सूडान अपने इतिहास का सबसे भयावह मानवीय संकट झेल रहा है। यहां के दारफुर राज्य की राजधानी अल-फशर कब्रिस्तान में तब्दील हो चुकी है। चारों तरफ खून के धब्बे, लोगों की लाशें और वीरान पड़े घर... क्रूरता के गवाह हैं। लोगों को घर में घुसकर मारा गया। महिलाओं और लड़कियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हजारों लोगों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया। अभी तक करीब 81,817 लोगों ने अल फशर शहर छोड़ दिया है। शहर में अकाल के अलावा हैजा जैसी घातक बीमारियां फैलने का खतरा है।

 

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सूडान में करीब 95 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। चिंताजनक बात यह है कि विस्थापन का दंग झेलने वाले करीब 51 फीसदी जनता की उम्र 18 साल से भी कम है। देश की करीब 40 फीसद आबादी भुखमरी के कगार पर है। आइये जानते हैं सूडान की कहानी। कैसे यह देश गृह युद्ध के दल-दल में फंसा, अभी जंग किस-किस के बीच है?

 

यह भी पढ़ें: ट्रंप पर भारी पड़ रहा शटडाउन, हर हफ्ते 15 बिलियन डॉलर का नुकसान

दो साल में दो तख्तापलट

2019 से पहले सूडान में राष्ट्रपति उमर अल-बशीर की सत्ता थी। उनके खिलाफ बड़े पैमाने पर जनता सड़क पर उतरी। जवाब में सूडान की सूडानी सशस्त्र बल ने तख्तापलट कर दिया। उमर अल बशीर ने भी साल 1989 में तख्तापलट से ही सत्ता संभाली थी। तख्तापलट के बाद सूडान की सेना ने नागरिकों की मदद से एक सरकार का गठन किया। मगर यह भी बहुत दिनों तक नहीं चल सकी। 2021 के अक्टूबर महीने में एक और तख्तापलट से यह सरकार भी खत्म हो गई।

साथी ही बना दुश्मन

यह तख्तापलट सूडानी सेना के प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान ने रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) के मुखिया जनरल मोहम्मद हमदान दगालो के साथ मिलकर किया। बाद में यही मोहम्मद हमदान दगालो मौजूदा राष्ट्रपति जनरल अब्देल फतह अल बुरहान के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे। 

सेना और अर्धसैनिक बल के बीच जंग की वजह क्या?

2023 में सूडान की नई सैन्य सरकार ने आरएसएफ को सेना में शामिल करने की इच्छा जताई। इसका उद्देश्य सूडान की सेना और आरएसएफ को मिलाकर एक नए सैन्य संगठन की स्थापना करना था, लेकिन विवाद इस बात पर हो गया कि नई सेना का कमान कौन संभालेगा? अब्देल फतह अल-बुरहान और मोहम्मद हमदान... दोनों में से कोई भी अपनी ताकत और सत्ता गंवाना नहीं चाहता था। इसका नतीजा गृहयुद्ध के तौर पर सामने आया। बता दें कि आरएसएफ सूडान का एक अर्धसैनिक बल है। उसके पास कुल एक लाख जवान हैं।

कब चली पहली गोली?

आरएसएफ के मुखिया ने सेना में शामिल होने का विरोध किया। 15 अप्रैल 2023 का दिन ट्रिगर प्वाइंट बना। इस दिन सूडान की सेना और आरएसएफ के बीच पहली बार गोलीबारी हुई। हालांकि यह साफ नहीं है कि पहले फायरिंग किसने की। मगर यही से सूडान में गृह युद्ध की नींव पड़ी। पिछले दो साल से सूडान की जनता फांसी, सामूहिक हत्या, बलात्कार,लूटपाट और अपहरण झेल रही है। दोनों ही सेनाओं पर क्रूरता के आरोप हैं।

कैसे हुआ आरएसएफ का जन्म?

साल 2000 में दारफुर में व्यापक विद्रोह भड़का था। विद्रोहियों से निपटने की खातिर जंजावीद मिलिशिया का गठन हुआ। बाद में साल 2013 में इसी मिलिशिया से आरएसएफ का गठन किया गया। जनरल मोहम्मद हमदान दगालो ने आरएसएफ को एक शक्तिशाली ताकत बनाया। बल के पास अपनी सोने की खदानें हैं। कहा जाता है कि उसे लीबिया और संयुक्त अरब अमीरात का समर्थन प्राप्त है। आरएसएफ यूएई को सोना भी बेचता है। 

किसके कब्जे में कौन सा इलाका?

