उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां कई ऐसे मंदिर स्थित हैं, जिनका अपना पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। इन्हीं में से एक मंदिर गंगा के किनारे बागेश्वर जिले में स्थित बैजनाथ धाम अपने इतिहास और आस्था के लिए प्रसिद्ध है। बैजनाथ धाम एक प्राचीन और पवित्र शिव मंदिर है। यहां भगवान शिव के बैजनाथ रूप की पूजा होती है, जिन्हें जीवनदाता और रोगों के नाशक कहा जाता है। यह स्थान अल्मोड़ा से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर है।

बैजनाथ धाम का इतिहास

बैजनाथ मंदिर का निर्माण कत्युरी राजाओं द्वारा लगभग 12वीं शताब्दी में करवाया गया था। कत्युरी वंश ने इस क्षेत्र में कई मंदिरों का निर्माण करवाया और बैजनाथ उन प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर की संरचना में कत्यूरी स्थापत्य कला दिखाई देती है। यहां पत्थर से निर्मित मंदिर परिसर में कई छोटे-बड़े मंदिर हैं, जिनमें भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश, सूर्य देव और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित हैं। इस मंदिर की विशेष बात यह है कि यहां की मूर्तियां काले पत्थर से बनी हुई हैं।

 

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पौराणिक मान्यताएं

बैजनाथ धाम से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। शिव जी ने पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर यहीं विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया था। इसीलिए इस स्थान को विवाह स्थल के रूप में भी पूजा जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव ने यहां वानप्रस्थ आश्रम में कुछ समय तक निवास किया था और बैद्य (वैद्य) रूप में लोगों को रोगों से मुक्ति दी थी। इसी कारण उन्हें 'बैजनाथ' कहा गया।

डोली यात्रा का महत्व

बैजनाथ धाम में हर विशेष अवसर पर डोली यात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतीकात्मक डोली को आसपास के गांवों से लाकर मंदिर परिसर तक ले जाने की परंपरा है। डोली यात्रा में ग्रामीण लोग फूलों से सजी हुई डोली को कंधों पर उठाकर नाचते-गाते मंदिर तक लाते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि इस यात्रा में भाग लेने से जीवन के कष्टों का अंत होता है और शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

 

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धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

बैजनाथ धाम न केवल शिवभक्तों के लिए तीर्थस्थल है, बल्कि यह स्थान योग और ध्यान के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के शांत वातावरण में ध्यान करते हैं और आत्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं।