दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की पहचान एक धोखेबाज के तौर पर होती है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अपने सबसे बड़े करीबी यूरोप को उसी के हाल पर छोड़ दिया। ट्रंप का कहना है कि यूरोप को अपनी रक्षा खुद करनी होगी। पड़ोसी देश कनाडा पर कब्जे की नीयत है। रूस के खिलाफ पहले यूक्रेन को हथियारों की मदद भेजी और बाद में युद्ध के बीच हाथ खींच लिए। अमेरिका ने सबसे बड़ा धोखा अफगानिस्तान की जनता को दिया है। इसकी चर्चा न केवल अमेरिका बल्कि दुनियाभर के अन्य देशों में भी होती है। आज की स्टोरी में यह जानेंगे कि अमेरिका ने पहले कैसे अफगानों को सुनहरे सपने दिखाए हैं, मदद का आश्वासन दिया और बाद में मझधार में छोड़कर चलता बना। 


तालिबान के खिलाफ जंग में अफगानिस्तान के सैनिकों और नागरिकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। माना जाता है कि उनकी मदद के बिना अमेरिका न तो अल कायदा की कमर तोड़ पाता और न ही तालिबान को काबुल की सत्ता से खदेड़ पाता। 2021 में अमेरिका के अफगानिस्तान से बोरिया-बिस्तर समेटने के बाद से अफगान सैनिक और अमेरिका की मदद करने वाले हजारों नागरिक खौफ में हैं। इनमें अमेरिका की मदद करने वाले जासूस, गाइड और अनुवादक शामिल हैं। 2021 में जब अमेरिका ने काबुल छोड़ा था, तब अफगानिस्तान में अमेरिका की मदद करने वाले लोगों को विशेष आव्रजन वीजा देने का वादा किया गया था। 

 

यह भी पढ़ें: 'राजा की बॉडी खाई में फिंकवाई और स्कूटी से लौटी सोनम', DIG का दावा

अमेरिका ने कैसे दिया धोखा?

विशेष आव्रजन वीजा देने का एलान पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन ने किया था। सत्ता में आने के बाद ट्रंप ने अलग राह पकड़ ली। उन्होंने अफगानिस्तान समेत कुल 12 देशों के नागरिकों पर पूर्ण वीजा प्रतिबंध लगा दिया। मतलब साफ है कि अफगानिस्तान के नागरिक अब अमेरिका नहीं जा सकेंगे। 9 जून से ट्रंप का यह आदेश अमेरिका में लागू हो चुका है। प्रतिबंध सूची में अफ्रीका महाद्वीप के सात देश भी शामिल हैं। 

 

बैन के पीछे ट्रंप का क्या तर्क

2021 से अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा है। अमेरिका तालिबान को आतंकी संगठन मानता है। उसका कहना है कि अफगानिस्तान में पासपोर्ट और लोगों को दस्तावेज जारी करने वाला कोई सक्षम प्राधिकरण नहीं है। उचित जांच की व्यवस्था भी नहीं है। वीजा की अवधि से ज्यादा अफगान नागरिक अमेरिका में ठहरते हैं। इन सभी कारणों को ट्रंप ने बैन के पीछे की वजह बताई। 

क्यों ठगा महसूस कर रहे अफगान?

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में रहने वाले लगभग 9000 अफगान नागरिकों का अस्थायी संरक्षित दर्जा खत्म कर दिया है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान में सुरक्षा और आर्थिक क्षेत्र में सुधार हो रहा है। मसलन, इन नागरिकों को अफगानिस्तान लौटना पड़ सकता है। अफगान मूल के अमेरिकी नागरिकों के 8300 से अधिक परिजनों को भी अमेरिका का वीजा नहीं मिला। 11400 से अधिक लोगों को अपने परिवारों से  मिलने का इंतजार है। 

 

यह भी पढ़ें: अमेरिका-चीन के बीच हुई बड़ी डील! टैरिफ कम करने पर सहमत हुए ट्रंप

 

अफगान नागरिकों से अमेरिका ने किसी तीसरे देश जाने की अपील की थी। वहां से सभी को निकाला जाना था। पाकिस्तान में लगभग 15 हजार अफगानों ने शरण ली, लेकिन आज तक उन्हें अमेरिकी वीजा नहीं मिला। अब पाकिस्तान भी उन्हें वापस अफगानिस्तान भेजने में जुटा है। अमेरिका के इस धोखे से अफगान नागरिक खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि तालिबानी शासन में वापसी खतरे से खाली नहीं है।

20 साल चला धोखे का खेल

9/11 अटैक के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के खिलाफ युद्ध का एलान किया था। तालिबान की सरकार ने अल कायदा को शरण दे रखी थी। इसी संगठन ने 9/11 अटैक को अंजाम दिया था। जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था तब उसने, वहां की जनता से शांति, शासन में स्थिरता और लोकतंत्र लाने का वादा किया। मगर 2021 में उसी तालिबान को सत्ता सौंप खुद को अलग कर लिया। वादे के मुताबिक अमेरिका ने न लोकतंत्र दिया और न ही मानवाधिकारों की रक्षा कर पाया। अफगान नागरिकों को लगता है कि अगर अंत में शासन तालिबान को ही सौंपना था तो 20 सालों तक अमेरिका ने झूठे सपने क्यों दिखाए? स्थानीय लोगों को लगता है कि अमेरिका की रूचि अफगानिस्तान में स्थायीय बदलाव लाने में थी ही नहीं।

अमेरिका पर सवाल क्यों?

  • अफगानिस्तान से अमेरिका के हटने के बाद सहयोगी देशों को उसकी विदेश नीति पर संदेह है।
  • सहयोगी देशों की शिकायत है कि अमेरिका ने निर्णय से पहले कोई सलाह मशविरा नहीं किया।
  • यूरोप से पूर्वी एशिया तक कई देशों को चिंता है कि क्या अमेरिका पर भरोसा किया जा सकता है।