हिन्दू परंपरा में अमरनाथ यात्रा को बहुत ही पवित्र माना जाता है। जम्मू और कश्मीर में होने वाली यात्रा में हर साल हजारों शिव भक्त बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए जाते हैं। ऐसी ही एक यात्रा बूढ़ा अमरनाथ मंदिर की भी होती है। जहां एक तरफ अमरनाथ यात्रा बर्फ से निर्मित प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन होते हैं, वहीं बूढ़ा अमरनाथ में स्वंभू शिवलिंग की उपासना कि जाती है।

 

जम्मू और कश्मीर के पुंछ जिले के मेंढर तहसील के राजौरी-पुंछ मार्ग पर स्थित बूढ़ा अमरनाथ मंदिर एक अत्यंत पवित्र शिव स्थल माना जाता है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2900 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इसे ‘चोटी का अमरनाथ’ भी कहा जाता है। यह मंदिर ‘पुंछ के अमरनाथ’ के नाम से भी प्रसिद्ध है और यहां हर साल श्रावण मास में भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। बता दें कि 28 जुलाई से बूढ़ा अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है।

 

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बूढ़ा अमरनाथ मंदिर

बूढ़ा अमरनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यहां शिवलिंग स्वंयभू अर्थात स्वयं प्रकट हुआ माना जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां स्थित शिवलिंग सफेद रंग का है और यह प्राकृतिक चट्टानों से बना हुआ है। यह शिवलिंग मंदिर के भीतर एक गुफा में स्थित है, जिससे होकर एक ठंडी जलधारा बहती है। कहा जाता है कि इस जलधारा का जल हिमालय की बर्फीली चोटियों से आता है और शिवलिंग के चारों ओर से बहता रहता है।

बूढ़ा अमरनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा

इस मंदिर से जुड़ी एक अत्यंत प्राचीन पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव जब माता पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ की ओर जा रहे थे, तो उन्होंने कई स्थानों पर रुक कर विश्राम किया। उन्हीं विश्राम स्थलों में से एक स्थान यह भी था, जिसे आज ‘बूढ़ा अमरनाथ’ कहा जाता है। कहते हैं कि भगवान शिव ने यहां तप किया और इसी स्थान पर एक शिवलिंग की उत्पत्ति हुई, जो कि अब भी यहां स्थित है। चूंकि यह स्थान अमरनाथ की यात्रा से पहले का एक पुराना पड़ाव था, इसलिए इसे "बूढ़ा" यानी "पुराना" अमरनाथ कहा जाने लगा।

 

एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस स्थान का संबंध राक्षस राजा रावण से भी बताया जाता है। कहा जाता है कि रावण ने इसी स्थान पर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उन्हें प्रसन्न करके अजेयता का वरदान प्राप्त किया था। वह शिवलिंग, जिसकी स्थापना रावण ने की थी, वही आज बूढ़ा अमरनाथ मंदिर में स्थित है।

 

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इस मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को मन की शांति, स्वास्थ्य और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। यहां हर साल श्रावण पूर्णिमा से पहले शिव भक्त बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा करते हैं और जल चढ़ाने के लिए इस मंदिर तक पहुंचते हैं। यह यात्रा कठिन तो होती है लेकिन भक्ति भाव और उत्साह के कारण श्रद्धालु इसे पूरा करते हैं।