दुनिया के कई मुल्कों में कानून है, जो कर्मचारी को इस बात का अधिकार देते हैं कि ऑफिस के बाद उन्हें अपने बॉस के कॉल या ईमेल का जवाब देना जरूरी नहीं है। भारत में भी इस तरह के कानून की वकालत होती है। इसे लेकर अब एनसीपी (शरद पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया है, जो भारत में भी कर्मचारियों को ऑफिस के बाद बॉस के कॉल या ईमेल का जवाब न देने का अधिकार देता है। सुप्रिया सुले ने शुक्रवार को इस बिल को लोकसभा में पेश किया था।
सुप्रिया सुले ने जो बिल पेश किया है, उसका नाम 'राइट टू डिसकनेक्ट बिल 2025' है। इसी बिल को सुप्रिया सुले पहले भी दो बार लोकसभा में पेश कर चुकी हैं। इस बिल को उन्होंने पहली बार 2018 में और फिर 2019 में पेश किया था।
इस बिल में प्रावधान है कि हर कर्मचारी ऑफिस के बाद अपने बॉस के किसी कॉल या ईमेल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं होगा। ऐसा करने पर कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की जा सकती।
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इसकी जरूरत क्यों है?
सुप्रिया सुले ने जो 'राइट टू डिसकनेक्ट बिल' पेश किया है, उसमें इसे पेश करने का कारण भी बताया गया है। इसमें लिखा है, 'आज के समय में एक औसत कर्मचारी अपने स्मार्टफोन से कहीं से भी काम कर सकता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट बताती है कि किसी भी जगह से काम कर लेने वाले कर्मचारियों की संख्या अब 70% से ज्यादा हो चुकी है। इससे लचीलापन आता है लेकिन साथ ही यह कर्मचारी की प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के लिए जोखिम भी खड़ा करता है।'
इसमें लिखा है, 'अगर कर्मचारी से 24 घंटे अवेलेबल रहने की उम्मीद की जाती है तो इससे उन्हें नींद न आना, डिप्रेशन या भावनात्मक रूप से थक जाने की शिकायत होती है। कॉल और ईमेल का जवाब देने का दवाब भी रहता है, जिससे कर्मचारियों का वर्क-लाइफ बैलेंस खत्म हो जाता है।'
इस बिल में कुछ रिसर्च और स्टडी का हवाला देते हुए कहा गया है कि अगर कोई कर्मचारी हफ्ते में 50 घंटे से ज्यादा काम करता है तो उसकी प्रोडक्टिविटी स्थिर हो जाती है। अगर कोई कर्मचारी 60 घंटे से ज्यादा काम करता है तो उसकी प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है। अगर कर्मचारी रात के 9 बजे के बाद कॉल या ईमेल का जवाब देते हैं तो उनमें नींद न आने की समस्या होती है।
इस बिल को इसलिए लाया गया है ताकि वर्क-लाइफ बैलेंस बना रहे। साथ ही कर्मचारी की सहमति के बगैर ऑफिस के बाद उससे कोई काम नहीं लिया जा सकता।
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बिल की बड़ी बातें क्या है? समझिए
- जवाब देना जरूरी नहीं: हर कर्मचारी को अधिकार मिलेगा कि वह ऑफिस से जुड़े किसी कॉल या ईमेल का जवाब सिर्फ वर्किंग आवर्स में ही दे। छुट्टी या ऑफिस के बाद कॉल या ईमेल का जवाब देना जरूरी नहीं होगा।
- कोई कार्रवाई नहीं होगी: अगर कोई कर्मचारी ऑफिस के बाद आए कॉल या ईमेल का जवाब नहीं देता है तो उस पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- चार्टर बनाना जरूरी होगा: 10 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनी या संस्था को एक चार्टर बनाना होगा, जिसमें तय होगा कि किस वक्त संपर्क किया जा सकता है।
- ओवरटाइम देना होगा: अगर कोई कर्मचारी अपनी सहमति से वर्किंग आवर्स के बाद भी काम करता है तो उसे उसकी सैलरी के हिसाब से ओवरटाइम देना होगा।
- वर्क फ्रॉम होम की पॉलिसी: हर कंपनी को वर्क फ्रॉम होम या रिमोट एरिया से काम करने वाले कर्मचारियों के लिए पॉलिसी बनानी होगी। कर्मचारियों की सहमति से पॉलिसी बनेगी।
- वेलफेयर कमेटी बनेगी: हर रजिस्टर्ड कंपनी में कर्मचारियों की वेलफेयर कमेटी बनेगी, जिसका काम वर्किंग आवर्स के बाद काम करने की शर्तों पर नेगोशिएशन करना होगा।
ऑफिस के बाद कॉल करने पर क्या?
बिल में प्रावधान है कि कोई भी कंपनी या बॉस वर्किंग आवर्स के बाद किसी कर्मचारी से उसकी सहमति के बगैर काम नहीं करवा सकता। इसका मतलब हुआ कि वर्किंग आवर के बाद बॉस कॉल या ईमेल करके काम के लिए दबाव नहीं बना सकता।
प्रस्तावित बिल की धारा 19 में प्रावधान है कि अगर किसी कर्मचारी से वर्किंग आवर्स के बाद काम करवाया जाता है, तो कंपनी पर जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना सभी कर्मचारियों की कुल सैलरी का 1% होगा।
मान लीजिए कि अगर कोई कंपनी सालभर में सभी कर्मचारियों की सैलरी पर 50 करोड़ रुपये खर्च करती है तो उसे इसका 1% यानी 50 लाख रुपये जुर्माना भरना होगा।
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क्या बिल पास हो पाएगा?
बिल का पास होना बहुत मुश्किल है। वह इसलिए क्योंकि यह प्राइवेट मेंबर बिल है। जब कोई बिल मंत्री के अलावा संसद का कोई सदस्य पेश करता है तो उसे प्राइवेट मेंबर बिल कहा जाता है।
सुप्रिया सुले पहले भी 2018 और 2019 में इस बिल को लोकसभा में पेश कर चुकी हैं। हालांकि, दोनों ही बार यह बिल सिर्फ पेश होकर रह गया। इसका कारण यह है कि इस तरह के प्राइवेट मेंबर बिल सरकार की तरफ से जवाब मिल जाने के बाद वापस ले लिए जाते हैं।
