एक बार फिर अस्पताल में आग लगी है। इसकी कीमत मरीजों को चुकानी पड़ी है। आधा दर्जन मरीजों की आग में झुलसकर मौत हो गई। यह दुर्घटना राजस्थान के जयपुर के सरकारी सवाई मान सिंह अस्पताल में हुई। अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में रविवार देर रात आग लग गई थी, जिसमें 6 मरीजों की मौत हो गई। 


ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ ने बताया कि जब ट्रॉमा सेंटर के स्टोर रूम में आग लगी, तब न्यूरो ICU में 11 मरीजों का इलाज चल रहा था। फिलहाल आग लगने के पीछे 'शॉर्ट सर्किट' को जिम्मेदार माना जा रहा है। 


दुर्घटना की जांच के लिए राज्य सरकार ने एक हाई लेवल कमेटी बनाई है। इस दुर्घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताया है। 

 

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  • क्या हुआ था: सवाई मान सिंह अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में देर रात आग लगी। डॉ. अनुराग धाकड़ ने बताया कि जिस फ्लोर पर आग लगी थी, वहां दो ICU हैं। एक ट्रॉमा ICU जिसमें 11 मरीज थे और एक सेमी-ICU में 13 मरीज भर्ती थे।
  • आग में कितना नुकसान हुआ: ICU में भर्ती 11 में से 6 मरीजों की मौत हो गई। हालांकि, 8 मौतों की बात कही जा रही है। इसके अलावा, इस आग में कई दस्तावेज, ICU उपकरण और कई अहम सामान जलकर राख हो गए हैं।
  • किन-किनकी मौत हुई: मरने वालों में दो महिलाएं और 4 पुरुष हैं। इस दुर्घटना में जिन 6 मरीजों की मौत हुई है, उनमें सीकर के रहने वाले पिंटू, जयपुर के दिलीप, भरतपुर के श्रीनाथ, रुक्मणि और खुरमा और संगानेर के बहादुर हैं।
  • आग लगने की वजह क्या: फिलहाल आग लगने के पीछे शॉर्ट सर्किट को जिम्मेदार माना जा रहा है। डॉ. अनुराग धाकड़ ने बताया कि ट्रॉमा ICU में शॉर्ट सर्किट हुआ था, जिससे आग लग गई। जयपुर के पुलिस कमिश्नर बीजू जॉर्ज जोसेफ का भी मानना है कि शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगी होगी। 
  • सरकार ने क्या किया: सीएम भजन लाल शर्मा, संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल और गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम ने अस्पताल का दौरा किया था। दुर्घटना की जांच के लिए एक हाईलेवल कमेटी बनाई है, जिसकी अध्यक्षता मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के कमिश्नर इकबाल खान करेंगे।

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6 लोगों की मौत कैसे हो गई?

अस्पताल में आग लगने के बाद हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल हो गया था। अस्पताल के कर्मचारियों और परिजनों ने मरीजों को बाहर निकाला। कई मरीजों की हालत गंभीर थी, इसिलए उन्हें बेड सहित बिल्डिंग से बाहर निकाला गया। 


वार्ड बॉय विकास ने न्यूज एजेंसी PTI को बताया, 'जब हमें आग की खबर मिली, तब हम ऑपरेशन थिएटर में थे, इसलिए हम तुरंत सेंटर के अंदर मौजूद लोगों को बचाने के लिए दौड़े। हम कम से कम तीन-चार मरीजों को बचाने में कामयाब रहे। हालांकि, आग की लपटें तेज होने के कारण हम इमारत के अंदर नहीं जा सके। हमने ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचाने की पूरी कोशिश की।'

 


उन्होंने बताया कि पुलिस बाद में पहुंची लेकिन धुएं के कारण तुरंत इमारत में नहीं जा सकी। जब फायर ब्रिगेड की टीम आई तो पूरा वार्ड धुएं से भर गया था। टीम को आग बुझाने के लिए इमारत के दूसरी तरफ की एक खिड़की तोड़नी पड़ी। लगभग दो घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका।


हालांकि, मरीजों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि आग लगने के बाद अस्पताल के कर्मचारी भाग गए थे। एक व्यक्ति ने PTI से कहा, 'हमने धुआं देखा और तुरंत कर्मचारियों को बताया लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। जब आग लगी तो वे सबसे पहले भागे।'

 


अभी आग लगने की वजह शॉर्ट सर्किट को माना जा रहा है। हालांकि, ठोस कारण जांच के बाद ही सामने आएगा। इसकी जांच के लिए एक हाईलेवल कमेटी बनाई गई है।

 

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मगर इतनी आग क्यों लगती है?

