जैसे जैसे भारत की जनसंख्या बढ़ रही है इसमें बुजुर्गों की जनसंख्या भी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। क्योंकि भारत में धीरे-धीरे जन्म दर तो नीचे आ रही है लेकिन जो युवा जनसंख्या है वह धीरे धीरे बुजुर्ग होने की तरफ बढ़ रही है। भारत में वर्तमान में 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों की जनसंख्या करीब साढ़े तेरह करोड़ है जो कि कुल जनसंख्या का साढ़े दस प्रतिशत है। आने वाले समय में भारत में बुजुर्गों की संख्या और तेजी से बढ़ने वाली है।

 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) का अनुमान है कि 2050 तक भारत में 31.9 करोड़ से अधिक वरिष्ठ नागरिक होंगे, जो कुल जनसंख्या का लगभग 20% होंगे। भारत सरकार द्वारा कराए गए ‘लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (LASI) 2020-21’ के अनुसार लगभग 36% बुजुर्गों ने किसी न किसी प्रकार के मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक शोषण की बात स्वीकार की है। ये आंकड़े यह साफ़ करते हैं कि बुजुर्गों के कल्याण के लिए एक ठोस कानूनी और सामाजिक व्यवस्था की तत्काल आवश्यकता है।

 

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इसी जरूरत को देखते हुए भारत सरकार ने "माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007" (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) पारित किया। यह कानून इस बात को सुनिश्चित करता है कि बुजुर्ग सम्मानजनक जीवन जी सकें और उन्हें रुपये-पैसे की कमी या पारिवारिक उपेक्षा का सामना न करना पड़े। इस अधिनियम के अनुसार, बच्चे और कानूनी उत्तराधिकारी अपने माता-पिता या वरिष्ठ रिश्तेदारों की देखभाल और भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार होते हैं।

 

सौतेले माता-पिता को भी मिलेगा

इस अधिनियम के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जिसकी उम्र 60 वर्ष या उससे अधिक है, वह वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आता है। ‘माता-पिता’ शब्द में जैविक माता-पिता के अलावा वे माता-पिता भी शामिल हैं जिन्होंने बच्चे को गोद लिया हो अथवा सौतेले माता-पिता भी शामिल होते हैं। यदि कोई संतान या रिश्तेदार अपने बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा करता है, तो वह बुजुर्ग व्यक्ति ‘मेन्टेनेन्स ट्रिब्यूनल’ (Maintenance Tribunal) में आवेदन देकर मासिक भरण-पोषण की मांग कर सकता है। यह ट्रिब्यूनल आमतौर पर 90 दिनों के भीतर निर्णय देता है और बच्चे या रिश्तेदार को भरण-पोषण की व्यवस्था करने का आदेश दे सकता है। पहले यह राशि अधिकतम ₹10,000 तक सीमित थी, लेकिन अब इसे परिस्थिति के अनुसार तय किया जा सकता है।

 

मेंटेनेंस पाने की प्रोसेस

मेंटेनेंस की मांग करने के लिए वरिष्ठ नागरिक या उनके स्थान पर कोई प्रतिनिधि अपने जिले की मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल में आवेदन दे सकता है। इस आवेदन में उम्र, आय की स्थिति, बच्चे या उत्तराधिकारी का विवरण, और मेंटेनेंस की ज़रूरत को स्पष्ट रूप से बताया जाता है। इस प्रक्रिया में कोई कोर्ट फीस नहीं ली जाती, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर बुजुर्गों को राहत मिलती है।

 

आवेदन मिलने के बाद, ट्रिब्यूनल संबंधित पक्ष को नोटिस भेजता है और दोनों पक्षों को सुनवाई का मौका देता है। जरूरत पड़ने पर एक सुलह अधिकारी (Conciliation Officer) नियुक्त किया जा सकता है जो मामले को आपसी समझौते से सुलझाने की कोशिश करता है। यदि सुलह नहीं होती, तो ट्रिब्यूनल कानूनी आदेश जारी करता है और हर महीने जितने पैसे दिए जाने हैं उसका निर्धारण करता है। आदेश का पालन न होने पर ट्रिब्यूनल आरोपी के खिलाफ वारंट जारी कर सकता है या एक महीने तक की जेल भी दे सकता है।

 

वृद्धाश्रम की व्यवस्था

इस अधिनियम के सेक्शन 19 के तहत राज्य सरकारों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे हर जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम (Old Age Home) की स्थापना करें। इन वृद्धाश्रमों में खाने-पीने, इलाज, रहने और मनोरंजन की सुविधाएं दी जानी चाहिए। लेकिन 2022 के सामाजिक न्याय मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में केवल 500 सरकारी सहायता प्राप्त वृद्धाश्रम ही कार्यरत हैं, जो जरूरत के मुकाबले बहुत कम हैं।

