गुरुग्राम से लेकर नूंह तक, उपेक्षित पड़ी अरावली के दिन बहुरने वाले हैं। हरियाणा सरकार कहीं सघन, कहीं खाली पड़े जंगलों को संवारने की तैयारी में कुछ अहम फैसला करने जा रही है। 10 हजार एकड़ में बनने वाले सफारी पार्क को दुनिया का सबसे बड़ा पार्क बनाने की तैयारी है। हरियाणा सरकार ने साल 2024 में ही अरावली के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए बजट पेश किया था। 

गुरुग्राम से नूंह तक फैली अरावली की विशाल शृंखला को संरक्षित किया जाएगा। पर्यटन को बढ़ावा और अरावली को संरक्षण देने के लिए सरकार ने यह प्रस्ताव रखा है। इसे कई चरणों में पूरा किया जाएगा। 'जैव विविधता पार्क' की अवधारणा के हिसाब से इसे विकसित किया जाएगा। अरावली सफारी प्रोजेक्ट से कुछ उम्मीदें भी हैं तो संभावित खतरे भी हैं।

प्रोजेक्ट की अहम बातें क्या हैं?
हरियाणा के टूरिज्म डिपार्टमेंट अरावली सफारी पार्क के लिए टेंडर जारी किया है। यहां पशुओं के लिए गुफाएं तैयार की जाएंगी, गेस्ट हाउस बनेंगे, होटल, एक्वेरियम, केबल कार, सुरंग और ओपेन एयर थिएटर बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। 

यह प्रोजेक्ट वन विभाग को सौंपा जाएगा। एक विशेषज्ञों की एक टीम इसकी पड़ताल करेगी। शुरुआत में 3858 हेक्टेयर जमीन के लिए टेंडर जारी किया जाएगा। गुरुग्राम के 11 गांवों की 2574 हेक्टेयर जमीनें इसके दायरे में आएंगी। वहीं नूंह के 7 गांवों की 1284 हेक्टेयर जमीन इस प्रोजेक्ट का हिस्सा होगी। 

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प्रोजेक्ट का विरोध क्यों हो रहा है?

अरावली के जिस हिस्से में यह प्रोजेक्ट प्रस्तावित है, वह दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ियों में से एक है। यह दक्षिण-पश्चिम में गुजरात के चंपानेर से लेकर उत्तर-पूर्व में दिल्ली के पास तक लगभग 690 किलोमीटर तक फैली है। थार रेगिस्तान से आने वाली धूलभरी हवाएं अगर दिल्ली से पहले ही शांत पड़ जाती हैं तो इन पहाड़ियों का सबसे बड़ा योगदान है।

अरावली पर्वत श्रृंखला पर्यावणीय नजरिए से भी बेहद अहम है। इस पहाड़ी की वजह से भूगर्भ जल का स्तर सुधरता है। वन्य जीवों और वन संपदा के लिहाज से अरावली और खास हो जाती है। जो लोग इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठा रहे हैं, उनका कहना है कि इसकी वजह से पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ेगा, नई चुनौतियां पैदा होंगी।

अरावली पर्वत शृंखला। (Photo Credit: wikimedia)

केवीए डीएवी कॉलेज फ़ॉर वूमेन, करनाल, हरियाणा में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रेनू बालियान अपने शोध ग्रंथ, 'द स्पाइन ऑफ हरियाणा: इकोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल सिग्निफिकेंस ऑफ अरावली हिल्स' में लिखती हैं, 'अरावली अतिक्रमण, विकास, भूमि क्षरण और खनन जैसे खतरों का सामना कर रही है। यहां की झीलें सूख रही हैं, जैव विवधता का नुकसान हो रहा है, धूल के तूफान बढ़ रहे हैं और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है। अरावली की पहाड़ियों के दोहन के मुद्दे अक्सर उठते रहते हैं लेकिन इन्हें रोकने में चुनौतियां कई हैं।'

रेनू बालियान लिखती हैं, 'मौजूदा कानून, सरकारी नीतियां और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना से अरावली के संरक्षण के दिशा में काम नहीं हो पाया है। जंगलों का दोहन हो रहा है, वनों की कटाई हो रही है और पर्यावरण पर खतरा मंडरा रहा है। जंगलों में कचरा फेंका जा रहा है। पहले ही अरावली का विनाश हो चुका है, अब पारिस्थितिकि तंत्र के सामने नए खतरे हैं। इसे संरक्षित करने की जरूरत है।'

अरावली को बचाने की जरूरत क्या है?
साइंस अर्थ इंफॉर्मेटिक्स मैगजीन में राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का एक शोध प्रकाशित हुआ। साल 1975 से लेकर 2019 तक अरावली की स्थिति पर सैटेलाइट इमेज और मैप के विश्लेषण के बाद इसे तैयार किया गया था। स्टडी में कहा गया कि साल 1975 से लेकर 2019 के बीच करीब 4 दशक में अरावली पर्वत श्रृंखला की 8 प्रतिशत पहाड़ियां विकास की भेंट चढ़ गईं। वे ऐसे लुप्त हुईं, जिनके निशान नहीं ढूंढे जा सकते हैं। 

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स्टडी में यह कहा गया है कि अगर ऐसे ही विस्फोटक तरीके से शहरीकरण और खनन हुआ तो साल 2059 तक 22 फीसदी अरावली साफ हो जाएगी। दिल्ली-एनसीआर में इसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा। जैसे-जैसे अरावली की पहाड़ियां समतल होंगी, थार के रेगिस्तान की जद में दिल्ली आएगा, जिसका नतीजा होगा कि पूरे इलाके में धूल का गुबार होगा, शुष्क वातावरण होगा, मौसम संबंधी अनिश्चितताएं बढ़ेंगी और प्रदूषण अपने चरम पर होगा। 5 प्रतिशत पहाड़ियां बंजर जमीन में बदल गई हैं।

