आवारा कुत्तों से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्कूलों, अस्पतालों, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों से आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने हाइवे पर घूम रहे छुट्टा जानवरों को भी हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि आवारा कुत्तों के साथ-साथ आवारा पशुओं को भी हटाना होगा।


जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया है। यह फैसला आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। यह फैसला उसी मामले पर आया है। 


अदालत ने सभी स्थानीय निकायों को भी समय-समय पर निरीक्षण करने का आदेश दिया है। तीन जजों की बेंच ने यह भी कहा है कि जिन स्कूलों और अस्पतालों से आवारा कुत्तों को हटाया जाएगा, उन्हें नसबंदी के बाद भी वापस नहीं छोड़ जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने अपने फैसले में यह नहीं कहा है कि गली-कूचों में घूमने वाले आवारा कुत्तों के हटाने को लेकर कुछ नहीं कहा है।

 

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क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने शुक्रवार को जो फैसला दिया है, उसमें साफ किया है कि स्कूल-कॉलेज, अस्पतालों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों, डिपो और पब्लिक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से सभी आवारा कुत्तों को हटाने को कहा गया है।


कोर्ट ने यह भी कहा है कि ऐसी जगहों से जिन आवारा कुत्तों को हटाया जाएगा, उन्हें नसबंदी के बाद भी वापस उसी जगह नहीं छोड़ा जाएगा। 

 

 

इससे पहले 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था, उसमें कहा था कि आवारा कुत्तों को नसबंदी के बाद वापस उसी जगह छोड़ा जाएगा, जहां से उन्हें उठाया गया था। कोर्ट ने सिर्फ हिंसक और रेबीज से संक्रमित कुत्तों को ही शेल्टर में रखने का आदेश दिया था।

 

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छुट्टा पशुओं को भी पकड़ना होगा

सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के साथ-साथ सड़कों और हाइवे पर घूम रहे आवारा पशुओं को भी हटाने का आदेश दिया है।


अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को को निर्देश दिया है कि वे सड़कों और हाइवे पर घूम रहे आवारा पशुओं को हटाएं। कोर्ट ने कहा कि आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए हाइवे पेट्रोल टीम बनाई जाए। कोर्ट ने इन्हें पकड़कर शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया है।

5 महीने और 5 बड़ी तारीखें

  • 28 जुलाई: एक अंग्रेजी अखबार में आवारा कुत्तों को लेकर रिपोर्ट छपी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने इस पर स्वतः संज्ञान लिया। कोर्ट ने इसे 'चिंताजनक' और 'परेशान करने वाला' बताया था।
  • 11 अगस्त: जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की बेंच ने दिल्ली-NCR से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में डालने का आदेश दिया। कोर्ट ने इसे लेकर 8 हफ्तों के भीतर नगर निगम से 8 हफ्ते में रिपोर्ट भी मांगी।
  • 22 अगस्त: जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया ने 11 अगस्त के फैसले को बदल दिया। बेंच ने कहा कि आवारा कुत्तों को पकड़कर उनकी नसबंदी की जाए और दोबारा छोड़ा जाए। सिर्फ हिंसक कुत्तों को ही शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया।
  • 27 अक्टूबर: आवारा कुत्तों के मामलों में तेलंगाना और पश्चिम बंगाल को छोड़कर बाकी किसी भी राज्य की ओर से हलफनामा दाखिल न किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को अदालत में पेश होने का आदेश दिया।
  • 7 नवंबर: तीन जजों की बेंच ने आवारा कुत्तों के साथ-साथ छुट्टा पशुओं को भी हटाने का आदेश दिया। आवारा कुत्तों की काटने की घटनाओं को रोकने के लिए शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, बस और रेलवे स्टेशनों से आवारा कुत्तों को हटाने को कहा है। सड़कों और हाइवे से आवारा पशुओं को भी हटाने का आदेश दिया है।

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क्या है पूरा मामला?

28 जुलाई को अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए 11 अगस्त को आदेश दिया था। कोर्ट ने आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश जारी किया था। इसका जमकर विरोध हुआ। बाद में इस मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया।


22 अगस्त को जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने साफ किया कि आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में नहीं रखा जाएगा। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आवारा कुत्तों की नसबंदी और वैक्सीनेशन के बाद वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाएगा, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली में आवारा कुत्तों के लिए अलग से फीडिंग स्पॉट बनाए जाएंगे, जहां उन्हें खाना खिलाया जा सकता है। कोर्ट ने साफ कर दिया था कि सड़कों पर आवारा कुत्तों को खाना नहीं खिलाया जाएगा।


तीन जजों की बेंच ने 22 अगस्त को जो आदेश दिया था, उसमें कहा था कि यह 'अंतरिम निर्देश' है। कोर्ट ने इस मामले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया था, ताकि एक नेशनल पॉलिसी बनाई जा सके।