दो दशक बाद भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु सहयोग देखने को मिल रहा है। 123 समझौते के तहत अमेरिकी कंपनियों को भारत में परमाणु रिएक्टरों के निर्माण और डिजाइन की अनुमति मिल गई है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DoE) ने होल्टेक इंटरनेशनल को भारत में परमाणु रिएक्टरों के निर्माण और डिजाइन के लिए मंजूरी दी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने '123 असैन्य परमाणु समझौते' को पूरी तरह से लागू करने की प्रतिबद्धता जताई थी। आसान भाषा में समझें तो अब अमेरिकी कंपनी के लिए भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने और डिजाइन करने का रास्ता लगभग साफ हो गया है।
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निजी फर्म को शर्तों के साथ हरी झंडी मिली
होल्टेक को तीन भारतीय फर्मों, होलटेक एशिया, लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड और टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड के साथ शर्तों के तहत मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) तकनीक शेयर करने की मंजूरी दी गई है। यह प्रतिबंधात्मक अमेरिकी विनियमन ‘10CFR810’ के तहत है। सौदे की मंजूरी 10 साल के लिए वैलिड है और हर पांच साल में इसका पुनर्मूल्यांकन किया जाएगा।
इस बीच, अमेरिका ने भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल), परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) और एनटीपीसी लिमिटेड जैसी मुख्य भारतीय सरकारी एजेंसियों को टेक्नॉलिजी ट्रांसफर की अनुमति नहीं दी है। भारत ने अभी तक उनके लिए नॉनप्रॉलिफेशन आश्वासन नहीं दिया है। होल्टेक बाद में इन सरकारी यूनिट को सूची में जोड़ने के लिए आवेदन कर सकता है।
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लंबे समय से अटका परमाणु समझौता
रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2007 में भारत और अमेरिका के बीच हुए समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग को सक्षम बनाना था। तब से लेकर अब तक जमीनी स्तर पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी। ऐसे में अमेरिका ऊर्जा विभाग का यह फैसला भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक लाभ पहुंचाएगा। अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका की मंजूरी के बिना इस तकनीक को आगे साझा नहीं किया जा सकता है, और इसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा उपायों के अनुसार शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए।
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होल्टेक की स्थापना किसने की?
होल्टेक की स्थापना भारतीय अमेरिकी क्रिस पी सिंह ने की थी और इसकी गुजरात और पुणे में सुविधाएं हैं। फर्म ने यह भी संकेत दिया है कि अगर फुल प्रोडक्शन शुरू होता है तो वह भारत में अपने कर्मचारियों की संख्या में और वृद्धि करने की इच्छा रखती है। यह भारत-अमेरिका परमाणु संबंधों की क्षमता को साकार करने की दिशा में एक वास्तविक कदम है।