दिल्ली की भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार ने एक और CAG रिपोर्ट विधानसभा में पेश कर दी है। इस रिपोर्ट का नाम 'प्रिवेंशन एंड मिटिगेशन ऑफ वेहिकुलर एयर पॉल्युशन इन दिल्ली' है। यह रिपोर्ट 31 मार्च 2021 तक के समय के बारे में है। इस रिपोर्ट में 2016 से 2020 के बीच के समय दिल्ली में होने वाले प्रदूषण, गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण और दिल्ली के पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के बारे में किए गए ऑडिट का जिक्र किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 5 साल के कुल 2137 दिनों में से 1195 दिन दिल्ली की हवा 'खराब' से लेकर 'गंभीर रूप से खराब' कैटगरी में रही। इस CAG रिपोर्ट में बताया गया है कि बढ़ते प्रदूषण के बावजूद दिल्ली सरकार ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को मजबूत करने के लिए काम नहीं किए। साथ ही, दिल्ली में प्रदूषण मापने वाले मॉनीटरिंग सेंटर की स्थिति और पॉल्युशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट (PUCC) जारी करने में भी गड़बड़ी पाई गई।
बता दें दि दिल्ली में हवा का प्रदूषण एक चर्चित विषय रहा है। 2016 से 2020 के डेटा के मुताबिक, हर साल अक्तूबर से जनवरी के बीच AQI का स्तर 250 से 350 तक पहुंचता रहा, जो कि सांस लेने के लिए बेहद खतरनाक है। AQI 0 से 50 होने पर ही वह इंसानों के लिए अच्छा माना जा सकता है। 50 से 100 की बीच होने पर संवेदनशील लोगों को समस्या होती है लेकिन 100 से 200 के बीच अन्य लोगों की भी समस्या होने लगी है। CAG रिपोर्ट में माना गया है कि दिल्ली की सरकार इसे कम करने में नाकामयाब रही है। ऐसा होने की वजह रही कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए बसों की संख्या कम रही। इसके अलावा, दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक ट्रॉली बस और मोनोरेल एंड लाइट रेल ट्रांजिट जैसे वैकल्पिक प्रोजेक्ट पर काम नहीं किया गया।
PUC जारी करने में गड़बड़ी
हर तरह की गाड़ियों के लिए समय-समय पर पॉल्युशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट (PUCC) लेना अनिवार्य होता है। CAG रिपोर्ट के मुताबिक, PUC सर्टिफिकेट जारी करने में भी गड़बड़ी की बात सामने आई है। 10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 के बीच कुल 22.14 लाख डीजल गाड़ियों में प्रदूषण का स्तर जांचा गया और 24 पर्सेंट गाड़ियां के लिए टेस्ट वैल्यू ही दर्ज नहीं की गई। 4007 मामले ऐसे थे जिनमें टेस्ट वैल्यू तय मात्रा से ज्यादा था लेकिन उन्हें भी 'पास' घोषित कर दिया गया। इसका मतलब यह हुआ कि ये गाड़ियां तय मात्रा से ज्यादा प्रदूषण फैला रही थीं लेकिन उन्हें PUC सर्टिफिकेट दे दिए गए।
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वहीं, 10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 के बीच कुल 65.36 लाख गाड़ियों को PUC सर्टिफिकेट दिए गए जिसमें से 1.08 लाख गाड़ियों में CO/HC उत्सर्जन ज्यादा था। 7643 मामले ऐसे थे जिनमें यह पाया गया कि एक ही समय पर, एक ही टेस्टिंग सेंटर पर एक से ज्यादा गाड़ियों की टेस्टिंग कर दी गई। 76865 केस ऐसे थे जिनमें 1 मिनट से भी कम समय में गाड़ी की चेकिंग भी हो गई और PUC भी मिल गया जबकि असल में यह संभव नहीं है।