भारत के अस्पतालों में आग लगना सामान्य होता जा रहा है। ऐसा कोई साल नहीं गुजरता जब किसी बड़े अस्पताल में आग लगने की दुर्घटना न हुई हो। पिछले साल ही दिल्ली के न्यू बोर्न हॉस्पिटल में आग लग गई थी, जिसमें 7 नवजातों की मौत हो गई थी।


लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा क्यों? अस्पतालों में आग लगने की सबसे बड़ी वजह 'शॉर्ट सर्किट' ही है। अक्टूबर 2020 में 'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ' में एक स्टडी छपी थी। इसमें 2010 से 2019 के बीच अस्पतालों में लगी आग की घटनाओं का एनालिसिस किया गया था। इसमें सामने आया था कि इस दौरान अस्पतालों में आग की 33 बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिनमें से 78% की वजह शॉर्ट सर्किट थी। इसमें यह भी सामने आया था कि 10 मामलों में आग ICU या इसके आसपास लगी थी।

 


इस स्टडी में पता चला था कि आग लगने की लगभग 73% घटनाएं रात 8 बजे से सुबह 8 बजे के बीच होती हैं। इतना ही नहीं, 39% मामलों में जान-माल का नुकसान हुआ था।

इस कारण हो जाती हैं इतनी मौतें!

इसी तरह जून 2023 में अमेरिका की 'नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन' में भी भारतीय अस्पतालों में आग की दुर्घटनाओं पर एक स्टडी छपी थी। इसमें सामने आया था कि अगर लापरवाही न हो तो अस्पतालों में लगने वाली आग को रोका जा सकता है। इसमें कई उदाहरणों का हवाला देकर बताया गया था कि कैसे लापरवाही के कारण अस्पतालों में आग लगी।


इसमें 2013 में बीकानेर के प्रिंस बिजय सिंह मेमोरियल अस्पताल में लगी आग का उदाहरण दिया गया था। इसमें बताया गया था कि बिजली के वायर पुराने हो गए थे, जिस कारण लोड नहीं पा रहे थे और शॉर्ट सर्किट हो गया। 


इसके अलावा, 2011 में कोलकाता के AMRI अस्पताल में लगी आग का जिक्र करते हुए बताया गया था कि अस्पताल के अपर बेसमेंट में अवैध तरीके से ज्वलनशील सामग्री रखी गई थी। इस जगह को कार पार्किंग के लिए बनाया गया था। अस्पताल में वेंटिलेशन की सुविधा भी नहीं था, जिस कारण आग लगने के बाद धुआं भर गया और ज्यादातर मरीजों की मौत दम घुटने से हो गई। इसे सबसे भयावह दुर्घटना माना जाता है, क्योंकि इसमें 93 लोगों की मौत हो गई थी।

 


इस स्टडी में यह भी बताया गया था कि AMRI अस्पताल के कर्मचारियों ने इस हालात को ठीक तरीके से नहीं संभाला। इस कारण फायर ब्रिगेड की टीम को आग बुझाने के लिए इंतजाम करने में ही डेढ़ घंटे का समय लग गया। इसके अलावा, न तो स्मोक डिटेक्टर सही ढंग से काम कर रहे थे और न ही अलार्म। 


इतना ही नहीं, इस स्टडी में यह भी बताया गया था कि अस्पतालों में आग लगने के बाद सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी नहीं है। इसमें 2016 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में लगी आग का उदाहरण देते हुए बताया गया था कि आग लगने के बाद इमरजेंसी गेट बंद पड़े थे, फायर अलार्म और एलिवेटर भी काम नहीं कर रहे थे। अस्पताल के कर्मचारियों को फायर एक्सटिंगिशर भी चलाना नहीं आता था।

 

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लापरवाही बनती है दुर्घटनाओं का कारण!

जांच में यह भी सामने आया है कि अस्पताल के मालिक या प्रबंधन अवैध निर्माण करते हैं या फर्जी दस्तावेज दिखाते हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले साल एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट छापी थी। इसमें 4 साल में अस्पतालों में लगने वाली आग की 11 बड़ी दुर्घटनाओं की जांच की गई थी। इसमें बताया था, '1 मई 2021 को गुजरात के पटेल वेलफेयर अस्पताल में आग लगी थी, जिसमें 18 लोगों की मौत हो गई थी। जब जांच हुई तो पता चला कि अस्पताल प्रबंधन ने फायर एक्सटिंगिशिंग और प्रोटेक्शन सिस्टम होने के फर्जी दस्तावेज जमा कराए थे।'


अखबार ने बताया था, '27 नवंबर 2020 को गुजरात के उदय शिवानंद कोविड-19 अस्पताल में आग लगने से 5 लोगों की मौत हो गई थी। इसकी जांच के लिए सरकार ने एक आयोग बनाया था। आयोग की जांच में सामने आया था कि इमरजेंसी एग्जिट के लिए कम से कम दो सीढ़ियां होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था। इमरजेंसी एग्जिट या तो बंद थे या या ब्लॉक थे, क्योंकि वहां मेडिकल उपकरण रखे हुए थे।'


इसके अलावा, यह भी सामने आया है कि अस्पताल फायर NOC नहीं होने के बावजूद धड़ल्ले से चलते हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि मध्य प्रदेश के न्यू लाइफ हॉस्पिटल में आग लगी थी। इस घटना की जब जांच हुई तो पता चला कि अस्पताल की प्रोविजनल फायर NOC खत्म होने के एक साल बाद भी नगर निगम ने कोई कार्रवाई नहीं की।