सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में  प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट (POCSO) के तहत दोषी एक युवक को मिली सजा को खत्म कर दिया है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दी गई अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए युवक की सजा को रद्द किया। कोर्ट ने यह फैसला इसलिए दिया क्योंकि दोषी युवक ने पीड़िता से शादी कर ली थी और अब उनका एक बच्चा भी है। कोर्ट ने सजा को रद्द करते हुए अपनी पत्नी और बच्चे को न छोड़ने और जीवन भर उनका सम्मानपूर्वक पालन-पोषण करने की शर्त भी लगाई है। 

 

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा, 'POCSO एक्ट के तहत अपीलकर्ता द्वारा की गई अपील पर विचार करते हुए हमने पाया है कि यह अपराध शारीरिक आकर्षण की वजह से नहीं बल्कि प्रेम की वजह से किया गया। लड़की ने खुद शख्स के साथ एक शांतिपूर्ण और स्थिर पारिवारिक जीवन जीने की इच्छा जताई है, जिस पर वह निर्भर है, और वह नहीं चाहती कि अपीलकर्ता के माथे पर अपराधी होने का दाग लगे।'

 

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क्या है पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नाबालिग लड़की के साथ संबंध के एक मामले में दिया है। निचली अदालत ने युवक को भारतीय दंड संहिता की धारा 366 और POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत एक नाबालिग लड़की को भगाकर ले जाने और उसका यौन शोषण करने के लिए दोषी ठहराया था। इस मामले में आरोपी को IPC की धारा 366 के तहत 5 और POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। सितंबर 2021 में मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को बरकरार रखा था, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 

 

जब यह मामला हाई कोर्ट में चल रहा था तो आरोपी और पीड़िता ने शादी कर ली थी। इस शादी से दोनों को अब एक बच्चा भी है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (TNSLSA) को पीड़िता का हालचाल जानने का निर्देश दिया था। TNSLSA ने एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा की।  

 

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कपल खुशी-खुशी शादीशुदा जिंदगी जी रहे हैं और उन्हें एक साल से कम उम्र का एक बेटा भी है। पत्नी ने कोर्ट में एक एफिडेविट भी दायर किया जिसमें उसने अपने पति के साथ शांति से रहने की इच्छा जताई, यह कहते हुए कि वह उस पर निर्भर है और वह नहीं चाहती कि उसके माथे पर एक अपराधी होने का दाग लगे। 

कोर्ट ने रद्द की सजा

आरोपी ने कोर्ट में याचिका दायक की थी कि उसे आर्टिकल 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करके मिली सजा और दोषसिद्धि (कनविक्शन) रद्द किया जाए। आरोपी ने तर्क दिया था कि आपराधिक कार्यवाही जारी रहने से शादी टूट जाएगी और उनके परिवार को नुकसान होगा। इस मामले में मूल शिकायतकर्ता पीड़िता के पिता थे। बेंच ने उनसे बात की और उन्होंने आपराधिक मामला खत्म करने पर कोई आपत्ति नहीं जताई। इसके बाद कोर्ट ने कनविक्शन को रद्द करने की संभावनाओं की जांच की। 

 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अपराध पूरे समाज के खिलाफ होते हैं, लेकिन आपराधिक कानून लागू करते समय व्यक्तिगत मामलों की असलियत को भी ध्यान में रखना चाहिए। बेंच ने कहा, 'हम यह बात जानते हैं कि अपराध सिर्फ एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि पूरे समाज के खिलाफ होता है। जब कोई अपराध होता है, तो यह समाज को सामूहिक नुकसान पहुंचाता है।' कोर्ट ने बात पर जोर दिया कि हर परिस्थिति में कानून के सख्ती से लागू होने से न्याय नहीं मिलता। कोर्ट ने कहा, 'यह एक ऐसा मामला है, जहां कानून को न्याय के लिए झुकना होगा।'

 

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कोर्ट ने दी चेतावनी

कोर्ट ने आरोपी की अपील को स्वीकार करते हुए उसकी सजा को रद्द कर दिया। हालांकि, इसके साथ ही कोर्ट ने चेतावनी भी दी और कहा कि यह आदेश हमारे सामने आई कुछ विशेष परिस्थितियों में लिया गया है और इसे किसी अन्य मामले के लिए मिसाल नहीं माना जाएगा।'