अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की निगाहें ग्रीनलैंड पर टेढ़ी हैं। वह खुलेआम इस पर कब्जा करने की बात कह चुके हैं। पिछले 300 साल से ग्रीनलैंड पर डेनमार्क का अधिकार है। ग्रीनलैंड को आंतरिक मामलों में काफी स्वायतता मिली है। मगर वह एक स्वतंत्र देश नहीं है। विदेश और रक्षा समेत बाहरी मामले डेनमार्क देखता है। जब ट्रंप ने ग्रीनलैंड को खरीदने की बात कही तो डेनमार्क ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। अमेरिका की बदलती नीयत से वह न केवल सतर्क है, बल्कि ग्रीनलैंड की सुरक्षा भी बढ़ा रहा है।
ग्रीनलैंड की पहचान दुनिया के सबसे बड़े द्वीप के तौर पर होती है। अगर इसकी लोकेशन की बात करें तो यह आर्कटिक और नॉर्थ अटलांटिक महासागर के बीच बसा है। इसका क्षेत्रफल करीब 2,166,086 वर्ग किलोमीटर है। लगभग 80 फीसद हिस्सा बर्फ से ढहा है। यहां सिर्फ 57,000 लोग रहते हैं। ग्रीनलैंड का विशाल भूभाग संसाधान के तौर पर बेहद समृद्ध है। तेल और गैस के अलावा प्रचुर मात्रा में खनिज भंडार हैं।
रॉयल हॉलोवे, लंदन विश्वविद्यालय में भू-राजनीति के प्रोफेसर क्लॉस डोड्स का कहना है कि ट्रंप के बयान से डेनमार्क घबरा गया है। वह ग्रीनलैंड के साथ अपने संबंधों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है। डेनमार्क ने दिसंबर और जनवरी में ग्रीनलैंड के सैन्य खर्च में भारी इजाफा किया था।
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डेनमार्क सतर्क, बढ़ा रहा ग्रीनलैंड की सुरक्षा
डेनमार्क मौजूदा घटनाक्रमों से सतर्क है। उसने ग्रीनलैंड की सुरक्षा बढ़ानी शुरू कर दी है। उसका कहना है कि यह सुरक्षा रूस और अमेरिका के खिलाफ बढ़ाई जा रही है। मगर इसकी असल वजह डोनाल्ड ट्रंप हैं। डेनमार्क ने अपना एयर डिफेंस फ्रिगेट एचडीएमएस नील्स जुएल को ग्रीनलैंड में तैनात किया है।
रूस बहाना, अमेरिका निशाना
डेनमार्क के अधिकारियों का मानना है कि रूस अभी यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा है। अगर यह युद्ध खत्म होता है तो रूस अपने संसाधनों को दूसरी जगह पर लगाएगा। वह आर्कटिक क्षेत्र में खतरा पैदा कर सकता है। आर्कटिक क्षेत्र में चीन ने भी अपना दखल शुरू किया है। वह लगातार रूस के साथ सैन्य अभ्यास और गश्त में हिस्सा लेता है। कई बुनियादी ढांचा से जुड़े प्रोजेक्ट की फंडिंग कर रहा है।
कैसी सैन्य तैयारी में जुटा डेनमार्क
आर्कटिक लाइट अभ्यास के नाम से डेनमार्क अपना सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास कर रहा है। वह आर्कटिक विशेष बल की स्थापना करने की भी तैयारी में है। इसके अलावा नए नौसैनिक जहाजों और लंबी दूरी के ड्रोन खरीदने में जुटा है। आर्कटिक रक्षा खर्च भी 2 बिलियन डॉलर से अधिक बढ़ा दिया है। ट्रंप के बयान के तुरंत बाद ही डेनमार्क ने सैन्य खर्च बढ़ाने का ऐलान किया था। इससे साफ है कि डेनमार्क की सैन्य तैयारी अमेरिका को ध्यान में रखकर अधिक है।
अमेरिका से नहीं खरीदेगा एयर डिफेंस सिस्टम
पिछले साल तक डेनमार्क अमेरिका से एयर डिफेंस खरीदने पर रूचि दिखा रहा था। मगर ट्रंप के बयान के बाद उसने अपनी रणनीति बदल दी। अब अमेरिका पैट्रियट मिसाइल बैटरियों की जगह यूरोपीय देश से नया एयर डिफेंस सिस्टम खरीदेगा। यह डेनमार्क की सबसे बड़ी सैन्य खरीद होगी। इस पर लगभग 9 बिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि खर्च होगी।
डोनाल्ड ट्रंप की नीयत क्यों खराब?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर ग्रीनलैंड के प्राकृतिक संसाधनों और रेयर अर्थ पर टिकी है। उनका मानना है कि ग्रीनलैंड की बर्फ तेजी से पिघल रही है। इससे इन संसाधनों का दोहन करना आसान हो जाएगा। इसके अलावा ट्रंप का मानना है कि अगर ग्रीनलैंड पर अमेरिका का कब्जा होगा तो राष्ट्रीय सुरक्षा को फायदा मिलेगा। ग्रीनलैंड की राजधानी नुउक डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन से अधिक दूर है, जबकि न्यूयॉर्क से बेहद करीब है।
यूरोप और अमेरिका के बीच अहम रणनीतिक भूभाग होने के कारण भी ट्रंप की इस पर निगाह टिकी है। सीएनएन से बातचीत में डेनिश इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के वरिष्ठ शोधकर्ता उलरिक प्राम गाद ने बताया कि ग्रीनलैंड को लंबे समय से अमेरिकी सुरक्षा के लिए अहम माना जाता है। खासकर तब जब रूस संभावित हमला करेगा। नॉर्थवेस्ट पैसेज शिपिंग लेन इसके तट के साथ-साथ गुजरता है। इस वजह से भी ग्रीनलैंड का महत्व अलग है।
ग्रीनलैंड में अमेरिका के कौन से हित?
