और अन्य पूर्व राष्ट्रपतियों का भारत के साथ रिश्ते

भारत-अमेरिका संबंध समय के साथ बदले हैं और हर अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के प्रति अलग सोच और नीति अपनाई है। ट्रंप, बराक ओबामा और कुछ अन्य प्रमुख पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों की भारत को लेकर सोच, नीति और व्यवहार क्या था और है? 

 

बराक ओबामा (2009-2017)  भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी

 

'भारत न केवल एक उभरती ताकत है, बल्कि एक साथी भी है'

 

ओबामा ने भारत को लोकतंत्र और विकास का साथी माना। आतंकवाद के खिलाफ भारत का खुलकर समर्थन भी किया और भारत को संयुक्त राष्ट्र परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए अपना समर्थन तक दिया। वर्ष 2010 में जब ओबामा भारत आए तो उन्होंने भारत के संसद में भाषण दिया था और भारत को अमेरिका का नैचुरल पार्टनर बताया था। ओबामा के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच डिफेंस और क्लीन एनर्जी समेत कई समझौते भी हुए। 

 

डोनाल्ड ट्रंप (2017-2021) व्यापार और सैन्य फोकस

 

'भारत एक महान देश है, और मोदी एक बहुत अच्छे मित्र हैं।'

 

डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी फर्स्ट नीति के बावजूद भारत से रिश्ते बेहतर बनाए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ व्यक्तिगत दोस्ताना संबंध देखने को मिले। हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप रैली ऐतिहासिक साबित रहीं। हालांकि, ट्रंप के इस कार्यकाल के दौरान भारत के साथ मतभेद भी काफी रहे। व्यापार में टैरिफ और H1B वीजा को लेकर तनातनी कायम है। अमेरिका ने भारत को GSP (Generalized System of Preferences) से बाहर कर दिया। 

 

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जो बाइडेन (2021–2025) भारत के साथ तकनीक और रक्षा सहयोग


'भारत और अमेरिका मिलकर दुनिया को दिशा दे सकते हैं।'

 

जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने भारत के साथ अपने रिश्ते बेहद मजबूत किए। QUAD (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) को मजबूत किया। सेमीकंडक्टर, AI और रक्षा उत्पादन में साझेदारी पर जोर दिया। वहीं, बाइडेन ने ओबामा की नीतियों की तरह ही भारत को लेकर एक समावेशी सोच रखी। 

 

डोनाल्ड ट्रंप (वर्तमान में राष्ट्रपति)

 

'मैं मोदी को पसंद करता हूं, वह एक ताकतवर नेता हैं।'

 

ट्रंप ने पीएम मोदी को कई बार ग्रेट फ्रेंड कहा है। हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसी रैलियों के बाद ट्रंप का मानना है कि भारत-अमेरिका रिश्ते पहले से मजबूत हुए हैं। हालांकि, ट्रंप की व्यापार नीति को देखते हुए उन्होंने भारत पर भी टैरिफ लगाया है लेकिन वह हमेशा से चाहते हैं कि भारत 'Fair Trade Partner' बने, न कि सिर्फ अमेरिका से मुनाफा कमाने वाला देश। 

 

ट्रंप की सोच और उनकी नीतियों से यह समझ आता है कि व्यक्तिवादी राजनीति किस हद तक लोकतंत्र को चुनौती दे सकती है। हालांकि, ओबामा, लिंकन जैसे नेताओं की पॉलीसी और लीडरशिप यह बताती है कि नेतृत्व सिर्फ फैसले नहीं, बल्कि भाषा से भी समाज गढ़ता है। ट्रंप ने समर्थकों को ‘लड़ने वाला फैन क्लब’ जैसा ट्वीट किया जो यह दिखाता है कि अगर जनता को सिर्फ भीड़ समझा जाए तो लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है।