सऊदी अरब ने मंगलवार यानी 30 दिसंबर को यमन के मुकाला बंदगाह पर एयर स्ट्राइक की। उसका आरोप है कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) यमन के अलगाववादी गुटों को हथियार भेज रहा था। सऊदी अरब ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और यमन की मान्यता प्राप्त सरकार के समर्थन में यह कार्रवाई करने का दावा किया। अब सवाल यह है कि सऊदी अरब और यूएई यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ अरब गठबंधन का हिस्सा हैं।
दोनों ही देश यमन की मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन करते हैं तो ऐसे में यह दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ कैसे हो गए, यमन का सियासी मैप कैसा है, मौजूदा समय में कितनी सरकारें हैं और किस संगठन का कहां होल्ड है, यूएई पर किस संगठन को समर्थन देने का आरोप है। वह कब बना और उसने नए देश 'साउथ अरब' की बात क्यों कही, सऊदी अरब को उससे क्या खतरा है?
मौजूदा समय में यमन में तीन अहम शक्तियां अपनी-अपनी जोर आजमाइश में जुटी हैं। इसके अलावा कुछ छोटे-छोटे गुट भी सक्रिय हैं। सऊदी अरब सीमा पर मान्यता प्राप्त सरकार और अंतरराष्ट्रीय बलों का कब्जा है। अदन की खाड़ी के करीब कुछ हिस्से में हद्रामी इलीट फोर्स और बाब अल-मंडेब जलडमरूमध्य के तट पर यमनी नेशनल प्रतिरोध बल का नियंत्रण हैं। अधिकांश भू-भाग पर एसटीसी, हूती और यमन की मान्यता प्राप्त सरकार का कब्जा है। आइये समझते हैं कि यमन में कहां किसका कब्जा है?
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हूती: यमन के सबसे अधिक आबादी वाले हिस्से और राजधानी सना पर कब्जा है। इस संगठन को अंसार अल्लाह के नाम से जाना जाता है। शिया मुस्लिमों के इस गुट को ईरान का खुला समर्थन हासिल है। सऊदी अरब और यूएई दोनों हूतियों को राष्ट्रीय खतरा मानते हैं। राजधानी सना समेत यमन के उत्तर पश्चिम के पांच प्रांतों पर हूती विद्रोहियों का कब्जा है। सऊदी अरब की सीमा से सटे कुछ इलाकों पर भी हूतियों का नियंत्रण है। सऊदी की कोशिश हूती विद्रोहियों को अपनी सीमा से दूर रखने की रही है।
दक्षिणी संक्रमणकालीन परिषद (STC): यमन के अधिकांश भूभाग पर दक्षिणी संक्रमणकालीन परिषद का कब्जा है। मौजूदा समय में यमन के अदन शहर के अलावा आठ प्रांतों में एसटीसी का बोलबाला है। संगठन का गठन 11 मई 2017 को हुआ था। दरअसल, 2017 में ऐदरुस अल-जौबैदी को बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद दक्षिणी यमन में विरोध प्रदर्शन का नया दौर शुरू हुआ और 11 मई 2017 को एसटीसी की नींव रखी गई। इसे यूएई का समर्थन प्राप्त है।
यमन की मान्यता प्राप्त सरकार: यमन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार मारिब और तैज प्रांतों को नियंत्रित करती है। मान्यता प्राप्त सरकार पिछले एक दशक से राजधानी सना में हूती विद्रोहियों से भिड़ने में उलझी है। यमन की मान्यता प्राप्त सरकार को राष्ट्रपति नेतृत्व परिषद (PLC) के तौर पर भी जाना जाता है। इस संगठन में एसटीसी भी शामिल है। उसके अध्यक्ष ऐदरुस अल-जौबैदी 26 सदस्यीय परिषद के प्रमुख और पीएलसी के सदस्य हैं। पीएलसी और एसटीसी दोनों ही हूती विद्रोहियों के खिलाफ हैं।
किसने की पीएलसी की स्थापना?
