अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आ गए हैं। वीजा पॉलिसी को लेकर सख्त माने जा रहे ट्रंप ने अब बड़ा ऐलान किया है। ट्रंप ने कहा कि H-1B वीजा को बंद नहीं किया जाएगा, क्योंकि अमेरिका को टैलेंट की जरूरत है। ट्रंप के इस ऐलान को भारतीयों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिका में सबसे ज्यादा H-1B वीजा होल्डर भारतीय ही हैं।

क्या कहा ट्रंप ने?

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, 'हमें सिर्फ इंजीनियर ही नहीं चाहिए। बाकी नौकरियों के लिए भी अच्छे प्रोफेशनल्स भी चाहिए। ये अमेरिकियों को ट्रेनिंग भी देंगे, जिनके पास उनके जैसी योग्यता नहीं है। मैं H-1B वीजा को बंद नहीं करना चाहता, क्योंकि अमेरिका को जो टैलेंट चाहिए, वो इसी से मिल सकता है।'

ये H-1B वीजा क्या है?

ये असल में गैर-अप्रवासी वीजा है। जब भी कोई विदेशी व्यक्ति किसी अमेरिकी कंपनी में नौकरी करता है तो उसे H-1B वीजा जारी किया जाता है। हर साल अमेरिका जितने लोगों को H-1B वीजा जारी करता है, उनमें 70 फीसदी से ज्यादा भारतीय होते हैं। 2022-23 में अमेरिकी सरकार ने 3.86 लाख से ज्यादा लोगों को H-1B वीजा दिया था। इनमें से 76% यानी 2.80 लाख भारतीय थे।


इतना ही नहीं, 2023-24 में अमेरिकी सरकार ने अलग-अलग कंपनियों को 1.3 लाख H-1B वीजा जारी किए थे। इनमें से 24,766 यानी 20% भारतीय कंपनियां थीं।

 

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अमेरिका के लिए कितने जरूरी हैं भारतीय?

अमेरिकी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में भारतीयों की बड़ी भूमिका है। पिछले साल जून में इंडियास्पोरा की एक रिपोर्ट आई थी। ये भारतीय-अमेरिकियों से जुड़ा एक गैर-लाभकारी संगठन है। इंडियास्पोरा ने इस रिपोर्ट में बताया था कि अमेरिका की आबादी में 1.5% होने के बावजूद भारतीयों का यहां की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की आबादी 51 लाख है।


इस रिपोर्ट में बताया गया था कि फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से 16 के CEO भारतीय मूल के हैं। इनमें सुंदर पिचाई (गूगल) और रेशमा केवलरमानी (वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल), सत्या नडेला (माइक्रोसॉफ्ट), शांतनु नारायण (एडोबी), लक्ष्मण नरसिम्हान (स्टारबक्स) शामिल हैं। जिन 16 कंपनियों के CEO भारतीय मूल के हैं, उनसे 27 लाख अमेरिकियों को नौकरी मिलती हैं। ये कंपनियां हर साल 1 ट्रिलियन डॉलर का रेवेन्यू लाती हैं।


अमेरिका के स्टार्टअप इकोसिस्टम में भी भारतीयों का बड़ा रोल है। अमेरिका के 648 यूनिकॉर्न स्टार्टअप में से 72 के को-फाउंडर भारतीय-अमेरिकी हैं। इनकी मार्केट वैल्यू 195 अरब डॉलर है। इनसे 55 हजार लोगों को रोजगार मिलता है। यूनिकॉर्न स्टार्टअप उसे कहा जाता है जिनकी मार्केट वैल्यू 1 अरब डॉलर से ज्यादा होती है।

 

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अमेरिका में हर क्षेत्र में हैं भारतीय

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका में हर सेक्टर में भारतीयों की मौजूदगी है। इसमें बताया गया था कि अमेरिका के 60% होटलों के मालिक भारतीय-अमेरिकी हैं। इन होटल से हर साल 700 अरब डॉलर का रेवेन्यू आता है और इनसे 40 लाख लोगों को नौकरियां मिलती हैं। इतना ही नहीं, अमेरिका में 35 से 50 फीसदी शॉपिंग स्टोर भी भारतीय-अमेरिकियों के हैं। इनसे हर साल 350 से 490 अरब डॉलर का रेवेन्यू आता है। इसके अलावा, अमेरिका की टॉप 50 यूनिवर्सिटी में से 32 में भारतीय-अमेरिकी डीन, चांसलर या टॉप पोस्ट पर हैं।

300 अरब डॉलर का टैक्स देते हैं भारतीय

भारतीय हर साल अमेरिका में अरबों डॉलर का टैक्स भरते हैं। रिपोर्ट बताती है कि हर साल भारतीय-अमेरिकी 300 अरब डॉलर का टैक्स भरते हैं। ये कुल टैक्स का 5 से 6 फीसदी है। सिर्फ टैक्स ही नहीं, बल्कि अरबों डॉलर का दान भी करते हैं। 2008 से अब तक भारतीय-अमेरिकियों ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों को 3 अरब डॉलर से ज्यादा का दान दिया है। इसके अलावा हर साल भारतीय-अमेरिकी 1.5 से 2 अरब डॉलर चैरिटी को देते हैं।