15 के जन आहार से 5 रुपये वाली अटल कैंटीन तक, क्यों खिलाना पड़ता है सस्ता खाना?
देश की राजधानी दिल्ली में आज से अटल कैंटीन की शुरुआत की जा रही है जिनमें सिर्फ 5 रुपये में खाना दिया जाएगा, इससे पहले शीला दीक्षित ने भी ऐसी योजना शुरू की थी।

अटल कैंटीन में खाना परोसतीं CM रेखा गुप्ता, Photo Credit: Rekha Gupta
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस के मौके पर देश की राजधानी दिल्ली में 'अटल कैंटीन' की शुरुआत की जा रही है। 100 अटल कैंटीन के जरिए दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार सिर्फ 5 रुपये में लोगों को खाना खिलाएगी। इस योजना की तुलना दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के समय शुरू हुई 'जन आहार योजना' से भी हो रही है। तब 15 रुपये में भरपेट भोजन कराया जाता है। देश में दिल्ली इकलौता ऐसा राज्य नहीं है, जहां जनता के लिए कम कीमत पर खाने का इंतजाम किया जा रहा है। दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी इस तरह की योजनाएं चलती रही हैं। इन योजनाओं के पक्ष और विपक्ष में तमाम तरह के तर्क दिए जाते हैं लेकिन इनकी लोकप्रियता खूब रही है।
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने साल 2021 में 'मां कैंटीन' की शुरुआत की जिसमें 5 रुपये में खाना खिलाया जाता है। आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार 'अन्ना कैंटीन' के जरिए 5 रुपये में खाना खिलाती है। तमिलनाडु में जे जयललिता के समय 'अम्मा कैंटीन' शुरू की गई थी जो आज भी जारी है। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने इंदिरा कैंटीन शुरू की थी लेकिन बाद में इसका नाम अन्नपूर्णा कैंटीन कर दिया गया। यानी कई राज्यों में ऐसी योजनाएं सरकार के सहयोग से चल रही हैं और लोग इसका फायदा भी उठा रहे हैं।
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दिल्ली में 600 से ज्यादा झुग्गी-झोपड़ियां हैं जिनमें गरीब तबके के लोग रहते हैं। अटल कैंटीन को इन इलाकों में ही खोल जा रहा है ताकि गरीब तबके को सीधे पहुंचाया जा सके। हालांकि, शीला दीक्षित के 15 साल के कार्यकाल और आम आदमी पार्टी के 10 साल के कार्यकाल के बावजूद देश की राजधानी में ऐसी जरूरत पड़ रही है कि लोगों को सस्ते में खाना खिलाया जाए। यह देश की खाद्य सुरक्षा पर भी सवाल खड़े करता है।
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क्या है अटल कैंटीन का मकसद?
2025 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने वादा किया था कि अगर वह सरकार में आएगी तो सिर्फ 5 रुपये में खाना खिलाने वाली कैंटीन की शुरुआत की जाएगी। अब दिल्ली सरकार अपना यह वादा निभा रही है और 100 जगहों पर अटैल कैंटीन खोलने की शुरुआत कर दी है। इसके लिए दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार ने 100 करोड़ रुपये का बजट भी रखा है।
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इस योजना का मकसद है कि झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाकों में रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों, गरीबों और जरूरतमंद परिवारों को सिर्फ 5 रुपये में खाना मुहैया कराया जाए। इन कैंटीन में दिन में दो बार खाना मिलेगा और 5 रुपये में दाल, चावल, रोटी और सब्जी दी जाएगी। सरकार का दावा है कि इन कैंटीन में मिलने वाला खाना पौष्टिक और अच्छी गुणवत्ता वाला होगा। एक कैंटीन दिन भर में लगभग 1000 लोगों को खाना खिलाने में सक्षम होगी।
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शीला दीक्षित की जन आहार योजना
