जिन लोगों के स्पर्म कमजोर होते हैं या किसी कारण से वे बच्चे नहीं पैदा कर पाते, वे स्पर्म डोनर की मदद लेते हैं। अब ऐसे ही एक स्पर्म डोनर के बारे में हुए खुलासे ने हर किसी को हैरान कर दिया है। इस शख्स के स्पर्म से 200 बच्चों का जन्म हुआ और अब पता चला है कि उसमें खतरनाक आनुवांशिक म्यूटेशन पाया गया है। यह म्यूटेशन कम उम्र में कैंसर का कारण बनता है। इस शख्स के स्पर्म से पैदा हुए कई बच्चे पहले ही मर चुके हैं और यूरोप के कई परिवार ऐसे हैं जो अब डर में जी रहे हैं। ऐसे में अब स्पर्म डोनेशन और स्पर्म के इस्तेमाल को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

 

ऐसी खबरें आने के बाद अब कई देशों में हड़कंप मच गया है और स्पर्म डोनेशन से जुड़े कई क्लीनिक ने अब जेनेटिक जांच की भी शुरुआत कर दी है। इस मामले ने चिंता बढ़ा दी है क्योंकि कई देशों में इसको लेकर कानून तो हैं लेकिन ऐसे कानून अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू नहीं होते हैं। यही वजह है कि एक व्यक्ति के स्पर्म का इस्तेमाल एक से ज्यादा देशों में किया गया।

 

यह भी पढ़ें- केरल में अचानक क्यों बढ़ने लगे ब्रेन ईटिंग अमीबा के मामले? संसद में छिड़ा जिक्र

स्पर्म डोनर और स्पर्म डोनेशन क्या है?

 

‘स्पर्म डोनर’ (शुक्राणु दाता) वह व्यक्ति होता है जो अपना स्पर्म देता है जिसका इस्तेमाल करके महिला को गर्भवती किया जा सकता है। कई बार पुरुष के स्पर्म और महिला के एग को लेकर टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए जाइगोट तैयार किए जाते हैं और फिर उन्हें महिला के गर्भ में प्लांट कर दिया जाता है। जब कोई व्यक्ति अपना स्पर्म या एग दान करता है तो कुछ सामान्य जेनेटिक बीमारियों की जांच से गुजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया हर देश में अलग-अलग होती है और इसकी अपनी सीमाएं भी हैं। जांच काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि ‘डोनर’ के परिवार की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में कितनी सटीक जानकारी उपलब्ध है जबकि कई लोगों के पास अपने रिश्तेदारों से जुड़ी पूरी जानकारी नहीं होती।

 

यह भी पढ़ें- मोटापा से शुगर तक, कई मर्ज के 'इलाज' वाला इंजेक्शन चर्चा में क्यों है?

 

कुछ बीमारियां बालिग होने के बाद सामने आती हैं यानी कम उम्र का ‘डोनर’ पूरी तरह स्वस्थ दिखाई दे सकता है। इसके अलावा, आमतौर पर क्लीनिक बड़ी संख्या में मौजूद दुर्लभ आनुवांशिक प्रारूपों के बजाय स्थापित और अपेक्षाकृत ज्यादा चर्चित रोगों पर ही मुख्य रूप से ध्यान देते हैं। सामान्यतः ‘डोनर’ से उनकी मेडिकल हिस्ट्री और परिवार की मेडिकल हिस्ट्री से जुड़े सवालों के जवाब पूछे जाते हैं। अगर उपलब्ध जानकारी से किसी वंशानुगत जोखिम की आशंका होती है तो ‘डोनर’ की आगे और जांच की जा सकती है या अधिकतर मामलों में उसे अस्वीकार कर दिया जाता है।

ज्यादा हो सकती है संख्या

 

हाल के वर्षों में कई क्लीनिक ने विस्तारित जेनेटिक जांच करनी शुरू कर दी है। हालांकि, यह टेक्नॉलजी अभी विकास के चरण में है और सभी संभावित रोग-कारक आनुवांशिक प्रारूपों की पहचान करने में सक्षम नहीं है। यह संदर्भ इस मामले में महत्वपूर्ण है। इस मामले में ‘डोनर’ के परिवार में इस बीमारी का कोई इतिहास नहीं था और उसमें इसके कोई लक्षण भी नहीं दिखे। कोई व्यक्ति स्वयं प्रभावित हुए बिना भी हानिकारक ‘म्यूटेशन’ का वाहक हो सकता है। ‘डोनर’ ने डेनमार्क के ‘यूरोपियन स्पर्म बैंक’ को अपने स्पर्म डोनेट किए थे जिनका इस्तेमाल कई यूरोपीय देशों में लगभग 200 बच्चों के जन्म के लिए किया गया। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है।

 

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ‘डोनर’ के स्पर्म के व्यापक इस्तेमाल को सीमित करने वाला कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं है। ब्रिटेन समेत कई देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर तो इस संबंध में कानून बनाए हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। हाल में सामने आए एक अन्य मामले से यह स्पष्ट हुआ कि स्थिति कितनी चरम हो सकती है। एक अन्य ‘डोनर’ के स्पर्म से कई देशों में लगभग 1,000 बच्चों का जन्म होने का पता चला है। उस मामले में किसी स्वास्थ्य समस्या की जानकारी नहीं मिली लेकिन इससे यह पता चला कि अगर नजर नहीं रखी जाए तो एक ‘डोनर’ के स्पर्म का उपयोग कितने व्यापक पैमाने पर किया जा सकता है।

 

यह भी पढ़ें: लड़कियों को दाढ़ी-मूंछ क्यों आती हैं? डॉक्टर से जानिए हर एक बात

लोगों में फैला डर

 

मौजूदा मामले की चुनौतियां बेहद गंभीर हैं। परिवार शोक और अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। कुछ ने अपने बच्चे खो दिए हैं। अन्य परिवारों को इस बात का बहुत अधिक खतरा है कि उनकी संतान 60 वर्ष की आयु से पहले कैंसर से प्रभावित हो सकती है। ‘डोनर’ के बारे में सार्वजनिक चर्चा बहुत कम हुई है लेकिन इन नतीजों का पता लगने से उस पर काफी गहरा भावनात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह ‘म्यूटेशन’ बेहद दुर्लभ है इसलिए अतिरिक्त नियमित जांच भी संभवतः इसका पता नहीं लगा पाती और इसे रोक नहीं पाती। सच्चाई यह है कि हर व्यक्ति में कुछ ऐसे आनुवांशिक प्रारूप होते हैं जो रोजमर्रा के जीवन में हानिकारक नहीं होते और उनका पता नहीं लग पाता। 

 

पहले भी ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें ‘डोनर’ से शिशुओं में ‘सिस्टिक फाइब्रोसिस’ या ‘फ्रैजाइल एक्स सिंड्रोम’ जैसी वंशानुगत बीमारियां अनजाने में पहुंची हैं लेकिन उन मामलों में प्रभावित परिवारों की संख्या काफी कम थी। इस मामले में प्रभावित बच्चों की असाधारण रूप से बड़ी संख्या है। इसी कारण केवल ज्यादा जांच की मांग करना पूर्ण समाधान नहीं है। ज्यादा गंभीर समस्या यह है कि सीमाओं के पार एक ही ‘डोनर’ के शुक्राणु के इस्तेमाल को लेकर कोई निगरानी नहीं है।