सही खाना-पीना न हो पाने के कारण देश में आज भी करोड़ों बच्चे ऐसे हैं, जो कुपोषित हैं। यह जानकारी सरकार ने लोकसभा में दी है। सरकार ने बताया है कि असम, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और लक्षद्वीप में 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जो ठिगने हैं। यानी, यह दिखाता है कि इन राज्यों में कुपोषण का स्तर बहुत ज्यादा है।

 

भारत में कुपोषण को तीन पैरामीटर पर मापा जाता है। पहला- 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चों का वजन हाईट के हिसाब से कम है? इसे वेस्टिंग (Wasting) कहा जाता है। दूसरा- 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चों का वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है? इसे अंडरवेट (Underweight) कहा जाता है। और तीसरा- 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चे ठिगने हैं? इसे स्टंटिंग (Stunting) कहा जाता है।

 

लोकसभा में कुपोषण को लेकर पूछे गए सवाल में राज्य स्वास्थ्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़े रखे हैं। इसमें बताया गया है कि NFHS-5 (2019-21) के सर्वे के मुताबिक, 5 साल से कम उम्र के 35.5 फीसदी बच्चे ठिगने हैं। वहीं, 32.1 फीसदी बच्चों का वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है। जबकि, 19.3 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी हाईट के हिसाब से कम है। इस हिसाब से देखा जाए तो हर 10 में से 3 या 4 बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें कुछ की हाईट कम है तो कुछ का वजन।

 

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कितने बच्चे कुपोषित?

सरकार ने अपने जवाब में बताया है कि 2021 तक भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की अनुमानित आबादी 13.75 करोड़ होगी। हालांकि, इनमें से सिर्फ 7.36 करोड़ बच्चे ही आंगनवाड़ी में दर्ज हैं और उन्हें सरकारी पोषण ट्रैकर पर रजिस्टर्ड हैं।

 

इसका मतलब हुआ कि 5 साल से कम उम्र के आधे बच्चों की ही मॉनिटरिंग हो रही है। यानी 7.36 करोड़ बच्चों में ही कुपोषण की जांच हो रही है।

 

पोषण ट्रैकर के जून 2025 तक के डेटा के मुताबिक, 5 साल से कम उम्र के 37.07% बच्चे ठिगने हैं। वहीं, 15.9% बच्चे ऐसे हैं जो अंडरवेट हैं। जबकि, 5.46% बच्चों का वजन उनकी हाईट के हिसाब से कम है।

 

NFHS-5 और पोषण ट्रैकर के डेटा की तुलना की जाए तो पता चलता है कि बच्चों में कुपोषण की स्थिति थोड़ी सुधरी है लेकिन हालात अब भी गंभीर बने हुए हैं। हालांकि, यह भी पता चलता है कि बच्चों में ठिगनापन बढ़ा है। इस हिसाब से देखा जाए तो जो 7 करोड़ बच्चे पोषण ट्रैकर में रजिस्टर्ड हैं, उनमें से ढाई करोड़ से ज्यादा ठिगने हैं।

 

 

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राज्यों की क्या है हालत?

देश के कई राज्यों में बच्चों में कुपोषण के हालात अब भी बहुत गंभीर बने हुए हैं। 

 

उत्तर प्रदेश में लगभग 49 फीसदी, असम, बिहार और झारखंड में 43 फीसदी, मध्य प्रदेश और त्रिपुरा में 42 फीसदी और महाराष्ट्र में 40 फीसदी बच्चे ठिगने हैं। इनके अलावा, दो केंद्र शासित प्रदेश- लक्षद्वीप में 45 फीसदी और पुडुचेरी में 41 फीसदी बच्चों में ठिगनापन है।

 

इसी तरह लक्षद्वीप के 11.62 फीसदी, बिहार के 9.31 फीसदी, मध्य प्रदेश के 8.19 फीसदी, छत्तीसगढ़ के 7.77 फीसदी, त्रिपुरा के 7.68 फीसदी और गुजरात के 7.28 फीसदी बच्चों का वजन उनकी हाईट के हिसाब से कम है।

 

वहीं, मध्य प्रदेश के लगभग 25 फीसदी, लक्षद्वीप के 23 फीसदी, बिहार के 21 फीसदी, उत्तर प्रदेश के 20 फीसदी, झारखंड के 19 फीसदी, गुजरात के 18 फीसदी, राजस्थान और त्रिपुरा के 18 फीसदी और तेलंगाना के 17 फीसदी बच्चे अंडरवेट यानी कमजोर हैं।

 

तना ही नहीं, 13 राज्यों के 60 से ज्यादा जिले ऐसे हैं, जहां आधे से ज्यादा बच्चों में ठिगनापन है। उत्तर प्रदेश में ऐसे 34 जिले हैं। उत्तर प्रदेश के सिर्फ तीन जिले- कानपुर नगर, गौतम बुद्ध नगर और मऊ को छोड़कर बाकी सभी जिलों में 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे ठिगने हैं।

 

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सरकार क्या कर रही है?

भारत में सभी को भरपेट और अच्छा खाना मिले, इसके लिए मार्च 2020 से ही सरकार 80 करोड़ से ज्यादा गरीबों को मुफ्त में अनाज बांट रही है। हालांकि, अब भी भारत की आधी आबादी ऐसी है जिन्हें हेल्दी डाइट नहीं मिल रही है।

 

पिछले साल संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि 55.6 फीसदी भारतीय हेल्दी डाइट का खर्च नहीं उठा सकते। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि 19.46 करोड़ भारतीय कुपोषण से जूझ रहे हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि 2022 तक भारत में 2.19 करोड़ बच्चों में कमजोरी थी। वहीं, 3.61 करोड़ बच्चों में ठिगनापन था।

 

बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए सरकार ने मिशन पोषण 2.0 शुरू किया था। इसके तहत 6 महीने से लेकर 6 साल तक के बच्चों और उनकी मां को सभी जरूरी पोषण सरकार की तरफ से मिलता है। इस योजना के तहत, 2021-22 से 2024-25 तक सरकार 80,863 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर चुकी है।