कानून का एक पुराना सिद्धांत है, 'जस्टिस डिलेड, इज जस्टिस डिनाइड।' हिंदी में इस कहावत का मतलब है, 'देरी से मिला न्याय, अन्याय है।' यही वजह सिद्धांत है, जिसके आधार पर अदालतों में 'स्पीडी ट्रायल' की अवधारणा आई और हुसैनारा खातून बनाम स्टेट ऑफ बिहार (1979) में सुप्रीम कोर्ट ने स्पीडी ट्रायल को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार तक बता दिया। क्या हो अगर किसी की मौत हो जाए लेकिन उसे इंसाफ आधा ही मिले, इसे क्या कहा जाएगा? डीके शर्मा केस की कहानी कुछ ऐसी ही है। 

इंडिया टूरिज्म डेवलेपटमेंट कॉर्पोरेशन (ITDC) के एक कर्मचारी की नौकरी छिनने का मामला तीन अदालतों में 34 साल तक चला और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। दुख की बात यह है कि डीके शर्मा की मौत पिछले साल हो गई थी। फैसला आने से करीब एक साल पहले उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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परिवार को मिलेगी बकाया सैलरी 

अब डीके शर्मा परिवार को 50 प्रतिशत बकाया वेतन मिलेगा। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक डीके शर्मा की जो भी सैलरी होगी, अब परिवार को दी जाएगी। डीके शर्मा को 1991 में ITDC ने नौकरी से निकाल दिया था। इसके खिलाफ उन्होंने लेबर कोर्ट में केस दायर किया। लेबर कोर्ट में ITDC के आरोप साबित नहीं हुए। डीके शर्मा के पक्ष में कोर्ट ने फैसला दिया और उन्हें नौकरी पर वापस लेने के साथ 100 प्रतिशत बकाया वेतन देने का आदेश दिया। यह फैसला 2015 में आया था। 

हाई कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था?

निकाले जाने के 24 साल बाद आए इस फैसले को ITDC ने राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दे दी। हाई कोर्ट की सिंगल जज बेंच ने बकाया वेतन को 100 प्रतिशत से घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया। बाद में डिवीजन बेंच ने नौकरी वापसी और बकाया वेतन दोनों को ही रद्द कर दिया। 

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या राह दिखाई?

हाई कोर्ट से खारिज केस रद्द होने के बाद डीके शर्मा ने साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने अब डीके शर्मा की अपील मंजूर कर ली और हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के 50 प्रतिशत बकाया वेतन वाले फैसले को बहाल कर दिया। 

50 प्रतिशत ही वेतन क्यों?

जस्टिस मनोज मिश्रा और उज्ज्वल भूइयां की बेंच ने कहा कि डीके शर्मा ने हलफनामा देकर बताया था कि निकाले जाने के बाद वे कहीं नौकरी नहीं कर रहे थे। ITDC के पास ऐसे कोई सबूत नहीं थे, जो डीके शर्मा के दावे को खारिज कर से। कोर्ट ने कहा कि इतना वक्त बीत गया है, होटल अशोका का मालिकाना हक भी बदल गया है, इसलिए 50 प्रतिशत बकाया वेतन ही न्यायसंगत है।

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डीके शर्मा की मौत, अब किसे दी जाएगी बकाया सैलरी?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कहा है कि अगर कोई शख्स जीविका चलाने के लिए छोटे-मोटे काम शुरू कर दे तो बकाया वेतन देने से इनकार नहीं किया जा सकता है, अगर नौकरी से निलंबन या निष्कासन सजा के तौर पर हुई है। डीके शर्मा की लंबी सर्विस और उम्र को ध्यान में रखते हुए यह फैसला उचित है। अब यह राशि उनके परिवार को मिलेगी।