उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में स्कूल ग्राउंड में होने वाली रामलीला पर रोक नहीं लगेगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को रामलीला पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। स्कूल ग्राउंड में रामलीला पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर अब रोक लगाते हुए रामलीला करने की इजाजत दे दी है।


सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने रामलीला करने की इस शर्त पर इजाजत दे दी कि इससे छात्रों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।


इससे पहले हाई कोर्ट ने स्कूल ग्राउंड में रामलीला करने की इजाजत देने की मांग को खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने बिना उनकी बात सुने आदेश जारी किया है।

 

यह भी पढ़ें-- पुलिस वालों पर ही 2-2 लाख का इनाम; MP का 'गजब' मामला क्या है?

मामला क्या है?

यह मामला फिरोजाबाद जिले के टुंडला में स्थित जिला परिषदीय विद्यालय का है। दावा है कि इस स्कूल के ग्राउंड में 100 सालों से रामलीला होती आ रही है। 


स्कूल परिसर में रामलीला करने को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसके खिलाफ दाखिल याचिका में याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में दलील दी थी कि रामलीला के 18 दिनों के दौरान पढ़ाई-लिखाई बुरी तरह प्रभावित होंगी। इसके अलावा, बच्चों को खेलने के लिए मैदान भी नहीं मिलेगा। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि स्कूल ग्राउंड में सीमेंट की इंटरलॉकिंग की गई है, ताकि रामलीला जैसे आयोजनों के लिए स्थायी मैदान में बदला जा सके। इसके साथ ही स्कूल के मेन गेट को 'सीता राम द्वार' में भी बदल दिया गया है।


हाई कोर्ट में इस याचिका का विरोध करते हुए स्टेट अथॉरिटी ने दलील दी थी कि जलभराव के कारण इंटरलॉकिंग टाइलें लगाई गई थीं। दलील दी गई थी कि रामलीला 100 साल से हो रही है और इसका समय शाम 7 से 10 बजे तक होता है।


हालांकि, हाई कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया था और रामलीला करने पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा था कि 'स्कूल परिसर में रामलीला का आयोजन कौ कर रहा है और किसने इसकी अनुमति दी, इसके बारे में पता ही नहीं है।'


हाई कोर्ट ने कहा था कि खेल के मैदान में इतना बड़ा मंच लगाने के बाद यह दावा करना कि इससे पढ़ाई-लिखाई प्रभावित नहीं होगी, साफ तौर से वास्तविक स्थिति से उलट है।

 

यह भी पढ़ें-- 4 मांगों से क्या कुछ बदलेगा? लेह में 36 साल बाद भड़की हिंसा की कहानी

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कुछ कहा?

हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। श्री नगर राम लीला महोत्सव ने फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि हाई कोर्ट ने उन्हें सुने बिना ही यह आदेश जारी किया है।


इस पर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने रामलीला पर रोक लगाने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता प्रदीप सिंह राणा को भी फटकार लगाई और कहा कि उन्होंने अपनी शिकायत पहले नहीं की और 14 सितंबर को उत्सव शुरू होने के बाद ही मामला दायर किया। 

 


अदालत ने उनसे पूछा, 'ऐसा क्या हुआ कि आप अचानक हाई कोर्ट चले गए? अगर रामलीला पिछले 100 साल से हो रही है तो आपको पहले से जाकर प्रशासन से व्यवस्था करने के लिए कहने से किसने रोका? आप न तो छात्र हैं और न ही छात्र के माता-पिता और न ही संपत्ति के मालिक हैं।'

 

इस पर प्रदीप सिंह ने दलील दी कि सीमेंट की दीवार बनने के बाद ही उन्होंने इस पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

 

यह भी पढ़ें-- फुंत्सोग तांजिन सेपाग कौन हैं, जिन पर लगे लद्दाख को सुलगाने के आरोप?

रामलीला की इजाजत लेकिन...

इसके बाद तीन जजों की बेंच ने कहा, 'हालांकि, हम स्कूल परिसर में धार्मिक उत्सव आयोजित करने का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन यह रामलीला 100 साल से होती आ रही है और इस साल 14 सितंबर से शुरू हो गई है। चूंकि रामलीला पहले ही शुरू हो चुकी है इसलिए इससे जारी रखने की अनुमति दी जाती है, बशर्ते कि इससे छात्रों को कोई असुविधा न हो।'


सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'हम हाई कोर्ट से अनुरोध करते हैं कि वह जिला प्रशासन पर दबाव डाले कि ऐसे उत्सवों के लिए कोई दूसरी जगह की पहचान करे ताकि स्कूल के खेल के मैदानों का उपयोग सिर्फ छात्र ही करें।'


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट को कोई अंतिम आदेश जारी करने से पहले श्री नगर राम लीला महोत्सव समेत सभी पक्षकारों को सुने। कोर्ट ने कहा कि रामलीला के लिए दूसरी जगह के लिए प्रशासन को प्रस्ताव भी दिया जाए।