बिहार के बाद अब देश के बाकी राज्यों में भी वोटर लिस्ट की सफाई का काम शुरू हो गया है। चुनाव आयोग ने सोमवार को 9 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) की घोषणा की है। चुनाव आयोग का कहना है कि जिन वोटर के नाम एक से ज्यादा जगह है और जिनकी मौत हो चुकी है, उनका नाम वोटर लिस्ट से हटाने के लिए SIR किया जाएगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'SIR का दूसरा फेज 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में होगा।' उन्होंने कहा कि इस कवायद का मकसद यह है कि कोई भी योग्य वोटर छूटे नहीं और अयोग्य वोटर लिस्ट में न हो।
बिहार के बाद SIR का यह दूसरा फेज है। ज्ञानेश कुमार ने कहा कि SIR के पहले फेज में बिहार में एक भी अपील नहीं आई। उन्होंने यह भी बताया कि दूसरे फेज में 51 करोड़ वोटर्स कवर होंगे।
SIR का मकसद अवैध विदेशी प्रवासियों को वोटर लिस्ट से हटाना है। इसके लिए वोटर्स के जन्मस्थान की पहचान की जाएगी। चुनाव अधिकारी घर-घर जाकर इसकी जांच करेंगे। चुनाव आयोग के मुताबिक, ज्यादातर राज्यों में आखिरी बार 2002 से 2004 के बीच SIR हुआ था।
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कहां-कहां होगा SIR?
चुनाव आयोग ने बताया कि 1951 से 2004 के बीच 8 बार SIR हुआ था। लगभग 21 साल से SIR नहीं हुआ है, इसलिए अब इसे किया जा रहा है।
अब दूसरे चरण में 9 राज्य- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, केरल, गुजरात, गोवा, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में SIR होगा। इनके अलावा तीन केंद्र शासित प्रदेश- अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में भी SIR किया जाएगा।

ज्ञानेश कुमार ने बताया कि 4 नवंबर से 4 दिसंबर के तक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर गिनती करेंगे। इसके बाद 9 दिसंबर को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी होगी। 9 दिसंबर से 8 जनवरी 2026 तक दावे-आपत्ति दर्ज किए जाएंगे। 7 फरवरी 2026 को फाइनल वोटर लिस्ट जारी होगी।
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5 में से 4 चुनावी राज्यों में SIR
अगले साल अप्रैल-मई में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से 4 में SIR किया जाएगा। अगले साल असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होने हैं। इनमें से सिर्फ असम को छोड़कर बाकी चारों में SIR होगा।
पहले ऐसा कहा जा रहा था कि जिन राज्यों में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, वहां SIR नहीं होगा। केरल में भी स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, लेकिन वहां भी SIR होगा। इस पर ज्ञानेश कुमार ने कहा कि अब तक स्थानीय निकाय चुनावों का नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है।
अब इस पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि जब बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे चुनावी राज्यों में SIR हो रहा है तो असम में क्यों नहीं किया जा रहा है?
असम में क्यों नहीं हो रहा SIR?
असम में भी अगले साल विधानसभा चुनाव हैं लेकिन यहां SIR नहीं हो रहा है। ज्ञानेश कुमार ने कहा असम में SIR के लिए अलग से स्पेशल ऑर्डर जारी किया जाएगा।
उन्होंने बताया, 'नागरिकता कानून के तहत असम में नागरिकता के लिए अलग प्रावधान हैं। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में नागरिकता की जांच का काम लगभग पूरा होने वाला है।' उन्होंने कहा कि 24 जून को सुप्रीम कोर्ट का SIR पर आदेश पूरे देश के लिए था। यह असम पर लागू नहीं होता।
उन्होंने कहा, 'असम के लिए नागरिकता के नियम देश के बाकी हिस्सों से अलग हैं। इसलिए असम के लिए अलग से आदेश जारी किया जाएगा और अलग तारीख की घोषणा की जाएगी।'
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असम में क्या है नागरिकता का नियम?
दरअसल, असम में नागरिकता के लिए अलग नियम हैं। नागरिकता कानून की धारा 6A के तहत यहां अलग नियम हैं।
इस नियम के तहत, 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से असम आने वालों को ही भारतीय नागरिक माना जाता है।
नियम के तहत, 1 जनवरी 1966 से पहले भारत आने वालों को ही भारतीय नागरिक माना जाता है, जबकि 1966 से 1971 के दौरान आने वालों को उचित रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद नागरिकता मिल सकती है। हालांकि, 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले किसी भी व्यक्ति को अवैध प्रवासी माना जाता है और उसे नागरिकता नहीं दी जा सकती। ऐसे मामलों में आखिरी फैसला फॉरेन ट्रिब्यूनल करता है।
इतना ही नहीं, माना जा रहा है कि असम में SIR की प्रक्रिया बेहद पेचीदा भी हो सकती है। क्योंकि 6 साल पहले यहां नेशनल रजिस्ट्री ऑफ सिटीजंस (NRC) को लेकर काफी हंगामा हुआ था। NRC से 19 लाख से ज्यादा लोगों को बाहर रखा गया था और इन्हें अवैध प्रवासी मानते हुए विदेशी नागरिक घोषित कर दिया गया था। हालांकि, यह प्रक्रिया अभी भी अधूरी है, क्योंकि केंद्र ने अभी तक उस लिस्ट को नोटिफाई नहीं किया है।
विपक्ष के सवाल और बीजेपी का जवाब
चुनाव आयोग ने जैसे ही 12 राज्यों में SIR करने की घोषणा की, उसके बाद हंगामा शुरू हो गया। विपक्ष ने इस पर सवाल उठाए हैं। इस पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने कहा कि चुनाव आयोग की मंशा और विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है, क्योंकि इससे न तो वोटर्स संतुष्ट हैं और न ही विपक्ष।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि बिहार में हुए SIR से जुड़े सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं और अब चुनाव आयोग देशभर में इसे करने जा रहा है। उन्होंने यह भी पूछा कि 'क्या बिहार को SIR के जरिए लोकतंत्र की हत्या की प्रयोगशाला बना दिया गया है?'
समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने कहा कि सरकार की मंशा साफ नहीं है। उन्होंने कहा, 'सरकार देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है।'
तृणमूल कांग्रेस के नेता कुणाल घोष ने कहा कि 'बीजेपी के इशारे पर योग्य वोटर्स का नाम हटाने की कोशिश की जा सकती है।' उन्होंने कहा कि अगर योग्य वोटर्स का नाम हटाया जाता है तो इसका विरोध किया जाएगा। सीपीआई महासचिव डी राजा ने कहा कि एक संवैधानिक संस्था होने के नाते चुनाव आयोग को सभी योग्य वोटर्स के वोटिंग के अधिकार को सुनिश्चित करना होगा।
इस पर पलटवार करते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा विपक्ष 'असंतुष्ट आत्माओं का झुंड' और 'पाखंड में माहिर' है।
उन्होंने कहा कि 'एक तरफ वे कहते हैं कि SIR वोट चुराने के लिए है और यह संविधान के खिलाफ है और ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों से पहले विपक्ष SIR की मांग कर रहा है।'
पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा, 'SIR सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई है।'
इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 2 नवंबर को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई है। उन्होंने कहा कि 'चुनाव से कुछ महीने पहले और खासकर नवंबर-दिसंबर में मानसून के महीनों में SIR करना कठिनाइयों भरा है। जल्दबाजी में SIR करना, नागरिकों के अधिकारों को छीनने और बीजेपी की मदद करने की चुनाव आयोग की एक साजिश के अलावा और कुछ नहीं है।'