यमन के पूर्व राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी ने 2022 में अपनी शक्तियों को आठ सदस्यीय निकाय में ट्रांसफर करके पीएलसी की स्थापना की थी। पीएलसी की कमान रशाद अल अलीमी के हाथों में है। वह पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह की सरकार में गृह मंत्री रह चुके हैं। मौजूदा समय में पीएलसी में एसटीसी के अलावा यमन के कई प्रांतों के नेता और उनके गुट शामिल हैं। इसका मकसद हूती विरोधियों को एकजुट करना है। मगर 2022 से ही पीएलसी के सदस्यों में मतभेद हैं।
एसटीसी क्या चाहता हैं, सऊदी अरब क्यों चिढ़ा?
यमन के दक्षिणी हिस्से पर एसटीसी का कब्जा है। यह संगठन इस इलाके को अलग देश बनाना चाहता है। एसटीसी का दावा है कि 1967 से 1990 के बीच यह देश अस्तित्व में था। अब संगठन 'साउथ अरब' के नाम से एक नया देश बनाना चाहता है। खास बात यह है कि संयुक्त अरब अमीरात खुलकर एसटीसी का समर्थन कर रहा है। भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ आवाज उठाकर एसटीसी ने अपनी पकड़ मजबूत की। पिछले हफ्ते एसटीसी ने हद्रामौत प्रांत पर हमला किया। तेल सुविधाओं के अलावा राष्ट्रपति भवन को निशाना बनाया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हद्रामौत और अल-महारा प्रांत पर एसटीसी के हमले के बाद से ही सऊदी अरब खफा था। सऊदी अरब का मानना है कि अगर इन प्रांतों में यमन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार की पकड़ कमजोर और एसटीसी मजबूत होता है तो उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को सीधे खतरा पहुंचेगा, क्योंकि यह प्रांत सऊदी अरब की सीमा से जुड़े हैं। सऊदी विदेश मंत्रालय ने एसटीसी के हमलों को यमन की स्थिरता को हासिल करने वाले प्रयासों को कमजोर करने वाला कदम बताया और कहा कि एसटीसी की हरकत यमन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन करने वाले अरब गठबंधन के सिद्धांतों के खिलाफ है।
यूएई से क्यों खफा सऊदी अरब?
सऊदी अरब और यूएई यमन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन करते हैं। मगर अब यूएई मान्यता प्राप्त सरकार के खिलाफ एसटीसी को मदद पहुंचा रहा है। सऊदी अरब को यही बात खल रही है।
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यमन पर सऊदी अरब के हमले के बाद अमेरिका ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। अमेरिका ने अपने बयान में यमन की मान्यता प्राप्त सरकार को पूर्ण समर्थन देने का वादा किया है। मगर नई चाल भी चल दी। उसने कहा कि दक्षिण का मुद्दा एक न्यायसंगत मांग है। सिर्फ संवाद के माध्यम से इसका समाधान संभव है। एसटीसी समेत यमन के सभी पक्षों को एक व्यापक समाधान का हिस्सा होना चाहिए। मतलब साफ है कि दबी जुबान पर ही सही, लेकिन अमेरिका भी एसटीसी के पक्ष में है।
एक दशक से गृहयुद्ध में यमन
यमन में हूती विद्रोहियों का जन्म 1990 के दशक में हुआ। इस गुट ने अली अब्दुल्ला सालेह की शासन में यमन की सेना से छह युद्ध लड़े। नई जंग की शुरुआत साल 2014 में तब हुई जब हूती विद्रोहियों ने अपने गढ़ सादा से राजधानी सना के लिए कूच किया। जनवरी 2015 में हूती विद्रोहियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी को देश और अपना पद छोड़ना पड़ा।
अरब गठबंधन क्या है?
दरअसल, यमन में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी की सरकार सुन्नी मुस्लिमों की थी। वहीं हूती विद्रोहियों का नाता शिया संप्रदाय से है। ऐसे में 2015 में सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब गठबंधन बना। इसमें संयुक्त अरब अमीरात समेत कई देश शामिल हुए। अरब संगठन ने हूती विद्रोहियों के खिलाफ करीब सात साल जंग लगी। हालांकि 2022 से लड़ाई कभी हद तक थम चुकी है।
