बिहार में राज्यसभा चुनाव के लिए नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) के सहायक दल, आपस में ही उलझ गए हैं। यह तकरार, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) के बीच नहीं है, बल्कि इन दोनों बड़े दलों से है। गठबंधन के सहायक दलों की मांग है कि कि उन्हें राज्यसभा में भेजा जाए। जीतन राम मांझी तो खुलकर कह रहे हैं कि अगर राज्यसभा में जगह नहीं दी गई तो वह एनडीए गठबंधन छोड़ देंगे। उपेंद्र कुशवाहा भी इस उम्मीद में हैं कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। चिराग पासवान, अपनी मां रीमा पासवान को भी राज्यसभा भेजना चाहते हैं।
 
एक तरफ सहयोगी दलों की मांग है, दूसरी तरफ खुद भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू भी चाहते हैं कि कम से कम 2-2 सीटों पर उनके अपने पहुंचे। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन की भी भूमिका अब बदल गई है। वह बिहार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे चुके है, अब ऐसी चर्चा है कि वह राज्य की विधानसभा सीट से भी इस्तीफा देंगे और राज्यसभा आएंगे। उनकी भूमिका अब बिहार से बढ़कर दिल्ली तक विस्तृत हो गई है।

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पवन सिंह पर इतना जोर क्यों है?

राज्यसभा के लिए एक नाम भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह का भी आ रहा है। बीजेपी चाहती है कि राज्यसभा में उन्हें जगह दी जाए। वह बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे हैं, उनकी चुनावी रैलियों में खूब भीड़ होती है। पश्चिम बंगाल और असम में भी उनकी तगड़ी फैन फॉलोइंग है। दोनों राज्यों में अगले साल चुनाव भी हैं। दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी और जेडीयू ने अपने लिए 2-2 सीटें तय कर ली हैं। एक सीट ही बची है, जिसके लिए तीन दल दावेदार हैं। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मंच, दोनों से ज्यादा सीटें चिराग पासवान के पास हैं, अगर उन्हें भी राज्यसभा में आना है तो सहयोगियों के साथ-साथ विपक्ष से भी मदद लेने की जरूरत पड़ेगी। 

जीतन राम मांझी, अध्यक्ष, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा:-
राज्यसभा में एक सीट चाहिए। हमको कम आंका गया है। दो-दो बार बेईमानी की गई है। फिर अगर यही गलती दोहराई गई तो हम रास्ता अलग कर लेंगे। हमें कम समझने की गलती न की जाए। हम 100 सीट लेंगे। राज्यसभा के लिए लोकसभा चुनाव में ही हमसे वादा किया गया था। अगर सी नहीं मिली तो हम एनडीए छोड़ देंगे। अगर मंत्री नहीं थे तो क्या जी नहीं रहे थे। 


एनडीए में क्यों बवाल मचा है?

एनडीए के सामने चुनौती है कि जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान तीनों लोग, अपनी पार्टी के लिए एक-एक राज्यसभा सीट चाह रहे हैं। आंकड़े साफ तौर पर बीजेपी और जेडीयू के पक्ष में हैं। दोनों दलों के पास 80-80 से ज्यादा सीटें हैं। बिना किसी की मदद के ही 4 सीटें सिर्फ जेडीयू और बीजेपी के खाते में जाएंगी। 1 सीट पर पेच फंस रहा है, जिस पर महागठबंधन मजबूत हो सकता है। 

अब राज्यसभा की एक सीट पर महागठबंधन बनाम एनडीए की जंग है। इसी एक सीट पर चिराग पासवान भी दावेदार हैं, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी। महागठबंधन के पक्ष में संख्या बल जाता नजर आ रहा है। यह सीट, एनडीए खुद नहीं निकाल सकती।

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बीजेपी अपनी दावेदारी वाली सीट, उपेंद्र कुशवाहा के लिए छोड़े ऐसा होता अभी नजर नहीं आ रहा है। वजह यह है कि उनके बेटे दीपक प्रकाश को कम सीटों के बाद भी राज्य में मंत्री पद दिया गया है। जीतन राम मांझी खुद केंद्रीय मंत्री हैं, उनके बेटे संतोष सुमन भी मंत्री हैं। पिता केंद्र में मंत्री हैं, बेटा राज्य में, ऐसे में उनके लिए फिलहाल न बीजेपी अपनी सीट छोड़ने वाली है, न जेडीयू। अगर यह जारी रहा तो तकरार और बढ़ सकती है। 

न उपेंद्र कुशवाहा, न मांझी, चिराग कर सकते हैं खेल

चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास पासवान) के पास कुल 19 विधायक हैं। बीजेपी के पास 89 और जनता दल (यूनाइटेड) के पास 85। बीजेपी और जेडीयू को मिलाकर कुल 174 विधायक हो रहे हैं। बीजेपी और जेडीयू 2-2 सीटें संख्या बल के आधार पर सुरक्षित है। दोनों को मिलाकर 10 विधायक अतिरिक्त हो रहे हैं। अगर जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को भी चिराग मना ले जाते हैं तो हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के 5 विधायक और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के 4 विधायक साथ आने से कुल संख्या बल 38 हो रहा है। चिराग को 3 और विधायकों की जरूरत पड़ेगी। अगर विपक्ष के 3 विधायक मदद कर दें तो चिराग यह सीट निकाल सकते हैं। अभी उनके सामने अपने ही गठबंधन का समर्थन हासिल करना एक बड़ी चुनौती है। जीतन राम मांझी के तेवर अभी तल्ख हैं।

बिहार में कितनी सीटों पर हो रहे हैं राज्यसभा चुनाव?

बिहार में 9 अप्रैल 2026 को 5 राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल खत्म हो रहा है। पार्टीवार इसे समझते हैं-

  • राष्ट्रीय जनता दल: प्रेम चंद गुप्ता, अमरेंद्र धारी
  • जेडीयू: हरिवंश नारायण सिंह, रामनाथ ठाकुर
  • आरएलएम: उपेंद्र कुशवाहा 

आंकड़े किसके पक्ष में हैं?

राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस की सीटें मिलाकर भी 35 सीटें ही महागठंबधन के खाते में हैं। किसी भी एक सीट पर जीत दर्ज करने के लिए कम से कम 41 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। बिहार के लिए चुनाव का फॉर्मूला है कि जितनी सीटों पर चुनाव होने वाला है, उनमें एक जोड़कर कुल सीटों से भाग दे दिया जाए। बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं, 5 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। एक जोड़ दिया जाए तो यह 6 होगा। 243 को 6 से भाग देने पर 40.5 आएगा। मतलब एक सीट के लिए कम से कम 41 विधायकों की जरूरत पड़ेगी।

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महागठबंधन का क्या भविष्य है?

महागठबंधन अपनी कोई एक सीट बचा सकती है। आरजेडी के पास 25 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 6 विधायक हैं। IIP के पास 1 और लेफ्ट के पास 3 सीटें हैं। महागठबंधन का कुल खेल 35 पर सिमट गया है। अगर 1 सीट जीतनी है तो कम से कम 41 सीट चाहिए। अगर असुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (AIMIM) के 5 विधायक और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के एक विधायक का साथ मिले तो महागठबंधन एक सीट निकाल सकती है।