अमेरिका की नौसेना अब तक का सबसे घातक युद्धपोत बनाने जा रही है। ये युद्धपोत मौजूदा पोतों से 100 गुना अधिक शक्तिशाली होंगे। इनका नाम अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पर होगा। दुनिया इन युद्धपोतों को 'ट्रंप क्लास' के तौर पर जानेगी। ट्रंप का कहना है कि अमेरिका नौसेना युद्धपोत के मामले में पीछे हो रही है। उन्होंने ट्रंप क्लास के युद्धपोतों को समय की जरूरत बताया। मगर ट्रंप की यह परियोजना इतनी आसान नहीं है। इसके रास्ते में कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती समय पर युद्धपोत का निर्माण, बजट और स्किल्ड लेबर की कमी है। आइये जानते हैं कि यह प्रोजेक्ट क्या है, इसके सामने कितनी चुनौतियां हैं?

 

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने संबोधन में कहा, 'अमेरिका दुनिया में सबसे बेहतरीन उपकरण बनाता है। इसमें कोई शक नहीं है कि कोई हमारे आस-पास भी नहीं है। मगर हम उनका उत्पादन उतनी तेज गति से नहीं कर पाते, जितनी जरूरत है।' मतलब साफ है कि ट्रंप अपनी जरूरत के हिसाब से उत्पादन बढ़ाना चाहतै हैं। मगर राह चुनौती भरी है। उधर, युद्धपोत का नाम अपने नाम पर रखने पर ट्रंप की आलोचना भी हो रही है।

 

दरअसल, अमेरिका में किसी जहाज का नाम जीवित व्यक्ति के नाम पर नहीं रखा जाता है। वहीं क्लास का नाम किसी प्रमुख जहाज के नाम पर रखा जाता है, न कि किसी शख्सियत के नाम पर। मगर ट्रंप ने यहां दोनों बातों का उल्लंघन किया। बता दें कि अमेरिका के अर्ले बर्क डीडीजी-51 जहाज के नाम पर ही अर्ले बर्क क्लास का नामकरण किया गया है। 

80 साल बाद अमेरिका बना रहा विनाशकारी युद्धपोत

अमेरिका सेना में अभी सबसे विशाल युद्धपोत जुमवाल्ट विध्वंसक है। इसका वजन करीब 15 हजार टन है। अमेरिकी नौसेना के मुताबिक ट्रंप क्लास युद्धपोत का वजन इससे दोगुना से भी ज्यादा होगा। यह अब तक का सबसे घातक युद्धपोत साबित होगा। ट्रंप क्लास के युद्धपोत का वजन 30 से 40 हजार टन हो सकता है। वहीं लंबाई करीब 880 फुट होगी।

 

अगर युद्धपोत बनकर तैयार हो जाता है तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद करीब 80 साल बाद अमेरिकी नौसेना द्वारा निर्मित यह सबसे बड़ा युद्धपोत होगा। अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस मिसौरी का वजन करीब 58,000 टन और लंबाई 887 फुट थी। हालांकि अमेरिका ने इसका निर्माण दूसरे विश्वयुद्ध से पहले किया था।

 

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ट्रंप क्लास के युद्धपोत में क्या-क्या होगा?

अमेरिकी नौसेना का दावा है कि ट्रंप क्लास के युद्धपोत अब तक के सभी युद्धपोत की तुलना में अधिक विनाशकारी क्षमताओं से लैस होंगे। दुश्मन पर 100 गुना अधिक ताकत के साथ हमला करने की क्षमता होगी। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लेजर तकनीक तक का इस्तेमाल किया जाएगा। 

 

युद्धपोत पर क्रूज मिसाइलों को तैनात किया जाएगा। यह मिसाइलें परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम होंगी। आवाज की गति से 5 गुना अधिक रफ्तार से हमला करने वाली इन मिसाइलों को युद्धपोत के 12 सेल से लॉन्च किया जाएगा। मिसाइलों में ऐसी तकनीक होगी कि यह दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को भ्रमित कर देंगी।

 

युद्धपोत पर 128 वर्टिकल लॉन्च सेल भी बनाए जाएंगे। इनका इस्तेमाल एंटी-शिप मिसाइल, मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर्स और टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों को दागने में किया जाएगा। इसके अलावा छोटी बंदूकें, रेल गन और 5 इंच की अन्य गन इंस्टॉल की जाएंगी।

 

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ट्रंप के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के सामने कौन सी चुनौतियां?

