अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के खिलाफ उस फौज को उतारा था, जिसने 2 मई 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मारा था। इसका खुलासा हाल ही में हुआ है। पाकिस्तान में लादेन को नेवी सील की टीम ने मारा था। साल 2019 में ट्रंप के आदेश पर इसी टीम को उत्तर कोरिया भेजा गया। मगर ट्रंप का यह गुप्त मिशन परवान नहीं चढ़ सका।

 

अमेरिका सेना ने उत्तर कोरिया के खिलाफ रणनीतिक बढ़त के लिहाज से एक गुप्त मिशन तैयार किया। 2019 की शुरुआत में नेवी सील टीम 6 ने कई महीनों तक अमेरिकी जलक्षेत्र में अभ्यास किया। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद नेवी सील की आठ सदस्यीय टीम परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी से उत्तर कोरिया की ओर बढ़ने लगी। मिशन को अमेरिकी नौसेना की प्रमुख अंडरवाटर टीम और सील डिलीवरी व्हीकल टीम 1 से भी मदद मिल रही थी। उत्तर कोरिया के तट से दूर पनडुब्बी ऊपर आई। उस वक्त राष्ट्रपति ट्रंप से मिशन की मंजूरी मांगी गई। पनडुब्बी का संचार टूटने वाला ही था कि उससे पहले ट्रंप ने हामी भर दी। 

 

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परमाणु पनडुब्बी से पहुंचे अमेरिकी कमांडो

मिशन के तहत अमेरिकी नौसेना को कमांडो टीम को उत्तर कोरिया तक पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई। पहले टीम को परमाणु पनडुब्बी से ले जाना था। यह पनडुब्बी दो फुटबॉल स्टेडियम से बड़ी थी। बाद में सील कमांडो को मिनी पनडुब्बियों में बैठाना था। इसका काम सभी को किनारे तक पहुंचाना था। काले वेट सूट और नाइट विजन चश्मों से लैस आठ अमेरिकी कमांडो को मिनी पनडुब्बी से उत्तर कोरिया के तट के पास ले जाया गया। 

  

अभी तक अमेरिका का मिशन ठीक वैसा ही चल रहा था, जैसा प्लान तैयार किया गया था। मगर अकेले ही पल बड़ा झटका लगने वाला था। अमेरिकी कमांडो के सामने  उत्तर कोरिया की एक नाव आ गई। उसमें सवार लोगों ने अमेरिकी कमांडो पर टॉर्च मारी। सील टीम को मिशन की पोल खुलने का डर सताने लगा। उसने तुरंत उत्तर कोरियाई नाव पर फायरिंग शुरू कर दी। कुछ ही सेकंड में उत्तर कोरियाई नाव पर सवार सभी लोग मारे गए। इसके बाद अमेरिकी कमांडो टीम को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस्टॉल करने से पहले ही लौटना पड़ा और कुछ इस तरह ट्रंप का खुफिया मिशन धाराशयी हो गया।

मिशन का लक्ष्य क्या था?

उत्तर कोरिया के खिलाफ गुप्त मिशन का उद्देश्य रणनीतिक बढ़त हासिल करना था। उत्तर कोरिया की सरजमीं पर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस्टॉल करना था। इसका लक्ष्य था कि जब ट्रंप के साथ परमाणु वार्ता के दौरान किम जोंग उन के संचार को बाधित किया जा सके। मगर महीनों की तैयारी के बाद भी अमेरिका को सफलता नहीं मिली। अगर यह मिशन सफल हो जाता हो अमेरिका को उत्तर कोरिया से जुड़ी बहुमूल्य जानकारी मिलने की उम्मीद थी।

क्यों जोखिम भरा था मिशन?

अमेरिका का यह मिशन बेहद जोखिम भरा था। मिशन की पहली शर्त यह थी कि सबकुछ प्लान के मुताबिक हो। एक गलती सभी कमांडो की न केवल जान, बल्कि अमेरिका को भी खतरे में डाल सकती थी। ट्रंप के साथ किम जोंग उन की वार्ता तो टल ही जाती। इसके अलावा बंधक संकट और युद्ध जैसा जोखिम भी पैदा हो सकता था। अमेरिका की नेवी सील टीम अफगानिस्तान और इराक में रहने की आदी थी। मगर उत्तर कोरिया का मिशन बिल्कुल अलग था। इसमें टीम को घंटों ठंडे समुद्र में रहना था। जमीन पर मौजूद उत्तर कोरियाई सुरक्षा बलों को चमका देना था। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इंस्टॉल करने के बाद बिना पकड़े वापस भी आना था। यही कारण था कि डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी के बाद मिशन शुरू किया गया था। 

 

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लादेन वाली यूनिट को चुना गया

अमेरिका की सेना ने नेवी सील टीम 6 के रेड स्क्वाड्रन का चुनाव किया। इसी यूनिट ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर ओसामा बिन लादेन को मारा था। इन कमांडो को महीनों की ट्रेनिंग मिली। न्यूयॉर्क टाइम्स ने ट्रंप के पहले कार्यकाल के सदस्य, अधिकारियों और मिशन से जुड़े सैन्य अधिकारियों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में इस मिशन का खुलासा किया। हालांकि अभी तक अमेरिका और उत्तर कोरिया की सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

अमेरिका को गुप्त मिशन की क्यों पड़ी जरूरत?

2017 में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने। किम जोंग उन से उन्होंने बातचीत शुरू की। 2018 की सर्दियों में उत्तर कोरिया के साथ हाई लेवल वार्ता के बीच सील टीम 6 को ट्रंप की मंजूरी के बाद काम सौंपा गया। इस बीच उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु और मिसाइल टेस्ट को स्थगित कर दिया। दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई। मगर अमेरिका को किम जोंग उन पर भरोसा नहीं था। 2019 में ट्रंप और किम जोंग की बातचीत फेल हुई और उत्तर कोरिया ने अपना परमाणु कार्यक्रम तेज कर दिया था।

किसकी सलाह पर शुरू हुआ मिशन?

अमेरिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती उत्तर कोरिया में जासूसी करना था। वहां जासूस भर्ती करना और संचार उपकरणों को टैप करना आसान नहीं है। मगर अमेरिका किसी भी हद तक जाकर किम जोंग उन की मंशा जानना चाहता था। तभी अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने व्हाइट हाउस को एक सलाह दी। एक नया विकसित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से किम जोंग उन के संचार सिस्टम को इंटरसेप्ट किया जा सकता है। मगर चुनौती यह थी कि इसे चुपके से उत्तर कोरिया की धरती में लगाना होगा। नेवी सील को भरोसा था कि वह इस मिशन को अंजाम दे सकती है। इसके पीछे वाजिब वजह यह थी कि सील ने पहले भी उत्तर कोरिया के ऐसा ही एक मिशन किया था।

 

  • 2005 में नेवी सील के कमांडो एक मिनी पनडुब्बी से उत्तर कोरिया के किनारे पहुंचे थे। तट पर टहलने के बाद वहां से लौट आए थे। इसकी किसी को भनक तक नहीं लगी थी। उस वक्त अमेरिका की कमान जॉर्ज डब्ल्यू बुश के हाथ में थी। उनके आदेश के बाद नेवी सेल ने यह दुस्साहस किया था।