जम्मू और कश्मीर, भारत के लिए सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक रहा है। कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी, किसी के भी नेतृत्व वाली सरकारों के लिए कश्मीर में भारत विरोधी स्वरों को शांत करना, वहां के विद्रोह को खत्म करना, आतंकी गतिविधियों को रोक पाना, बड़ी चुनौती रहा है। एक अरसे तक यहां के स्थानीय लोगों ने आतंकियों को पनाह दी, भारत विरोधी आवाजों को पनपने दिया। यह राज्य सबसे ज्यादा आतंक प्रभावित राज्य भी रहा। इसका नतीजा यह था कि कश्मीर की आम आवाम भी आतंकियों के उकसावे में आए, पत्थरबाजी हुई, सैन्य कार्रवाई में मारे गए। भारत के पूर्व प्रधामंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, कश्मीर के लिए तैयार दशकों पुरानी नीति से कुछ अलग कर गए।
25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर जानते हैं कि बीजेपी क्यों कश्मीर पर उनकी नीतियों की सराहना करती है, उनके विरोधी भी उनकी कश्मीर नीति को स्वीकार करते हैं, कश्मीर पर उनकी नीति क्या थी, नए दौर में कश्मीर के लिए उस नीति की प्रासंगिकता क्या है।
यह भी पढ़ें; राष्ट्र प्रेरणा स्थल में क्या है खास, जिसका PM मोदी आज करेंगे उद्घाटन?
अटल बिहारी वाजपेयी की कश्मीर नीति क्या है?
अटल बिहारी वाजपेयी की कश्मीर नीति, संतुलित रही। उन्होंने 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत' का नारा दिया। वह चाहते थे कि कश्मीर को इंसानी नजरिए से देखा जाए, कश्मीर का लोकतांत्रिक हल निकाला जाए और कश्मीर की संस्कृति का साम्मान किया जाए। ये सिद्धांत कश्मीर की समस्या को सिर्फ सुरक्षा या सैन्य नजरिए से नहीं, बल्कि लोगों के दिल जीतने और शांति के रास्ते से हल करने पर जोर देते हैं।
विरोधी तारीफ क्यों करते हैं?
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और सीएम उमर अब्दुल्ला भी अटल बिहारी वाजपेयी की कश्मीर नीतियों की सराहना करते हैं। उनका मानना है कि अटल बिहारी वाजपेयी का शासन, कश्मीर के लिए स्वर्णिम काल की तरह रहा है। उन्होंने बंदूक के बजाय बातचीत और भरोसा बनाने पर जोर दिया।
अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर में अलगाववाद को कम किया और लोगों में भारत के प्रति विश्वास जगाया। पाकिस्तान के साथ शांति की कोशिश की, लेकिन जरूरत पड़ने पर मजबूत फैसले भी लिए। कारगिल का युद्ध, पाकिस्तान के लिए आज भी बड़ा सबक है। उन्होंने कश्मीर पर दुनिया का नजरिया बदला। पहले कश्मीर को मानवाधिकार का मुद्दा माना जाता था, अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे आतंकवाद का मुद्दा बनाया। उन्होंने कहा कि कश्मीर के आतंकवाद को खत्म करने की जरूरत है।
क्यों आज भी जरूरी हैं अटल की नीतियां?
इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत की नीति से श्मीर में शांति का रास्ता खुला और स्थायी राजनीतिक हल निकालने की उम्मीद जगी। अटल बिहारी वाजपेयी की इस नीति ने आतंकवाद और हुर्रियत जैसे संगठनों को कमजोर किया और पाकिस्तान के खूनी विद्रोह का दमन किया।
साल 1947 के बाद पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि कश्मीर का हल संविधान के दायरे से बाहर भी ढूंढा जा सकता है। इससे हुर्रियत के नरम गुट को भारत सरकार से बातचीत का मौका मिला। हिजबुल मुजाहिदीन जैसे खतरनाक संगठन में फूट पड़ गई और एक गुट ने हथियार डालकर शांति वार्ता शुरू की। इससे युवा कश्मीरियों को लगा कि बंदूक से कुछ नहीं होगा, और 2015 तक आतंकवाद काफी कम रहा।
यह भी पढ़ें: 'ईशनिंदा, मॉब लिंचिंग,' दीपूचंद्र की हत्या ने कैसे बिगाड़े भारत-बंगाल के रिश्ते?
कश्मीर पर सराहे क्यों जाते हैं अटल बिहारी?
अटल बिहारी वाजपेयी के समय में कश्मीर के लोगों में भरोसा जगा। वे साल 1990 के दशक से हिंसा देखते आ रहे थे। उनकी नीतियां बदलाव वाली रहीं। उन्होंने कश्मीरियों के दर्द को समझा और घाव भरने की कोशिश की। कश्मीरियों को अरसे तक ऐसा लगता रहा कि उनके साथ गलत हुआ है। भारत सरकार उनका दमन करती है, चुनावों में धांधली करती है। वहां भारत विरोधी सुर और आतंकवाद दोनों साल-दर-साल बढ़ते रहे।
साल 2002 में चुनाव हुए तो अटल की नीतियों से प्रभावित उन लोगों ने भी वोट किया, जो वोट का बहिष्कार करते थे। लोगों का लोकतंत्र पर फिर से भरोसा जागा। आज भी, 20 साल बाद, कश्मीर के नेता, आम लोग और बुद्धिजीवी वाजपेयी की तरह की नीति की उम्मीद करते हैं।
साल 2016 में जब कश्मीर में एक बार फिर अशांति भड़की तो महबूबा मुफ्ती और मिरवाइज ने भी वाजपेयी की घाव भरने वाली नीति दोहराने की बात की। एक बड़ा वर्ग मानता है कि वह अपने समय के इकलौते प्रधानमंत्री थे जिन्होंने कश्मीरी लोगों की भावनाओं से जुड़कर शांति का नया रास्ता दिखाया।
यह भी पढ़ें: थाईलैंड की सेना ने तोड़ दी थी भगवान विष्णु की मूर्ति, भारत ने क्या कहा?
कश्मीर में सभी पार्टियों के लोग मानते हैं कि 1947 के बाद शांति, सुरक्षा और लोगों के लिए अटल शासन बेहतर रहा है। ऐसा नहीं था कि अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ शांति प्रिय ही रहे। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम भी उठाए। पाकिस्तान की हर चुनौती का कड़ा जवाब दिया। उन्होंने हिम्मत दिखाई और शांति से कश्मीर जैसी जटिल समस्या सुलझाई जा सकती है। आज के दौर में भी उनकी नीतियों की चर्चा होती है।