 

डिजाइन: अमेरिकी सरकार ने अभी तक ट्रंप क्लास के युद्धपोत के डिजाइन की कोई समय सीमा नहीं तय की है। हालांकि ट्रंप का कहना है कि वह पहले दो जहाजों के निर्माण में व्यक्तिगत तौर पर शामिल होंगे। वहीं थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) के मुताबिक इस युद्धपोत के डिजाइन में वर्षों का समय लगेगा।

 

थिंक टैंक की रिपोर्ट में तर्क दिया गया कि डीजीजी-1000 क्लास के युद्धपोत का निर्माण 2005 में शुरू हुआ था। इसका वजन सिर्फ 15 हजार टन था। 2016 तक सिर्फ तीन युद्धपोतों को बनाने में 11 साल का समय लग गया, जबकि ट्रंप क्लास के युद्धपोत एयरक्राफ्ट कैरियर को छोड़कर पिछले 80 साल में अमेरिका द्वारा निर्मित सबसे विशाल जहाज होंगे। ऐसे में इनके निर्माण में कई दशकों का समय लगना तय है।

 

लागत: ट्रंप के मुताबिक यह युद्धपोत अर्ले बर्क क्लास के विध्वंसक जहाजों की जगह नौसेना में शामिल होंगे। अर्ले बर्क क्लास के युद्धपोत की कीमत करीब 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। वहीं ट्रंप क्लास युद्धपोत की अनुमानित कीमत 15 बिलियन डॉलर तक आंकी गई है। युद्धपोत की यह लागत एक एयरक्रॉफ्ट कैरियर के बराबर है। अधिक महंगा होने के कारण भी इस प्रोजेक्ट पर रोक लग सकती है या फिर इसकी संख्या को कम किया जा सकता है। माना जा रहा है कि अमेरिकी नौसेना पहले दो, दूसरी बार 10 और बाद में 20-25 जहाजों का ऑर्डर दे देगी।

 

प्रोजेक्ट में देरी: अमेरिका में नए युद्धपोतों का निर्माण नौसैनिक जहाज निर्माण केंद्र करता है। मगर मौजूदा समय में यह केंद्र देरी से उत्पादन कर रहा है। करीब तीन साल की देरी के बाद पिछले महीने ही कॉन्स्टेलेशन-क्लास फ्रिगेट कार्यक्रम को कैंसिल करना पड़ा। इसके अलावा इसी साल अमेरिकी नौसेना को एक नया विमानवाहक पोत यूएसएस जॉन एफ कैनेडी मिलना था। यह कार्यक्रम अपने तय तारीख से करीब 2 साल पीछे चल रहा है। 

 

वेतन और स्किल लेबर: अमेरिका में कई शिपयार्ड अभी बंद हैं। ट्रंप क्लास के भारी भरकम जहाज के लिए इन शिपयार्ड को दोबारा खोलना होगा। बड़ी संख्या में स्किल्ड कर्मचारियों की भर्ती करनी होगी। कुछ कर्मचारियों को ट्रेनिंग भी देनी होगी। नौसेना सचिव फेलन का कहना है कि वेतन भी एक अहम मुद्दा है। शिपयार्ड में कठिन और कमरतोड़ काम होता है। अगर किसी व्यक्ति को अमेजन गोदाम और शिपयार्ड में काम के बदले एक जैसा ही वेतन मिलेगा तो वह शिपयार्ड में क्यों काम करेगा?

 

कौन लेगा ट्रंप का ड्रीम प्रोजेक्ट: अमेरिका का नौसैनिक जहाज निर्माण केंद्र काम के भारी बोझ तले दबा है। अब सवाल उठ रहा है कि ट्रंप के इन महत्वाकांक्षी युद्धपोतों का निर्माण कौन करेगा? मौजूदा समय में अमेरिका के पास बड़े जहाज को बनाने की सुविधा खाली नहीं है। उसकी निर्भरता अमेरिकी शिपयार्ड पर होगी। मगर उसे अपने पहले के ऑर्डर निर्माण और मरम्मत के कामों से फुर्सत नहीं है।