सनातन धर्म में भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है। वहीं रामायण, जो भगवान श्रीराम के जीवन और उनके धर्मयुद्ध की गाथा है। बता दें कि रामायण कथा से भगवान शिव से विशेष संबंध है, बता दें कि सबसे पहले स्वयं भगवान शिव ने सुनाया था। रामायण को महर्षि वाल्मीकि ने लिखा, लेकिन इसका मूल ज्ञान भगवान शिव से ही प्रसारित हुआ।
भगवान शिव ने पहली बार रामायण कब और कैसे सुनाई?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, 'प्रभु! आप सदा राम-राम जपते रहते हैं, यह कौन हैं जिनका आप इतना ध्यान करते हैं?' माता पार्वती के इस प्रश्न पर भगवान शिव मंद-मंद मुस्कुराए और उन्हें भगवान श्रीराम के दिव्य चरित्र का वर्णन करना प्रारंभ किया।
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भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि भगवान श्रीराम कोई साधारण राजा नहीं, बल्कि स्वयं साक्षात विष्णु के अवतार हैं। उन्होंने धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए यह अवतार लिया था। भगवान शिव ने माता पार्वती को भगवान राम की संपूर्ण कथा सुनाई, जिसमें उनके वनवास, सीता माता का हरण, हनुमान जी की भक्ति और अंत में रावण वध का विस्तार से वर्णन किया गया।
कथा का दूसरा महत्वपूर्ण प्रसंग
भगवान शिव द्वारा सुनाई गई रामायण कथा का एक अन्य प्रसंग महर्षि काकभुशुंडी से भी जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, महर्षि काकभुशुंडी को भगवान शिव से रामायण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
एक बार नारद मुनि ने भगवान शिव से विनती की, 'हे प्रभु! क्या मैं भी श्रीराम की यह पावन कथा सुन सकता हूँ?' भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कहा, 'नारद, यह कथा अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी है। यदि कोई इसे श्रद्धा और भक्ति से सुनता है, तो वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकता है।'
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भगवान शिव ने यह कथा काकभुशुंडी को भी सुनाई थी, जिन्होंने आगे जाकर गरुड़ जी को इसे सुनाया। इस प्रकार, भगवान शिव से निकली यह कथा धीरे-धीरे पूरे ब्रह्मांड में फैल गई और अंततः महर्षि वाल्मीकि तक पहुँची, जिन्होंने इसे वाल्मीकि रामायण के रूप में लिखा।
भगवान शिव और राम के अटूट संबंध
भगवान शिव को श्री राम भक्तों में सबसे प्रमुख माना जाता है। जब भगवान श्रीराम शिवलिंग की स्थापना करने के लिए रामेश्वरम पहुंचे, तो उन्होंने भगवान शिव का विशेष पूजन किया। शिव भी श्रीराम के भक्त थे और राम भी शिव के परम आराध्य थे। यही कारण है कि रामायण की कथा को सबसे पहले भगवान शिव ने ही सुनाया।