अमेरिका और डेनमार्क के बीच साल 1951 में एक संधि हुई। इसके तहत अमेरिका को उत्तर-पश्चिम ग्रीनलैंड में एक हवाई अड्डा मिला। दुनिया आज इसे पिटुफिक स्पेस बेस के नाम से जानती है। इस बेस की लोकेशन बेहद अहम है। मिसाइल सिस्टम से लैस यह बेस मॉस्को और न्यूयॉर्क के बीच मौजूद अमेरिकी सशस्त्र बलों की सबसे उत्तरी चौकी है। अमेरिका चाहता है कि अगर ग्रीनलैंड पर उसका कब्जा हो गया तो उसे दुश्मन देश से बचाया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कोई दुश्मन देश उस पर कब्जा कर सकता है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा होगा।
ग्रीनलैंड में कौन सा धन छिपा?
ग्रीनलैंड में डिस्प्रोसियम, नियोडिमियम, यूरोपियम और यिट्रियम जैसे रेयर अर्थ खनिज हैं। इनका इस्तेमाल आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस हार्डवेयर, क्वांटम कंप्यूटिंग तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा सिस्टम और उन्नत रक्षा उपकरणों में किया जाता है। ग्रीनलैंड की सिर्फ टैनब्रीज परियोजना में अनुमानित 28 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड है। अभी दुनिया के 80 फीसद रेयर अर्थ मिनरल्स पर चीन का कब्जा है। अमेरिका ग्रीनलैंड पर कब्जे के बहाने चीन को पछाड़ना चाहता है।
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ग्रीनलैंड पर दुनिया की निगाह क्यों?
- प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता
- नए नौवहन मार्ग
- सामरिक महत्व
- रेयर अर्थ मिनरल्स
- 13% अज्ञात वैश्विक तेल भंडार
- 30% प्राकृतिक गैस भंडार
रूस और चीन क्यों दिखा रहे दिलचस्पी?
ग्रीनलैंड आर्कटिक क्षेत्र में पड़ता है। रूस ने आर्कटिक क्षेत्र में भारी निवेश कर रखा है। आर्कटिक क्षेत्र की लगभग 53 फीसदी सीमा पर रूस का नियंत्रण है। अपने क्षेत्र में उसने कई हवाई अड्डों का निर्माण किया है। लगातार सैन्य मौजूदगी बढ़ाता जा रहा है। चीन ने भी इस क्षेत्र में खूब निवेश कर रखा है। उसने खुद को आर्कटिक का निकटवर्ती देश घोषित किया है, ताकि अपने निवेश को उचित ठहरा सके। चीन ने रूस की आर्कटिक एलएनजी परियोजना पर भी निवेश किया है।
ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने से नए समुद्री नौवहन मार्गों का निर्माण हो रहा है। कनाडा का नॉर्थवेस्ट पैसेज और रूस का नॉर्दर्न सी रूट भी इसी क्षेत्र में है। इन रास्तों के खुलने से एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बीच समुद्री मार्ग पर लगने वाला समय 30% से 50% तक कम हो सकता है। इस वजह से भी न केवल अमेरिका, बल्कि रूस और चीन की भी यहां निगाहें टिकीं हैं।
अमेरिका ने कब-कब खरीदना चाहा ग्रीनलैंड?
अमेरिका ने 1867 में रूस से अलास्का खरीदा था। उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन थे। उन्होंने अलास्का के अलावा ग्रीनलैंड को भी खरीदने की इच्छा जाहिर की थी। 1945 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने 10 करोड़ डॉलर में डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीदने की पेशकश की थी। मगर बात नहीं बनी। अब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने ग्रीनलैंड खरीदने की इच्छा जाहिर की है।
