'अफ्रीका के लिए यह एक महान दिन, विश्व के लिए एक महान दिन।' अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो और रवांडा के बीच शांति समझौता करवाने के बाद यही बयान दिया। ट्रंप बेहद उत्साहित थे, क्योंकि उनकी कथित सीजफायर सूची में एक और नाम जुड़ गया। पहले ट्रंप सात युद्धों को रोकने का दावा करते थे। मन में सोच रहे होंगे कि आठवां युद्धविराम भी उन्हीं के हिस्से में आया है।
दुनियाभर में इसका गुणगान ठीक वैसे ही करेंगे, जैसे भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर का किया था। मगर कांगो और रवांडा ने ट्रंप की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। शांति समझौते के कुछ घंटों के बीच ही कांगो में हिंसक झड़प का नया दौर शुरू हो चुका है। बड़ी संख्या में लोग अपने घरों को छोड़ पलायन करने पर मजबूर हैं।
वाशिंगटन में गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी में कांगो के राष्ट्रपति फेलिक्स त्सेसीकेदी और रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया। जवाब में ट्रंप ने इसे चमत्कार कहा और बताया कि दोनों ने एक-दूसरे को मारने में बहुत समय बिता चुके है। अब वे गले मिलने, हाथ पकड़ने और अमेरिका का आर्थिक रूप से लाभ ठीक वैसे ही उठाएंगे जैसे दूसरे देश उठाते हैं।
ट्रंप का इन युद्धों को रुकवाने का दावा
- डीआरसी और रवांडा
- मिस्र और इथियोपिया
- भारत और पाकिस्तान
- थाईलैंड और कंबोडिया
- इजरायल और ईरान
- सर्बिया और कोसोवो
- इजरायल और हमास
- आर्मेनिया और अजरबैजान
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संयुक्त राष्ट्र ने शांति समझौते का स्वागत किया, लेकिन यह भी बताया कि पीस डील के बाद कई इलाकों में हिंसा भड़क उठी है। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक के मुताबिक उविरा, वालुंगु, कबारे, फिजी और कालेहे क्षेत्रों के कई गांवों में भारी हथियारों के इस्तेमाल और गोलाबारी की खबरें हैं। घरों और बुनियादी ढांचों को नुकसान पहुंचा है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर के आखिरी तक सिर्फ दक्षिण किवु में करीब 12 लाख लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा।
शांति समझौते के एक दिन बाद शुक्रवार को एम23 लड़ाकों ने कांगो सेना के खिलाफ दक्षिण किवु प्रांत में लड़ाई तेज कर दी। इसमें बुरुंडी के हजारों सैनिकों की जान गई। अब लड़ाई कामन्योला पर नियंत्रण की है। यह शहर कांगों में है, लेकिन रवांडा और बुरुंडी की सीमा पर स्थित है। बुरुंडी एम23 का विरोध कर रहा है। उसका मानना है कि अगर कामन्योला का किला ढहा तो जल्द ही यह संगठन उसके सीमा के भीतर भी दाखिल हो सकता है।
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उधर, एम23 समहू ने ताजी झड़प का ठिकरा कांगो की सेना पर फोड़ा है। उसका आरोप है कि कांगो सेना की गोलीबारी में 23 से ज्यादा लोगों की जान गई। भारी तोपखाना, ड्रोन और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल करके नागरिकों के घरों को निशाना बनाया गया है। वहीं बुरुंडी के हमले में चार लोगों की मौत का दावा किया। जवाब में कांगो की सेना का कहना है कि अभी दक्षिण किवु प्रांत के काजीबा, काटोगोटा और रुरम्बो में झड़प चल रही हैं। सेना ने रवांडा रक्षा बल पर अंधाधुंध बमबारी करने का आरोप लगाया।
तो 25 ट्रिलियन पर टिकी ट्रंप की निगाह
रवांडा और कांगो के बीच समझौता करवाने के पीछे ट्रंप की मंशा शांतिदूत वाली नहीं है। इसका खुलासा उन्होंने खुद ही कर दिया। ट्रंप की नजर यूक्रेन की तरह कांगों के रेयर अर्थ मिनरल्स पर टिकी है। ट्रंप ने बताया कि यह समझौता अमेरिका और चीन के बीच रेयर अर्थ मिनरल्स की रेस में अमेरिकी पहुंच को सुनिश्चित करेगा। 2023 में अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक डीआर कांगो में अनुमानित 25 ट्रिलियन डॉलर के खनिज भंडार हैं। यह रकम चीन की मौजूदा अर्थव्यवस्था के बराबर है। कांगो में कोबाल्ट, लिथियम, तांबा, मैंगनीज और टैंटालम खूब पाया जाता है। कोबाल्ट का इस्तेमाल लिथियम बैटरियों और स्मार्टफोन में किया जाता है। इसके अलावा कोल्टन का उपयोग लड़ाकू विमान और लैपटॉप में होता है।
कहां फंस रहा पीस डील में पेंच?
