राजनीति में अपराधीकरण को रोकने की बातें तो खूब होती हैं लेकिन जब इस पर लगाम लगाने की बात आती है तो कदम पीछे खींच लिए जाते हैं।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर दोषी नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का विरोध किया है। केंद्र ने अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा कि दोषियों को 6 साल के लिए चुनाव लड़ने से रोकना काफी है। दोषियों की अयोग्यता पर फैसला करने का अधिकार संसद के पास है।
सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय ने दोषी नेताओं के चुनाव लड़ने पर ताउम्र प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की थी। अपनी याचिका पर उन्होंने जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 और 9 को चुनौती दी है। इस पर ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है।
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केंद्र ने क्या कहा?
अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा, 'संविधान ने संसद को अयोग्यता से जुड़े कानून बनाने का अधिकार दिया है। संसद के पास अयोग्यता के आधार और उसकी समयसीमा, दोनों तय करने का अधिकार है। आजीवन प्रतिबंध लगाना सही होगा या नहीं? ये पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।'
दागी क्यों हैं पसंद?
सभी राजनीतिक पार्टियां अपराधियों पर लगाम कसने के दावे करती हैं, मगर ऐसे नेताओं को टिकट भी बांटती हैं। अगर चुनाव नतीजों का एनालिसिस किया जाए तो पता चलता है कि 'बेदाग' छवि वाले नेताओं की तुलना में 'दागियों' के चुनाव जीतने की संभावना ज्यादा है।
राजनीतिक पार्टियां जब क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले नेता को टिकट देती हैं तो उम्मीदवार अपने खिलाफ दर्ज मामलों को 'राजनीतिक बदला' बताते हैं। और तो और, राजनीतिक पार्टियां भी कहती हैं कि इन्हें टिकट इसलिए दिया, क्योंकि 'उनसे अच्छा' उम्मीदवार नहीं था।
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दागियों पर क्या कहता है ट्रेंड्स?
क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों के चुनाव जीतने की संभावना ज्यादा रहती है। इसे कुछ उदाहरणों से समझते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में 8,360 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। इनमें से 1,643 उम्मीदवार ऐसे थे, जिनके खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज थे।
लोकसभा के लिए जो 543 सांसद चुने गए, उनमें से 251 पर क्रिमिनल केस थे। यानी, 1643 दागियों में से 251 चुनाव जीत गए। ऐसे में इनका सक्सेस रेट 15.27% रहा। इससे इतर 6,717 उम्मीदवार साफ छवि के थे। इन पर कोई केस नहीं था। इनमें से 292 ने ही चुनाव जीता। यानी, इनका सक्सेस रेट 4.34% रहा।
अब एक चुनाव पीछे जाकर देखते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 8,049 उम्मीदवार में थे, जिनमें से 1,500 पर क्रिमिनल केस दर्ज था। क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले 1,500 उम्मीदवारों में से 233 ने चुनाव जीता। यानी इनका सक्सेस रेट 15.53% था। वहीं, बाकी बचे साफ छवि वाले 6,549 उम्मीदवारों में से 310 ही चुनाव जीत पाए। ऐसे में बेदाग नेताओं का सक्सेस रेट 4.73% रहा।
दिल्ली चुनाव में भी ऐसा ही रहा ट्रेंड
हाल ही में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए थे। इस चुनाव में कुल 699 उम्मीदवार मैदान में थे। इन 699 में से 132 उम्मीदवार क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले थे। दिल्ली का चुनाव जीते 70 में से 31 विधायकों पर आपराधिक केस दर्ज थे। इस हिसाब से दिल्ली के चुनाव में क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों का सक्सेस रेट 23.48% रहा। वहीं, साफ छवि वाले उम्मीदवारों का सक्सेस रेट 6.87% था।
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संसद में कितने दागी?
लोकसभा में हर चुनाव के साथ दागी सांसदों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में चुने गए 543 में से 251 सांसद आपराधिक छवि के थे। ये कुल सांसदों का 46 फीसदी है। ये अब तक के इतिहास में दागी सांसदों की सबसे बड़ी संख्या है। इससे पहले 2019 में 233 और 2014 में 185 दागी सांसद लोकसभा पहुंचे थे।
हैरान करने वाली बात ये है कि इन 251 में से 170 सांसद ऐसे हैं, जिनके गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। गंभीर मामले यानी ऐसे अपराध में जिनमें 5 साल या उससे ज्यादा की सजा होने का प्रावधान है। 2019 में 159 सांसदों पर गंभीर मामले दर्ज थे।
वहीं, मार्च 2024 की रिपोर्ट बताती है कि राज्यसभा के 225 में से 75 यानी 33 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। इनमें से 40 सांसदों पर गंभीर मामले थे।
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इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के 3 बड़े फैसले
राजनीति के अपराधिकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बीते दो दशकों में तीन बड़े फैसले दिए हैं। पहले चुनावी हलफनामे में आपराधिक मामलों की जानकारी देना जरूरी नहीं था। 2002 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हलफनामे में क्रिमिनल केस की जानकारी देना जरूरी है।
इसके बाद जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी नेताओं की अयोग्यता पर बड़ा फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में साफ कर दिया था कि जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 के तहत, जिस दिन किसी सांसद या विधायक को दोषी ठहराया जाएगा, उसी दिन से वो अयोग्य हो जाएगा। इससे पहले तक प्रावधान था कि अगर किसी सांसद या विधायक को दोषी ठहराया जाता है और इस फैसले को अगर ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाती है तो सुनवाई पूरी तक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
इसके अलावा, फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर राजनीतिक पार्टियां क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले को उम्मीदवार बनाती है तो उसके खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों की जानकारी पार्टी की वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी। क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले को उम्मीदवार बनाने का कारण भी देना होगा।
नोटः क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवार और सांसदों-विधायकों की संख्या एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट से ली गई हैं।