दिल्ली में ऐसी योजना पहली बार नहीं शुरू हो रही है। साल 1998 के 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने 'जन आहार योजना' नाम से ऐसी ही योजना शुरू की थी, जिसमें 15 रुपये में भोजन दिया जाता था। आज भी दिल्ली के कुछ इलाकों में इस योजना से जुड़े स्टॉल आपको देखने को मिल जाएंगे। हालांकि, अब उनपर खाना नहीं मिलता। साल 2010 में शुरू की गई इस योजना के तहत 15 रुपये में 6 पूड़ी या 4 रोटी, सब्जी, दाल या राजमा या छोले, दही या रायता और 400 ग्राम चावल दिया जाता था। कुल 12 संस्थाओं को अनुमति दी गई थी और 39 जगहों पर खाना दिया जा रहा था। समय के साथ 15 रुपये को बढ़ाकर 18 रुपये कर दिया गया था।
दिल्ली में शीला दीक्षित और कांग्रेस को हराकर सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल ने भी एलान किया था कि 'आम आदमी कैंटीन योजना' शुरू की जाएगी। प्रस्ताव था कि 5 या 10 रुपये में खाना दिया जाएगा। हालांकि, यह योजना कभी जमीन पर नहीं उतर पाई और ऐसी एक भी कैंटीन नहीं शुरू की गई। अब रेखा गुप्ता की सरकार ने ऐसी कैंटीन की शुरुआत कर दी है।
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दिल्ली में क्यों जरूरी हैं ऐसी कैंटीन?
दिल्ली में देश के लगभग सभी राज्यों के लोग काम की तलाश में आते हैं। गरीब तबके के लोगों के लिए किराए का कमरा, खाने का इंतजाम, खाना बनाने में लगने वाला समय खर्चीला होता है। यही वजह है कि ऐसे तबके के लोग अनधिकृत कॉलोनियों या झुग्गियों में रहने लगते हैं।
कैंटीन सर्वे 2023 में कई शहरों की ऐसी कैंटीनों में खाना-खाने वाले लोगों ने बताया कि उन्हें बना बनाया खाना मिल जाता है जिससे समय बचता है। कामगार वर्ग के लिए ऐसी कैंटीन खाने का काम आसान कर देती हैं।
भूख और भारत
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2025 के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया के 10 प्रतिशत लोगों के पास आज भी खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है। इस हिसाब से दुनिया के 67.3 करोड़ लोग भुखमरी की कगार पर हैं। सोमालिया, साउथ सूडान, मेडागास्कर और कॉन्गो जैसे देशों में भुखमरी की समस्या सबसे ज्यादा है। अगर भारत की बात करें तो यहां भी यह समस्या कम नहीं है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2025 में भारत का स्कोर 25.8 था और कुल 123 देशों में से भारत 102 नंबर पर था। इस लिस्ट में भारत को 'गंभीर' कैटगरी में रखा गया था। GHI की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 5 साल से कम उम्र के 32.9 प्रतिशत बच्चे शारीरिक रूप से कुपोषित (32.9 प्रतिशत) होते हैं और 2.8 प्रतिशत बच्चे 5 साल की उम्र से पहले ही मर जाते हैं। देश की 12 प्रतिशत आबादी ऐसी है जिसे पर्याप्त और उचित डाइट नहीं मिल पाती है।
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संयुक्त राष्ट्र फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, खाद्यान्न उत्पादन के बावजूद बहुत सारा खाना बर्बाद हो जाता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 105.2 करोड़ टन खाना बर्बाद हो जाता है और 78.3 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर होते हैं। अगर इसको थालियों के हिसाब से देखा जाए तो लगभग 100 करोड़ थाली का खाना बर्बाद हो जाता है।
भारत में ऐसी स्थिति न पैदा हो इसके लिए केंद्र सरकार देश भर के 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को हर महीने मुफ्त में राशन दे रही है। इस योजना के तहत गेहूं, चावल और चीनी जैसी चीजें दी जाती हैं ताकि लोगों को भूखे न रहना पड़े। भूखे लोगों को भोजन मुहैया कराने के लिए तमाम राज्यों में राज्य सरकारें सस्ते भोजन मुहैया कराने वाली योजनाएं चला रही हैं।
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