2025 की शुरुआत में एम23 समूह ने डीआर कांगों के गोमा और बुकावु शहर पर कब्जा किया। लड़ाई कांगो की सेना और एम23 समूह के बीच चल रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अकेले गोमा के संघर्ष में 900 लोगों की जान गई। कांगो की सरकार रवांडा पर एम23 समूह को समर्थन देने का आरोप लगाती है। उधर, रवांडा का कहना है कि कांगो डेमोक्रेटिक फोर्सेज फॉर द लिबरेशन ऑफ रवांडा (FDLR)जैसे हुतु चरमपंथी संगठनों का समर्थन करती है। इससे उसकी सुरक्षा को खतरा है। रवांडा की मांग है कि एफडीएलआर को हथियारविहीन किया जाना चाहिए। कांगो ने रवांडा सैनिकों की वापसी और कब्जे वाली जमीन वापस करने की मांग की। शांति समझौते के बीच यही पेंच फंस रहा है।
कहां तक फैली हैं मौजूदा संघर्ष की जड़ें?
1966 से अब तक डीआर कांगो में 60 लाख से अधिक लोग युद्ध में मारे जा चुके हैं। कांगो में मौजूदा हिंसा की जड़े 1994 के रवांडा नरसंहार से जुड़ी हैं। इसमें हुतु चरमपंथियों ने रवांडा में करीब 10 लाख अल्पसंख्यक तुत्सी और उदारवादी हुतु लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। 10 लाख लोगों ने कांगो में भागकर शरण ली। इसमें कुछ लोग हुतु चरमपंथी थे। इन्होंने कांगो में एक नया मिलिशिया संगठन खड़ा किया। इसके बाद तुत्सी समुदाय ने हुतु के खिलाफ अपना संगठन खड़ा किया। दूसरे कांगो युद्ध के वक्त 2000 के दशक में मार्च 23 मूवमेंट यानी एम 23 संगठन खड़ा हुआ। यह संगठन तुत्सी जातीय समूह से बना है। रवांडा की सरकार इसका समर्थन करती हैं। वहीं कांगो की सरकार हुतु संगठन के साथ खड़ी है।
चीन का एंगल भी समझिए
कांगो की खनिजों पर सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि चीन की भी नजर है। कांगो में पहले अमेरिका को बढ़त हासिल थी। कांगो की बड़ी कोबाल्ट खदानें अमेरिकी कंपनियों के पास है। बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने इन खदानों को चीनी कंपनियों को बेच दिया। आज कांगो की तांबा, यूरेनियम और कोबाल्ट खदानों पर चीनी कंपनियों का नियंत्रण है। चीन और कांगो के बीच सहयोग सैन्य स्तर पर भी है। कांगो की सरकार चीन से ड्रोन और हथियारों की खरीद कर रही है। इनकी मदद से ही वह एम23 समूह को कुछ हद तक रोक पा रही है।