साथ ही, यह भी पाया गया है कि हर साल गाड़ियों की संख्या बढ़ने के बावजूद फिटनेस टेस्ट की संख्या कम होती गई। उदाहरण के लिए साल 2014-15 में कुल 1,97,715 गाड़ियों का फिटनेस टेस्ट होना था लेकिन 79.36 पर्सेंट गाड़िआं का टेस्ट हुआ। 2015-16 में 56.36 पर्सेंट, 2016-17 में 67.98 पर्सेंट, 2017-18 में 66.73 पर्सेंट और 2018-19 में सिर्फ 35.20 पर्सेंट गाड़ियों का ही फिटनेस टेस्ट हुआ।
'गलत जगह बनाए मॉनीटरिंग स्टेशन'
दिल्ली में मार्च 2021 तक कुल 38 कंटिनिअस एम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशन (CAAQMS) थे। CAG ऑडिट में पाया गया कि ऐसे मॉनीटरिंग स्टेशन ऐसी जगहों पर बना दिए गए जो इस काम के लिए सही नहीं थी। कुल 13 CAAQMS का फिजिकल वेरिफिकेशन किया गया जिसमें यह पता चला कि इनलेट तो सब में 4 मीटर ऊंचाई पर था लेकिन पेड़ों से दूरी, रास्ते में पड़ने वाली बाधा और अन्य नियमों का पालन नहीं किया गया।
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नियनों के मुताबिक, CAAQMS ऐसी जगह पर नहीं होने चाहिए जो बंद हो। इनलेट की उंचाई जमीन से 3 से 10 मीटर के बीच होनी चाहिए और आसपास मौजूद पेड़ों से कम से कम 20 मीटर की दूरी होनी चाहिए। साथ ही, कच्ची सड़क या गलियों से कम से कम 200 मीटर की दूरी होनी चाहिए और आसपास कोई भट्टी या धुआं निकालने वाली कोई और चीज नहीं होनी चाहिए।
CAG ऑडिट के मुताबिक, जिन 13 CAAQMS की जांच की गई उन सभी के कई तरफ पेड़ था। आनंद विहार और वजीरपुर में बने ये सेंटर सड़क के पास थे। वहीं, सिविल लाइंस, वजीरपुर और ओखला में मौजूद CAAQMS ऊंची बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन साइट के पास बना दिए गए थे। इनकी जगह सही न होने के चलते यह पूरी तरह संभव है कि ये जो डेटा इकट्ठा करते हैं, वह सही नहीं है और इससे AQI का गलत आकलन किया जा रहा है।
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इसके अलावा, यह भी पाया गया कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (DPCC) के एक भी CAAQMS में हवा में मौजूद लेड (Pb) और सात अन्य प्रदूषकों की मात्रा नहीं मापी जा रही थी।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम
मार्च 2021 तक दिल्ली में रजिस्टर्ड गाड़ियों की संख्या 1.3 करोड़ थी। भू विज्ञान विभाग के मुताबिक, साल 2018 में ही हर दिन अन्य राज्यों से लगभग 11 लाख गाड़ियां आती थीं। गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार को पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करना चाहिए। दिल्ली सरकार के साल 2012 के आकलन के मुताबिक, दिल्ली में कुल 11 हजार बसों की जरूरत थी लेकिन मार्च 2021 तक यह संख्या पूरी नहीं थी।
दिल्ली परिवहन निगम के पास अप्रैल 2014 में कुल 5223 बसें थीं लेकिन मार्च 2021 में यह संख्या सिर्फ 3760 रह गई। वहीं, क्लस्टर बसों की संख्या मार्च 2015 में 1292 थी जो मार्च 2021 में 2990 हो गई। इसके बावजूद कुल मिलाकर 6750 बसें ही थीं जबकि होनी 11 हजार चाहिए थीं।
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एक और बात ध्यान योग्य है कि 2011 से 2021 के बीच दिल्ली में दोपहिया वाहनों की संख्या 43 लाख से बढ़कर 81 लाख हो गई। CAG ऑडिट में यह पाया गया है कि दिल्ली में बसों की संख्या कम है, तय रूट पर भी बसें नहीं चल पा रही हैं, 2011 से 2021 के बीच ग्रामीण सेवा की गाड़ियों की संख्या उतनी ही रही और वैकल्पिक साधनों पर विचार नहीं किया गया जिसके चलते गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण पर रोक नहीं लगाई जा सकी।