अरावली के इस प्रोजेक्ट से क्यों डरे हैं पर्यावरण प्रेमी?
सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंधों के बाद भी पहाड़ियां काटी जा रही हैं। अरावली के खनन को रोका नहीं गया तो स्थितियां दिल्ली के मरुस्थलीकरण की राह तैयार होगी। साल 2009 में गुड़गांव, फरीदाबाद और नूंह में खनन पर रोक है लेकिन अवैध खनन की खबरें आती रहती हैं। अरावली सफारी प्रोजेक्ट के बारे में भारतीय वन विभाग के 37 रिटायर्ड अधिकारियों के एक समूह ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी है। उनके तर्क हैं कि हरियाणा सरकार के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का मकसद पर्यटकों की संख्या को बढ़ाना है, न कि अरावली का संरक्षण करना है। 

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारियों का कहना है, 'पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों  में किसी भी तरह के हस्तक्षेप का मकसद ऐसे क्षेत्रों का संरक्षण होना चाहिए, न  कि विनाश। इन क्षेत्रों में बढ़ती भीड़, गाड़ियों की आवाजाही और निर्माण से अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में पानी का संकट बढ़ेगा। गुरुग्राम और नूंह के संकटग्रस्त जिलों के लिए इस तलहटी में जलभंडारण के स्रोत छिपे हैं। दोनों जिलों में भूजल के स्तर को केंद्रीय भूजल बोर्ड ने अति शोषित वर्ग में सूचित किया है।'

अरावली हिल्स।

अधिकारियों का कहना है कि अरावली सफारी प्रोजेक्ट, जिस क्षेत्र के लिए प्रस्तावित है, वह वन संरक्षण अधनियम, 1980 के तहत 'वन' की श्रेणी में आता है। यह संरक्षित क्षेत्र है। हरियाणा में वन क्षेत्र करीब 3.6 फीसदी बचा है। राज्य में नए जंगलों को रोपने की जरूरत है, विनाशकारी सफारी परियोजनाओं की नहीं। 

अरावली का 'पहरेदार' बने कानूनों को भी समझिए 

हरियाणा में करीब 80 हजार हेक्टेयर जमीन में अरावली की पहाड़ियां फैली हैं। अरावली की हिफाजत कोई एक कानून नहीं बल्कि कानूनों का समुच्चय करता है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, भारतीय वन अधिनियम 1927, वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, राजस्थान टेनेंसी एक्ट 1955 जैसे कानून संरक्षण देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 को दिए गए एक फैसले में कहा कि अरावली पर्वत को संरक्षित किया जाना चाहिए। दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात को अगले आदेश तक पर्वत श्रृंखला में खनन गतिविधियों के लिए इजाजत देने से मना किया गया। एमसी मेहता बनाम भारत संघ 1992 और 2018 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। साल 2018 में अरावली की 31 पहाड़ियां गायब हो गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसके गायब होने पर चिंता जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने खनन पर पूरी तरह से रोक लगाई थी। 

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राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने भी अरावली में अवैध निर्माण और खनन पर रोक के आदेश दिए हैं। हरियाणा सरकार को वृक्षारोपण के के निर्देश भी दिए गए हैं। NGT ने फरीदाबाद में अरावली के जंगलों पर हुए अतिक्रमणों को भी हटाने के आदेश दिए थे। जयपुर, अलवर, मेवात जैसे इलाकों में वृक्षारोपण के आदेश दिए थे। इन पर अमल कितना हुआ, यह अब तक साफ नहीं है।

अरावली में खनन। (File Photo Credit: PTI)

पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA), 1900 का भी अरावली के संरक्षण में अहम रोल है। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में वन और पर्वतीय हिस्सों के संरक्षण के लिए इस अधिनियम को लागू किया गया था। इस अधिनियम की धारा 4 और 5 की वजह से अरावली का एक बड़ा हिस्सा विकास की भेंट चढ़ने से बच पाया है। धारा 4 अरावली पर अवैध निर्माण और वनों की कटाई पर रोक लगाती है। सरकार किसी विशेष हिस्से को नोटिफाई कर सकती है। धारा 5 इन क्षेत्रों में अवैध कटाई, खनन, निर्माण पर रोक लगाती है। हरियाणा सरकार ने PLPA के तहत कुछ हिस्सों को संरक्षित इलाका घोषित किया था। 

सरंक्षण की कवायदों के बीच किस बात की असली चिंता है?
हरियाणा सरकार ने साल 2023 में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA), 1900 में कुछ संशोधन किया। कुछ इलाकों को PLPA की अधिसूचना से बाहर किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ऐतराज जताया था। सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण से जुड़े मामलों में जनहित के लिए कई याचिकाएं दायर करने वाली अधिवक्ता रुपाली पंवार बताती हैं कि अगर अरावली को बचाना है तो इन कानूनों को सख्ती से मानना होगा।

अधिवक्ता रुपाली पंवार बताती हैं कि अरावली सफारी प्रोजेक्ट की राह में आने वाली पहाड़ियों को तोड़कर राह निकाली जाएगी, राह में पड़ने वाले पेड़ काटे जाएंगे, रेस्त्रां, होटल और गेस्ट हाउस बनेंगे। कवायद अरावली को बचाने की है, उस पर खतरा मंडराने के आसार हैं। अगर अरावली को राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य बना दिया जाए तो अरावली और पर्यावरण दोनों का नुकसान से बचाया जा सकता है। अरावली सफारी प्रोजेक्ट की रूप रेखा अगर स्पष्ट नहीं की जाती है तो पर्यावरण चिंतकों का परेशान होना लाजमी है।