लीबिया और मिस्र की सीमा से सटे कुछ हिस्से पर आरएसएफ का कब्जा है। इसके अलावा कोर्डोफन पर भी उसका नियंत्रण है। अब अल-फशर पर कब्जे के बाद पूरा दरफुर भी आरएसएफ के हाथों में आ चुका है। सूडान के उत्तर और पूर्वी हिस्से में सेना का कब्जा है। राष्ट्रपति जनरल बुरहान ने लाल सागर पर स्थित पोर्ट सूडान से अपनी सरकार चला रहे हैं। पोर्ट सूडान ही सैन्य सरकार का मुख्यालय है। साल 2023 में आरएसएफ ने गीजीरा प्रदेश पर कब्जा कर लिया था। मगर अब सूडान की सेना ने इसे वापस हासिल कर लिया है।


यह भी पढ़ें: 32 साल के ट्रैवल ब्लॉगर अनुनय सूद की अमेरिका में मौत, परिवार ने दी जानकारी

राजधानी खार्तूम पर किसका कब्जा?

गृह युद्ध की शुरुआत में सूडान की राजधानी खार्तूम सेना के हाथ में थी। मगर इसी साल मार्च में आरएसएफ ने यहां अपना कब्जा जमा लिया था। अब सेना दोबारा खार्तूम को अपने नियंत्रण में ले चुकी है। अभी तक सैन्य सरकार खार्तूम नहीं लौटी है। आरएसएफ जवानों ने राजधानी को तरह से तबाह कर दिया है। स्कूल, अस्पताल और बैंकों की इमारतें जल चुकी हैं।

तो दोबारा बंट जाएगा सूडान

सूडान की सेना लीबिया और यूएई पर आरएसएफ को मदद पहुंचाने का आरोप लगाती है। वहीं मिस्र सूडान की सेना का समर्थन करता है। सूडान के गृह युद्ध में सेना और आरएसएफ के अलावा पड़ोसी देशों की जंग भी चल रही है। हर देश अपने-अपने हितों के हिसाब से एक-दूसरे गुट का समर्थन करने में जुटा है। हाल ही में आरएसएफ ने सेना के जवाब में सूडान के भीतर एक नई सरकार के गठन का ऐलान किया। अगर ऐसा होता है तो 2011 के बाद यह सूडान का दूसरा विभाजन होगा।  तब दक्षिण सूडान नाम से एक नया देश अस्तित्व में आया था।

अल-फशर क्यों अहम?

अल-फशर सूडानी सेना का अंतिम प्रमुख गढ़ था। आरएसएफ के लड़ाके और सेना के बीच करीब 500 दिनों तक शहर के बाहर संघर्ष चला। शहर की घेरेबंदी से मानवीय संकट खड़ा हुआ। करीब 18 महीने बाद 26 अक्टूबर को आरएसएफ ने अल-फशर शहर की घेरबंदी तोड़ दी। उसके लड़ाके शहर में घुसे। घर-घर जाकर लोगों की हत्या की। महिलाओं और लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया। सूडानी सेना को शहर छोड़कर भागना पड़ा। 

 

अल-फशर शहर की कुल आबादी करीब ढाई लाख है। यहां अधिकांश गैर-अरब समुदाय के लोग हैं। आरएसएफ के लड़ाकों पर इन्हीं गैर-अरब यानी मसालिट लोगों के मानव संहार का आरोप है। हालत इतने बिगड़ चुके हैं कि एक साल तक की बच्चियों का बलात्कार किया गया। दुधमुंहों की हत्या की गई। बलात्कार के वक्त महिलाओं से कहा गया कि उन्हें अरब बच्चा पैदा करने पर मजबूर किया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक सूडान गृह युद्ध में अब तक 150,000 से ज्यादा लोगों की हत्या हो चुकी है।

40 लाख लोगों ने देश छोड़ा

सेना और अर्धसैनिक बलों के बीच जारी जंग के कारण करीब 40 लाख से अधिक लोगों ने देश छोड़ दिया। अब यह लोग पड़ोसी देशों में रहने को मजबूर हैं। देश छोड़ने वाले लोगों में करीब 70 फीसद सूडानी नागरिक हैं। वहीं 30 फीसद गैर-सूडानी है। सबसे अधिक 15 लाख लोगों ने मिस्र, 12.5 लाख ने दक्षिण सूडान और 12 लाख लोगों ने चाड में शरण ली है।