 

अस्पताल में मिले प्राथमिकता

अधिनियम का सेक्शन 20 यह भी कहता है कि सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में बुजुर्गों को प्राथमिकता दी जाए। उनके लिए अलग कतार, विशेष वार्ड और मुफ्त या सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं, वहां प्रशिक्षित डॉक्टर्स को तैनात किया जाए जो घर-घर जाकर बुजुर्गों की नियमित जांच कर सकें। इसके बावजूद, अब भी लगभग 40% ग्रामीण बुजुर्गों को नियमित इलाज नहीं मिल पाता, जो चिंता का विषय है।

 

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संपत्ति वापसी का अधिकार

अधिनियम की एक और खास बात यह है कि यदि कोई बुजुर्ग अपने बच्चे या किसी रिश्तेदार को इस शर्त पर संपत्ति देता है कि वह उसकी देखभाल करेगा, और बाद में वह देखभाल नहीं करता, तो बुजुर्ग अधिनियम के सेक्शन 23 के तहत ट्रिब्यूनल में आवेदन देकर वह संपत्ति वापस ले सकता है। यह प्रावधान उन मामलों में बहुत कारगर है, जहां बुजुर्गों द्वारा संपत्ति अपने उत्तराधिकारी को देने के बाद उनका ध्यान नहीं रखा जाता है। हालांकि, हाल ही में आए एक फैसले के मुताबिक पैरेंट्स को जब मन चाहे तभी बिना किसी ठोस कारण के बेदखल करने का अधिकार नहीं है।

 

बदलाव के लिए पेश हुआ बिल

सरकार ने 2019 में इस अधिनियम में सुधार लाने के लिए एक संशोधन विधेयक भी पेश किया। इसमें कई महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव है, जैसे दामाद और बहू को भी उत्तरदायित्व की श्रेणी में शामिल करना, केयरगिवर्स का रजिस्ट्रेशन, वृद्धाश्रमों के लिए न्यूनतम मानक तय करना और राष्ट्रीय हेल्पलाइन स्थापित करना। हालांकि यह विधेयक अभी पारित नहीं हुआ है, लेकिन इसके कानून बनने पर वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों को और अधिक मजबूती मिलेगी।


क्या हैं परेशानियां

कानून बनने के बावजूद बहुत से बुजुर्ग इसकी जानकारी नहीं रखते या सामाजिक कारणों से अपने बच्चों के खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकिचाते हैं। कई ट्रिब्यूनल में स्टाफ की कमी और अनुभवहीनता के कारण मामलों में देरी होती है। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के अनुसार, अधिनियम के तहत दायर 30% से अधिक मामले 6 महीने से ज्यादा लंबित रहते हैं, जिससे बुजुर्गों को तेजी से राहत नहीं मिल पाती।

 

कोर्ट की भूमिका

भारत के ज्युडिशियल सिस्टम ने इस कानून को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एस. वनिता बनाम डिप्टी कमिश्नर (2020) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी बुजुर्ग को संपत्ति लौटानी हो तो उसका अधिकार घरेलू हिंसा कानून से भी ऊपर माना जा सकता है। ऐसे फैसलों से निचली अदालतों को स्पष्ट दिशा निर्देश मिला है और अब वे बुजुर्गों के मामलों में अधिक सख्ती दिखा रही हैं।

 

सरकारी योजनाएं भी हैं मददगार

कानूनी ढांचे के साथ-साथ कई सरकारी योजनाएं भी वरिष्ठ नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए काम कर रही हैं। राष्ट्रीय वयोश्री योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले बुजुर्गों को चलने के सहायक उपकरण दिए जाते हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के तहत जरूरतमंद बुजुर्गों को मासिक आर्थिक सहायता मिलती है। इसके अलावा, सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम (SCSS) जैसे निवेश योजनाएं भी हैं जो उच्च ब्याज दर और टैक्स लाभ देती हैं।

 

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आगे की राह

इस अधिनियम की सफलता के लिए सबसे जरूरी है कि बुजुर्गों को इसके बारे में जानकारी हो। इसके लिए सरकार को व्यापक जागरूकता अभियान चलाने चाहिए, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। साथ ही, ट्रिब्यूनल की क्षमता बढ़ानी होगी, स्टाफ को प्रशिक्षण देना होगा और तकनीक का उपयोग करके ऑनलाइन आवेदन और वीडियो सुनवाई जैसी सुविधाएं शुरू करनी होंगी।

 

बुजुर्गों का मानसिक स्वास्थ्य भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अकेलापन, चिंता और डिप्रेशन से निपटने के लिए सरकार को परामर्श सेवाएं, सपोर्ट ग्रुप और सामुदायिक कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।