16 जनवरी को सैफ अली खान के घर में चोर घुस आया था। इस दौरान सैफ पर चोर ने चाकू से हमला कर दिया था। इस घटना से सभी लोग हैरान है। उन्हें आनन फानन में लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाया गया। उनकी सर्जरी हुई और अब वह खतरे से बाहर हैं। सैफ पर हुए हमले के बाद एक बार फिर सेलेब्स की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम पर कोई हमला करता है तब हमारा दिमाग कैसे काम करता है। उसके पीछे क्या साइकोलॉजी होती है। आइए इसके बारे में मनोचिकत्सक से जानते हैं।

 

जब भी हमारे दिमाग को किसी तरह के हमले का ऐहसास होता है तो हम अटैक या बचाव की तरफ देखते हैं। जब हमें लगता है कि हम अटैक करने से मुसीबत में फंस जाएंगे तो डिफेंस करते हैं। किसी भी तरह का खतरा होने पर दिमाग फाइट- फ्लाइट- फ्रीज मैकेनिज्म पर काम करता है। फाइट और फ्लाइट एक्टिव डिफेंस रिस्पॉन्स है जिसमें आप फाइट करते हैं या फिर वहां से भाग जाते हैं।

 

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राम मनोहर लोहिया अस्पताल के असिस्टेंट प्रोफेसर और मनोचिकित्सक डॉक्टर लोकेश सिंह शेखावत ने बताया कि जब भी अटैक होगा तो दिमाग रिफ्लेक्स एक्शन करेगा। इसका मतलब है कि हर व्यक्ति अपना बचाव सबसे पहले करता है। फिर चाहे वो छोटा सा जीव भी क्यों ना हो। उन्होंने कहा कुछ एनिमल्स फ्रीज भी हो जाते हैं। कुछ लोग अपने पुराने अनुभव के हिसाब से भी चीजें करते हैं। वहीं, कुछ लोगों का नेचर स्ट्रांग और इंपल्सिव होता हैं। ऐसे लोग बहुत ही हार्मफुल नेचर के होते हैं। ऐसे में वो दूसरे व्यक्ति को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

 

डॉक्टर लोकेश ने कहा, 'थ्रेट को हम कैसे परसिव करते हैं। हर व्यक्ति का उस थ्रेट को लेकर अलग-अलग परसेप्शन होता है। उदाहरण के लिए समझिए अगर आपके सामने शेर खड़ा है। पहले तो आप शॉक हो जाएंगे। इसके बाद आपको डर महसूस होगा। ऐसे में अगर आपने सोच लिया कि इस चीज से मुझे किसी भी तरह से बाहर आना है तो आदमी फाइट करेगा। अगर व्यक्ति ने ये परसेप्शन बना लिया कि ये उसका आखिरी समय है तो वो फ्रीज हो जाएगा'।

 

सैफ अली खान को लेकर कही ये बात

 

उन्होंने ने आगे बताया, 'आमतौर पर लोग अटैक से बचने की कोशिश करते हैं। हाल ही में सैफ अली खान वाला केस हुआ। उन पर चोर ने अटैक किया उन्होंने उस सिचुएशन में फाइट बैक किया जिसकी वजह से वह घायल भी हो गए। उन्होंने कहा, वह पिता के तौर पर अपने बच्चों के लिए फाइट कर रहे थे। उस समय उनके दिमाग में एल्ट्रूस्टिक थॉट्स आते हैं। इसमें व्यक्ति अपनों के लिए अपनी जान भी दाव पर लगा सकता है। शायद वो अकेले तो एक बार को स्केप ढूंढ़ने की कोशिश करते'। 

 

डर की वजह से बढ़ता है कोर्टिसोल का लेवल

 

डॉक्टर लोकेश ने बताया, डर की वजह से शरीर में कोर्टिसोल का लेवल बढ़ता है। इस दौरान हम इंपल्सिव डिसीजन लें लेते हैं। जितना कम समय होगा उतना इंपल्सिव डिसीजन होगा। डर के साथ एंग्जायटी आती है। उस वजह से विजन बहुत छोटा हो जाता है। जब भी किसी को एंग्जायटी होती है तो डिसीजन उसका बायस्ड हो जाता है। उसी व्यक्ति को अगर 5 मिनट का समय दिया जाए तो वो कुछ और बताएगा। वहीं, कुछ सेंकेड होंगे तो उसका रिएक्शन कुछ और होता है। जितना कम समय होगा इंप्लसिविटी आने का चांस उतना ही ज्यादा है। घबराहट में डिसीजन उतना ही गलत होता है।

 

उन्होंने आगे कहा, 'मैं आपको बताता हूं कि जैसे किसी बिल्डिंग में आग लगी तो लोग बालकनी से कूद जाते हैं जबकि उन्हें भी पता है कि यहां से मरना है वहां पर भी मरना है। वहीं, वो मुंह पर कपड़ा बांध लें या जमीन पर लेट जाए तो बचने के चांस बढ़ सकते हैं। मगर वो इंपल्सिव डिसिजन की वजह से गलत फैसले लेते हैं। कोर्टिशल के साथ-साथ एंडोर्फिन सीक्रिट होता है। इस वजह से उन्हें दर्द का भी पता नहीं चलता है। कई बार कुछ ऐसे लोग भी भागने लगते हैं जिनके पैर में दर्द है क्योंकि उनके शरीर में एड्रलीन रश बहुत ज्यादा है'।